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आलेख : हमारा अधूरा प्यार

परी और स्वरांश हाईस्कूल मे जाने के बाद, एक अच्छे दोस्त बन गये। और दसवीं क्लास मे वो दोनो प्रेम करने लगे एक दुसरे से। कसमे खा रखे थे साथ जीने और मरने की।मै जब भी देखता 
परी को सूर्ख गुलाबी होठों से कुछ गुणगुनाते सुन लेता- अगर तु साथ है तो..,मुझे... क्या कमी...है..; और स्वारांश उसी अधुरे लाइन को परी के मुलायम हाथों को अपने हाथ मे लेकर पूरा कर देता।
       जैसा नाम था वैसी ही दिखती.. परी जैसी। आंख एकदम मोती तरह चमकते हैं ...स्वत: ही गुलाबी गाल हो जाते जब वो मुस्कुराती। उसकी बंधी चोटी जिसे चलते  हुए इस कांधे से उठाकर उस कांधे पर रखती है। जब मै ..ऐसे लोगो को देखता तो हमउम्र के लड़कों की तरह अलग सा सोच दिमाग मे आ 
खटकता है। पर उसी पल मुझे भगवान् श्री कृष्ण- राधा की प्रेम कहानी याद आ जाता तो सवाल ही नहीं उठता है प्यार को गलत कहें व किसी को कहने दें।सिर्फ उसे लोगों में समझने की आवश्यकता है।
      स्कूल मे दोनों के पढ़ाई से ज्यादा प्यार के चर्चे हैं। स्वरांश बेंच के किनारे पर और परी भी बगल लड़कियों की रौ मे बैठी है। 'क्लास टीचर' के जाते ही आपस मे कानाफूसी शुरू हो गयी है। स्वारंश को कोई फर्क नही पड़ता कि कोई उसके बारे मे क्या सोचता है। वह सिर्फ अपने तरीके से ज़िंदगी को एन्जाॅय करता है। परी-स्वरांश  धीरे-धीरे एक दुसरे को अच्छी तरह जानते हैं। स्वरांश अब खुलकर बात करता है।
परी उसे दिल का हर बात बताती है।
       हर शाम की तरह, आज फिर वो दोनों चोरी-छुपे काॅफी शाॅप पर आकर मिलते हैं । वो सोच रहे हैं कोई और ना,आ पहुंच जाए। काॅफी का इंतजार करते हुए- "परी तुम ऐसे ही मेरे साथ रहना,,। तुम साथ होती हो कितना अच्छा लगता है, ये सब..के सब। परी एकटक देखते हुए बोली, स्वरांश तुम कितने खुले विचार के हो पर कही ये बात उसे डरा रही थी।" तुम्हरी काॅफी वेटर ने स्वरांश का ध्यान भटकाते हुए कहा, "थैंक्स आज जल्दी लाने के लिए।
     वो दोनों सच्ची प्यार की जीवन जीने जा रहे थे। आसपास की दुनिया से बेखबर! इस जहान को भूले अपनी अलग दुनिया मे बढ़ते जा रहे थे।
इधर वक़्त भी अपनी पंख लगाए उड़ रहे थे। देखते ही देखते बोर्ड परीक्षा निकट आ गई थी। दोनो अच्छे रैंक लाने के लिए, लगभग तीन महीने मे पढ़ाई मे व्यस्त हो गये।  फरवरी माह मे परीक्षा हुई। परीक्षा के समय स्वरांश और परी मिल नही पाए थें। क्योंकि वो परीक्षा केन्द्र से थोड़ी दुर एक रिश्तेदार के यहां रही थी। और स्वरांश देकर घर वापस आ जाता..। हां, पर परीक्षा से ठीक तीन दिन पहले मुलाक़ात हुई थी। परी और स्वरांश शाम को उस मंदिर मे पहुंचे जो काॅफी शाॅप के बगल की एक गली से अन्दर जाने पर थी। दोनों मुर्ति के सामने बैठ गये। फिर पास ही के लोग आये  आरती दिखाने..। परी-स्वरांश मत्था टेके और घर चले आये।
