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परिस्थिति ही मनुष्य को राह दिखाती है------


 वो महीने के आखिरी तारीख थे। जब कुलदीप की मम्मी आई थी।  कुलदीप मम्मी को देखते ही दौड़ा और पुरे उत्साह के साथ पैर छू कर आशीर्वाद  लिया। फिर अपने मम्मी के गले से लग गया। मम्मी हर बार की तरह ही सर पर हाथ फेरती रही ...जैसे वो अपने बेटे से बहुत दिनों के बाद मिली हो।
     उसे अभी मुश्किल से दो मिनट ही हुए होंगे की होटल के मालिक ने आवाज लगाई कुलदीप जल्दी आ ग्राहक ज्यादा देर तक खड़े नहीं रह सकते हैं। मम्मी से ज्यादा ही स्नेह आ रहा है तो साफ बोल नागा लिख देता हूं, तु और अपने मम्मी के पास ही बैठा रह..। आया मालिक, " कुलदीप ने कहा- मम्मी तू यहीं बैठ हम तुरंत आयव।
      क्यों सुनाई नहीं देता कुलदीप, मालिक ने फिर आवाज लगाई इस बार कुलदीप को जाना ही हुआ। अभी पिछले साल ही तो कुलदीप के पापा की मौत हुई थी ओ मजदूरी करके ही सही अपना परिवार चला तो लेते थे, बच्चे तो बच्चे ही होते हैं वो या अमीर की हो चाहे उन गरीब की हो। इससे माता पिता के प्यार में कोई कमी थोड़ी ना रह जाता है, कुलदीप भी लाडला था पर पापा की सड़क दुर्घटना के बहाने असमय मौत ने ही उसे बड़ा कुलदीप बना दिया था।
     मम्मी बाहर बेंच पर केहुनी के सहारे बैठी हुई थी। और अपने कुलदीप को बार-बार होटल के अन्दर दौड़-भाग करते देख रही थी। उसे खुद की आंखों पर यकीन नहीं हो रहा था कि ये वही ॑ कुलदीप है जो सूरज के निकलने के बाद ही उठता था। बात-बात पर तुनकता ... खाने मे रोज लाख नखरे करता था ..। और आजॽ एक जिम्मेदार इंसान की तरह  होटल में प्लेट गिलास मांजता है। दौड़ कर चाट,समोसे, पकौड़ी भी दे आता है ...मात्र ग्यारह साल का कुलदीप, आज सच मे बड़ा हो गया था।
     मम्मी... बाबू ठीक हैॽ
कुलदीप ग्राहक के जाते ही फिर से मम्मी के पास आ गया था। हां 'छोटी' ठीके है लेकिन तुमको खोजती है। पूछती है कि भैया कब अइतै। आज तो रोती थी, कि स्कूल न जैबो हमहु जैवो कुलदीप भैया पास ...। कोई बात नय है छठ पूजा मे आइवै हम। ठीक है बेटा कोई डाँटता-उटता तो नही है नॽ
     नहीं मम्मी सब बढ़िया है। हाल दशा पूछते हुए मम्मी ने उसके पूरे शरीर का देखरेख(प्रतिपालन)  कर लिए थे।
          ये क्या हुआॽ, ॑ मम्मी का हाथ उसके दोनों हाथों की अंगुलियों के बीच हम गए थे।
 कुछ ना मम्मी बर्तन धोने से पानी लग गयन। थोड़के दिन में ई ठीक हो जाई।..
   पूरे तीस सौ रुपये मे कुलदीप ने नौकरी पाया था। खैर आप इससे एक छोटा या बड़ा सा होटल था । पर कुलदीप के लिए सब कुछ यही था यही से वह अपना परिवार का भरण-पोषणकर अपनों का पेट भरता था।
       साहब तनख्वाह दे दीजिए कुलदीप ने बेझिझक कहा,-"आज महीने पूरे हो जायेंगे। अच्छा ठीक है देता हूं, " उसके मालिक ने कुछ सोचते हुए कहा।
         ये तो अठाइस सौ ही हैॽ तय तो तीस सौ मे हुई थी। कुलदीप ने याद दिलाया।
           हमने कब कहा कि नहीं  हुई थी। पर इस महीने मे तुम दो दिन खेलने भाग गया था क्या उसका पैसा भी तुझे मुफ्त मे दे दूँ ... मालिक का आवाज रूखी और कठोर निकल आया था।वो महीने के आखिरी तारीख थे। जब कुलदीप की मम्मी आई थी।  कुलदीप मम्मी को देखते ही दौड़ा और पुरे उत्साह के साथ पैर छूलिया फिर अपने मम्मी के गले से लग गया। मम्मी हर बार की तरह ही सर पर हाथ फेरती रही ...जैसे वो अपने बेटे से बहुत दिनों के बाद मिली हो।
     उसे अभी मुश्किल से दो मिनट ही हुए होंगे की होटल के मालिक ने आवाज लगाई कुलदीप जल्दी आ ग्राहक ज्यादा देर तक खड़े नहीं रह सकते हैं। मम्मी से ज्यादा ही स्नेह आ रहा है तो साफ बोल नागा लिख देता हूं तेरी और अपने मम्मी के पास ही बैठा रह..। आया मालिक, " कुलदीप ने कहा- मम्मी तू यहीं बैठ हम तुरंत आयव।
      क्यों सुनाई नहीं देता कुलदीप, मालिक ने फिर आवाज लगाई इस बार कुलदीप को जाना ही हुआ। अभी पिछले साल ही तो कुलदीप के पापा की मौत हुई थी। ओ मजदूरी करके ही सही अपना परिवार चला तो लेते थे। बच्चे तो बच्चे ही होते हैं वो या अमीर के हो चाहे उन गरीब की इससे माता-पिता  के प्यार में कोई कमी थोड़ी ना रह जाता है। कुलदीप भी लाडला था पर पापा  की सड़क दुर्घटना के बहाने असमय मौत ने ही उसे बड़ा कुलदीप बना दिया था।
     मम्मी बाहर बेंच पर केहुनी के सहारे बैठी हुई थी। और अपने कुलदीप को बार-बार होटल के अन्दर दौड़-भाग करते देख रही थी। उसे खुद की आंखों पर यकीन नहीं हो रहा था कि ये वही ॑ कुलदीप है जो सूरज के निकलने के बाद ही उठता था। बात-बात पर तुनकता ... खाने मे रोज लाख नखरे करता था ..। और आज? एक जिम्मेदार इंसान की तरह प्लेट गिलास मांजता है। दौड़ कर चाट,समोसे, पकौड़ी भी दे आता है ...मात्र ग्यारह साल का कुलदीप, आज सच मे बड़ा हो गया था।
     मम्मी... बाबू ठीक है?
