[न्यूज डेस्क | शुभम् कुमार]
हाल मे ही आई नोवेल्टी एण्ड कंपनी द्वारा प्रकाशित पुस्तक "सैदपुर से बेउर" छात्रों के बीच बहुत ही चर्चा का विषय बनी हुई है. इस किताब मे एक छात्र नेता के सैदपुर हॉस्टल से बेउर जेल तक के जीवन संघर्ष की आत्मकथा है, जिसे आज के युवा पढ़ने मे काफी रुचि दिखा रहे है. पाठको को बता दूँ कि ये पुस्तक लिखी है पटना विश्वविद्यालय के पूर्व छात्रसंघ उपाध्यक्ष अंशुमान ने, जो उनके खुद के छात्रजीवन पर आधारित है.
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"सैदपुर से बेउर" के लेखक अंशुमान ने अपनी पुस्तक के कुछ अंश पर बात करते हुए बताया कि "सैदपुर से बेउर " एक छात्र नेता पर बीती हुई घटना पर आधारित है, जिसमें छात्र की कोई गलती न होते हुए भी पुलिस बिना कोई सबूत के उसे गिरफ्तार कर उसके साथ एक आतंकवादी की तरह बर्ताव करती है. अंशुमान ने बताया कि ये उनकी आखों के सामने घटित हकीकत भरी कहानी है. ये कहानी सैदपुर हॉस्टल से लेकर बेउर जेल मे रह रहे कैदियो की है. पटना विश्वविद्यालय में हो रही तमाम तरह की परेशानी के बावजूद विश्वविद्यालय प्रशासन के मुक दर्शक बने रहने कि ये एक जीवंत कहानी है. इसमें बताया गया है कि कैसे पटना विश्वविद्यालय का एक छात्र पहली बार जेल जाता है. कैसे एक ईमानदार व्यक्ति कुछ बुरे लोगो के चक्कर में पड़कर अपनी जिंदगी का बुरा दौर झेलता है. कैसे एक कोचिंग संस्थान छात्रों को दलाली करने का प्रलोभन देती है. जेल में कैसे गरीब आदमी की जिंदगी होती है. अंशुमान ने बताया कि जेल गलत लोग ही नही जाते बेकसूर लोग भी जेल जाते है, सैदपुर से बेउर एक भोगा हुआ यथार्थ है. जेल शब्द खुद मे ही एक आतंक है.
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