      आखिरकार मई के अंतिम सप्ताह में,  परीक्षा परिणाम आ गया...। मगर स्वरांश को अपनों से ज्याद उसकी पड़ी थी तो परी का रौल नम्बर डाला। वो ठीक-ठाक नम्बर से सेकंड डिवीजन पास हो गयी थी। 'अरे यार तुम देख ना अपना। दोस्त को अपना रौल नम्बर बताया। ..कब से पढ़ाई करने लगा तू'। 'मतलब' तुझे पूरे स्कूल मे तीसरा स्थान मिला है। ...मुझे भी जानकर आश्चर्य हुआ, जो लड़का उस लड़की के बारे मे सोच रहा था। वो इ..तना नम्बर लाया।
    आज स्वरांश औ परी मार्कशीट
लेने स्कूल आये थे। स्वरांश काफी खूश था..पर परी के चेहरे पर फिकी-सी मुस्कान दिख रही। सोचा पूछ लू फिर लगा द्वितीय आ गयी शायद इसलिए। सभी छात्र-छत्राएं मार्कशीट लिऐ वापस अपने घर जा रहे है..। स्वरांश कल उसी मंदिर मे, तुमसे कुछ बोल देना चाहते हैं,। "तुम आओगे ना?" 'बाबा; हर बात को पहेलियों की तरह क्यों बूझाती हो..?, "मतलब"। कौन सा मंदिर? हनुमान मंदिर जो काॅफी शाॅप के बगल मे है। ठीक है परी हम चले आएंगें। अच्छा स्वरांश बाय..। परी घर चली गयी।
सुबह को स्वरांश मंदिर के बाहर पहुँच गया और वहीं घने पेड़ के पास खड़ा होकर परी का इंतजार करने लगा। ..शर्ट की बांह को उपर करते हुए कलाई मे पहने घड़ी को देखा , "साढ़े दस बज गये। आधे घंटे से खड़ा हूं। परी की जानतीं वो  मन मे सोच रहा था "तुम हमसे पहले आ गये"? एक शांत स्वर मे जैसे किसी ने थपथपाया मुड़कर देखा वो परी थी।बहुत प्यार था उसे अपने से, जिसे वो थोड़ा छोटा करवा ली थी। हमेशा बेस्टन कपड़े और खादी का दुपट्टे मे दिखने वाली परी आज इतने सिम्पल ड्रेस मे वैसे ही खड़ी जैसे स्वर्ग के फूल मुरझाई हो। उसके चेहरे पर परेशानी और उदासी दोनो झलक रही थी,।"तुम क्या सोच रही हो?" पूछते हुए स्वरांश  परी के अंगुलियों को पकड़ा..
     परी चौक गई उसके मन मे उथल-पुथल मची थी। मै तुमसे कुछ कह देना चाहती हूँ...।", 'ये कहानी यू खत्तम हो सकती ये तो सोचा था मैंने,। स्वरांश परीक्षा से पहले ही कुछ बता  देना चाहती थी। तुम इसे किस तरह लोगों से डर 
लगता था, "कहीं तुम्हारा परीक्षा परिणाम  गड़बड़ा ना जाए ,"हमारा सफ़र यहीं तक था, स्वरांश- आज के बाद मै तुमसे 'कभी नहीं' मिलूंगीं..।
       उसे एक झटका लगा। स्वरांश को भारी शिला ने दबा दिया था। ऐसा लगा पत्तो के साथ-साथ मंदिर भी हिल रहे। सब खत्म..। ऐसा  नहीं था की परी खूश थी उसे भी बड़ा गम था। वो देखना चाहा उसके चेहरे मे क्या है, स्वरांश देख न सका वो इस जीवन यात्रा मे अधूरा छोड़ खूद एक नई दुनिया बसाने निकल
गयी।
~राहुल कुमार, अलीगंज (जमुई)
      मो :- 96610 03520