कुलदीप ग्राहक के जाते ही फिर से मम्मी के पास आ गया था। हां 'छोटी' ठीके है लेकिन तुमको खोजती है। पूछती है कि भैया कब अइतौ। आज तो रोती थी, कि स्कूल न जैबो हमहु जैवो कुलदीप भैया पास...।
    कोई बात नय है। छठ पूजा मे आइवै हम। ठीक है बेटा कोई डाँटता-उटता तो नही है न?
     नहीं मम्मी सब बढ़िया है। हाल दशा पूछते हुए मम्मी ने उसके पूरे शरीर का देखरेख(प्रतिपालन)  कर लिए थे।
          ये क्या हुआ?, ॑ मम्मी का हाथ उसके दोनों हाथों की अंगुलियों के बीच हम गए थे।
 कुछ ना मम्मी बर्तन धोने से पानी लग गयन। थोड़के दिन में ई ठीक हो जाई।..
   पूरे तीस सौ रुपये मे कुलदीप ने नौकरी पाया था। खैर आप इससे एक छोटा या बड़ा सा होटल का दीजिए पर कुलदीप के लिए सब कुछ यही था यहीं से वह अपना और अपनों का पेट भरता था।
       साहब तनख्वाह दे दीजिए कुलदीप ने बेझिझक कहा,-"आज महीने पूरे हो जायेंगे। अच्छा ठीक है देता हूं, " उसके मालिक ने कुछ सोचते हुए कहा।
         ये तो अठाइस सौ ही है? तय तो तीस सौ मे हुई थी। कुलदीप ने याद दिलाया।
           हमने कब कहा कि नहीं  हुई थी। पर इस महीने मे तुम दो दिन खेलने भाग गया था क्या उसका पैसा भी तुझे मुफ्त मे दे दूँ ... मालिक का आवाज रूखी और कठोर निकल आया था।
      चलिए ठीक है काट लिए कोई बात नहीं, "कुलदीप ने जवाब दिया।
         मम्मी भी जल्दी मे थी। क्योंकि उसकी बेटी- छोटी के स्कूल से छुट्टी होने मे लगभग आधे घन्टे ही बचे थें। पास ही के दुकान से एक रबड़ की साधारण सी गुड़िया। कुछ छोटी के पसंद की चौकलेट ली और खूशी-खुशी सारे पैसे व समान भी मम्मी को  दे दिया...। उसकी मम्मी घर जाने के लिए ऑटो के तरफ पलटी ही थी कि कुलदीप बोल पड़ा ठहरो मम्मी एक चीज छूट गया। वो दौड़कर गया और टेबल के नीचे रखी पन्नी लाकर देने लगा ही था कि दुकान मे आये एक ग्राहक ने कहा, "- ये जी लगता है सामान चुराया है..,। अरे यह तो पक्का चोर निकला जरूर कुछ चुराकर कर घर भेज रहा है। मालिक दुकान छोड़ उसके तरफ दौड़ा... नाही साहेब हमार बेटा चोरी नहीं कर सकता है। मम्मी ने अपने बेटे की गलती पर पर्दा डाला। कुलदीप तिरछी नजरों से मालिक को देखता रहा। "अरे कितना बेशर्म है तू- मालिक ने गुस्साते हुए बोला। और रंगीन प्लास्टिक हाथों से छीन ली फिर वहीं; काउंटर पर उलट दिया। जलेबी के छोटे बड़े टुकड़े जो प्लेट में झूठे छोड़ दिए गए थे। ग्राहक द्वारा छोड़ी गई बर्फी आधे खाए हुए समोसे के टुकड़े काउंटर पर ही जहां-तहां छितरा गए थें...।
   कुलदीप  को थप्पड़ मारने के लिए ऊपर उठा हुआ हाथ जैसे सुन पड़ गया। दुकान मे रूके ग्राहक जो कुलदीप पर चोरी का इल्जाम लगा रहे थे, उनकी जुबान भी अचानक बंद हो गयी। मालिक कुलदीप को अपने गले से लगा लिया क्योंकि कुलदीप अब मालिक के दिल मे अपना
घर बना चुका था।
  लेखक-: राहुल कुमार घर-:अलीगंज (जमुई ) संपर्क-:9661003520