[अलीगंज | चन्द्रशेखर सिंह ]
गम का पर्व मुहर्रम शुरू हो चुका है। मुहर्रम की शुरुआत होते ही या हुसैन के नारे गुंजने लगते हैं। डंके की चोट पर युवा वर्ग के लोग परंपरागत हथियार के साथ इमामबाड़े के समीप जाकर रस्म अदा कर रहे हैं। मंगलवार को जिले के विभिन्न गांव व शहरों के इमामबाडे के समीप मुसलमान भाइयों ने पैक बाँधे और या हुसैन के नारे लगाते हुए पैकर एक दुसरे जगह जाने के लिए रवाना हो गये।
कहा जाता है कि मन्नत रखने व अपने काम की पुरा होने पर लोग पैक बन इमामबाडे का भ्रमण करते हैं।बताया जाता है कि जो लोग मुहर्रम के मौके पर जो पैक बाँधते हैं वे घर नहीं जाते हैं। जगह-जगह विचरण करते हैं। ताजिया स्थापन होने के दौरान इमामबाडे के समीप ही पैक खोला जाता है। पैक बन अपने कमर व पैर में घुंघरू बाँधकर गांव की गलियों व सड़क होते विभिन्न इमामबाड़े का दर्शन कर उसकी परिक्रमा करते हैं। ग्रामीण क्षेत्र में इन दिनों घुंघरू की आवाज सुनते ही समझ लिया जाता है कि पैक वाले जा रहे हैं। गांव देहात में छोटे-छोटे बच्चे सड़क पर पैकर आते देख जमीन पर लेट जाते हैं।
ऐसी मान्यता है कि पैक की दुआ से दुख दूर हो जाते हैं। इन दिनों पैक दर्जनों की संख्या में टोली बनाकर इमामबाड़ों का भ्रमण करते व चक्कर लगाते नजर आ रहे हैं। वहीं मुहर्रम को लेकर जगह-जगह सिपल का निर्माण कराया जा रहा है। प्रखंड के 21 जगहों पर ताजिया का निर्माण होता है। और सभी प्रखंड के इस्लामनगर कब्रिस्तान मैदान में सभी ताजिया आकर आपस में मिलन व पहलाम करते हैं। यहां पर काफी भीड़ लगती है और मेला का भी आयोजन होता है। पुलिस भी सुरक्षा को लेकर काफी संख्या मौजूद रहती है। मेले में दोनों संप्रदाय के लोग लाठी बाजी कर अपनी -अपनी करतब दिखाते हैं।