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बुधवार, 6 मार्च 2019

भोजपुरी फिल्मों को अश्लीलता से मुक्त कराना महाभारत की लड़ाई लड़ने जैसा : नीता


मनोरंजन (अनूप नारायण) :
भोजपुरी इंडस्ट्री  जिस दौर से गुजर रही है, उसमें साफ-सुथरी फिल्मभ बनाना कोई आसान काम नहीं है। बावजूद इसके मातृभाषा से मोहब्बमत करने वाले लोग इस प्रयास में जी जान से जुट गये हैं कि भोजपुरी को एक बार फिर उसका खोया मान-सम्मा न दिलाया जाये। सबसे अहम बात ये है कि इस बीड़ा को एक महिला ने उठाया है और उनका नाम है नीता कुमारी।


नीता कुमारी मां-बेटे के रिश्तों पर आधारित एक बेहद साफ-सुथरी पारिवारिक फिल्‍म ‘लाल’ लेकर आ रही हैं, जिसे आप अपनी बहन-बेटी-मां किसी के भी साथ थियेटर में जाकर बेहिचक देख सकते हैं। न किसी गीत से आपकों शर्मिंदगी महसूस होगी, न ही कोई संवाद या दृश्ये आपको शर्मिंदा करेगा। नंदवारा, सीतामढ़ी, बिहार की रहनेवाली नीता कुमारी बचपन से भोजपुरी सिनेमा देखने की शौकीन रही हैं और उसी शौक ने नीता कुमारी को आज निर्मात्री बना दिया। वो कहती हैं, ‘‘फिल्मेंन तो बचपन से देखा करती थीं, लेकिन मैं भी कभी फिल्म  बनाऊंगी, सपने में भी सोचा नहीं था। सच कहूं तो भोजपुरी फिल्मों की जो दुर्दशा आज हो रही है, उसने मुझे फिल्मु बनाने के लिए मजबूर कर दिया।’’
अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए नीता कुमारी कहती हैं, ‘‘2005 की बात है। अचानक मेरे मन में फिल्मप बनाने का खयाल आया। लेकिन जिससे बात करो, वो सभी चीट फंड वाले थे। ऐसे लोगों के साथ काम कर पाना मेरे बस की बात नहीं थी। इसी बीच लेखक-निर्देशक राजेश कुमार से हमारी मुलाकात हो गयी। बातचीत का दौर चला तो मैंने महसूस किया कि राजेश जी दूसरे मेकर्स से एकदम जुदा हैं। और सबसे बड़ी बात ये कि मैं तो अश्लीजलता के खिलाफ थी ही, राजेश जी भी उसी मंजिल के मुसाफिर मिल गये। उन्हों ने पहले से ही तय कर रखा था कि जब भी कोई फिल्म  बनायेंगे, साफ-सुथरी ही होगी, ताकि उसे उनके घर-परिवार के लोगों से लेकर समाज का हर वर्ग बेहिचक-बेझिझक देख सके। दरअसल मैं एक औरत हूं और वो भी एक संस्काजरी परिवार से। संस्कािरों के रक्षण की जिम्मेतदारी हम सभी नहीं उठायेंगे तो कौन उठायेगा?’’
स्वषभाव से बेहद विनम्र नीता कुमारी बताती हैं कि राजेश कुमार से डिस्करशन करने के बाद जिस फिल्मे को बनाने का निर्णय लिया गया, उसका शीर्षक है ‘बहिना भइया का प्याहर’। वो आगे कहती हैं, ‘‘इसके गीतों की रिकॉर्डिंग कर ली गयी थी और शूटिंग करने की योजना भी बनायी जा रही थी कि अचानक ‘लाल’ चर्चा का विषय बन गयी। तब इसे किसी और बैनर के तले बनाया जा रहा था, कुछ शूटिंग भी हो चुकी थी, लेकिन निर्माता में इतना दम-खम नहीं था कि फिल्मू को पूरी कर सके। चूंकि इसका विषय, इसकी कहानी, इसके गाने सभी चीजें मुझे बेहद खूबसूरत लगीं, इसलिए मैंने सोचा कि क्योंत न इसे मैं ही पूरी कर डालूं।’’
इससे पहले कि मैं कुछ पूछूं, वो चंद सेकंड चुप रहने के बाद खुद कहने लगीं, ‘‘मैंने जब उस प्रोजेक्टू को अपने हाथ में लेने की बात उस निर्माता से की तो उसने हमारे सामने कई उल्टीे-सीधी शर्तें रख दी। उसने कहा कि हीरो वही रहेगा, फलां हीरोइन रहेगी, सह-निर्माता के तौर पर उसके नाम के साथ ही उसके बैनर का भी नाम पोस्टहर पर जायेगा। न चाहते हुए भी मुझे उसकी ये सभी शर्तें माननी पड़ीं। सच कहूं तो इस वजह से मुझे मानसिक रूप से बहुत परेशान होना पड़ा। आर्थिक तौर पर भी काफी नुकसान उठाना पड़ा। फिलहाल मैं उन बातों में नहीं जाना चाहती। बस इतना समझ लीजिए कि एक तरह से महाभारत की लड़ाई लड़नी पड़ी मुझे। बहरहाल, परेशानियां चाहे जैसी भी आयीं, सभी का सामना किया और आज फिल्म  रिलीज के लिए तैयार हो चुकी है। ये अपने आपमें बहुत बड़ी बात है।’’
लेखक-निर्देशक राजेश कुमार के बारे में पूछने पर नीता कुमारी कहती हैं, ‘‘राजेश जी के काम से मैं बेहद खुश एवं संतुष्टा हूं। उन्होंाने हर तरह से मेरा सहयोग किया। फिल्मे को पूरा करने के लिए उन्हों ने जान लड़ा दी। कितनी बार तवियत खराब हुई, आज भी वो स्वनस्थ् नहीं हैं, बावजूद इसके वो डंटे हुए हैं। निर्माण से लेकर रिलीज तक। मैं उनकी बहुत आभारी हूं।’’
भोजपुरी फिल्मोंं को जो हश्र देखने को मिल रहा है, उस बारे में चर्चा करने पर नीता कुमारी कहती हैं, ‘‘नफा-नुकसान का खतरा तो हर व्यउवसाय में होता है। फिर भी लोग करते ही हैं न। वैसे मैं यहां एक बात साफ कर दूं कि मैंने नफा-नुकसान को सोचकर फिल्मं नहीं बनायी है। मेरा एकमात्र मकसद यही था कि मैं एक साफ-सुथरी फिल्मै बनाऊं, जिससे समाज में एक बेहतरीन संदेश जाये, लोगों में आशा की किरण जगे कि अब भोजपुरी में भी श्लीेल फिल्में  भी बननी शुरू हो गयी हैं।’’ 
निर्मात्री नीता कुमारी अंत में भोजपुरी फिल्मों  के दर्शकों से कहती हैं,‘‘मैंने एक निहायत साफ-सुथरी फिल्म बनायी है। जैसा लोग चाहते थे। साफ-सुथरी भी इतनी कि भाई-बहन, बाप-बेटी हर कोई साथ जाकर फिल्म को देख सकता है। किसी को कहीं हिचक-झिझक महसूस नहीं होगी। अब फैसला दर्शकों के हाथ में है। ऐसे में मै उन सभी लोगों से यही कहना चाहूंगी कि वो थियेटर में आयें और देखें तो सही कि मैंने मां-बेटे के संबंधों पर कितनी साफ-सुथरी फिल्मं बनायी है।’’

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