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जमुई : आंगनबाड़ी केंद्रों पर सुविधाओं का अभाव, पढ़िए क्या क्या है परेशानियां


न्यूज़ डेस्क | अभिषेक कुमार झा】:-
शिक्षा का छोटा मंदिर कहे जाने वाले आंगनबाड़ी केंद्रों की स्थिति जिले भर में संतोषजनक नहीं है। आंगनबाड़ी केंद्रों के छोटे बच्चे को क्रियाकलाप के बारे में सिखाया जाता है। तीन वर्ष से छह वर्ष तक के बच्चों को शाला पूर्व शिक्षा कार्यक्रम से जोडकऱ शिक्षा दी जाती है। 


ऐसे आंगनबाड़ी केंद्रों में नौनिहालों के लिए पेयजल सुविधा के नाम पर कुछ भी नहीं है।

- [क्या है स्थिति] :-

जमुई जिले अंतर्गत बरहट, लक्ष्मीपुर, झाझा आदि प्रखंडों के सुदूर इलाकों में स्थति कुछ आंगनबाड़ी केंद्र कागजों पर चल रही है तो, कुछ किराए के मकान में। कुछ आंगनबाड़ी केंद्रों में पेयजल की सुविधा नहीं है तो कुछ आंगनबाड़ी केंद्रों पर शौचालय का अभाव है। ऐसे में इन केंद्रों पर पढ़ने वाले बच्चों को कई तरह की समस्या होती है। बच्चे पढ़ने तो आते हैं लेकिन कभी पानी पीने के लिए तो कभी शौच आदि के लिए दूसरे जगहों पर जाना होता है। ऐसे में उनकी पढ़ाई भी खराब होती है। इस समस्या की तरफ विभाग का ध्यान नहीं है।

ग्रामीण एवम शहरी क्षेत्र के लगभग आंगनबाड़ी केंद्र को सरकारी चापाकल नसीब नहीं है। परिणामतः आंगनबाड़ी सेविका व सहायिका को पानी व शौचालय के लिए वैकल्पिक व्यवस्था का प्रबंध रखना पड़ता है। आंगनबाड़ी सेविका व सहायिकाओं के दर्द का अनुभव करना हो तो पहाड़ी क्षेत्रों में आइए जहां पर संचालित आंगनबाड़ी केंद्रों पर परेशानी और समस्याओं का अंबार लगा हुआ है।
झाझा प्रखंड के बोड़वा पंचायत अंतर्गत बखौरीबथान पंचायत स्थित आंगनबाड़ी केन्द्र संख्या 124 में सेविका के पद पर कार्रयत कुमारी सुलेखा बताती हैं कि केन्द्र को अपना भवन न होने से केन्द्र को एक निजी भवन में संचालित कर रहे हैं। केंद्र में पेयजल एक समस्या है जिसपर विभाग ध्यान नही दे रहा। केंद्र से कुछ दूर स्थित एक चापाकल से संग्रहित किये हुए जल से रोज का दैनिक कार्य किसी तरह पूरा होता है। वहीं केंद्र संख्या 120 में कार्यरत जुस्तीना सोरेन कहती हैं कि पहाड़ी इलाका होने के कारण पानी की किल्लत है। पानी की परेशानी से ग्रामीणों के अलावे केंद्र पर पढ़ने वाले बच्चों को भी परेशानी होती है।

- [ लोस चुनाव में आंगनबाड़ी मुद्दा नहीं ]-

हालांकि इस लोकसभा चुनाव में स्कूलों पर पेयजल व शौचालय की व्यवस्था को सुदृढ़ कराने का मुद्दा सुर्खियों में रहा, लेकिन आंगनबाड़ी केंद्रों की तरफ न किसी प्रतिनिधि का ध्यान गया और न ही विभागीय अधिकारियों का, लिहाजा लोस क्षेत्र में आंगनबाड़ी केंद्रों की स्थिति दिन ब दिन काफी खराब होती जा रही है।

इधर, आंगनबाड़ी के नाम पर लाखों रुपये की सरकारी राशि खर्च होने के बावजूद पानी जैसी समस्याओं में अव्यवस्था का पर्याय बन जाना विभागीय उदासीनता को दर्शाता है।

इनपुट :- राजीव रंजन (झाझा)