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रविवार, 4 फ़रवरी 2018

नितेश की रचना :- ...क्यों हमसे बचपन छीनी है

रोते रोते हंसते थे यह बचपन की किलकारी थी कोई मुसीबत आने पर साथ मां की सारी थी
छोटी-छोटी बातों पर हम करते थे शिकायत अब तो हर मुसीबत सहने की हो गई है आदत
आज अपनों का साथ नहीं है फिर भी हम मुस्कुराते हैं
आज मेस का खाना अच्छा नहीं था यह बात मां से छुपाते हैं
उड़ती पतंगों सा मन था उर्जा से भरा तन था कभी-कभी सोचता हूं कितना हंसी बचपन था
सुबह 4:00 बजे उठने वाले आज रात भर जाग जाते हैं
खुद का करते ही हैं सीनियर भी असाइनमेंट कराते हैं
क्लास की लड़कियां अपने प्यार को सब लड़कों में बांट रही है,
लेकिन इन विचारों का क्या पता यह हमारा छुट्टियां काट रही हैं
बैठे बैठे सोचता हूं यह मैं क्या कर रहा हूं
जो गुनाह मैंने किया ही नहीं उसकी सजा क्यों भर रहा हूं
घर में था सब का दुलारा आज रैगिंग का शिकार हो गया
स्कूल का बोर्ड टॉपर कॉलेज जाकर बेकार हो गया
होमवर्क पूरा नहीं किया पर कॉलेज के फंडे रट्टे हैं सीनियर की बाइक आते देख रास्ते से हटे हैं
सोचते थे कि कॉलेज लाइफ बहुत ही खूबसूरत है लेकिन यहां सलामत रहने के लिए हमें वार्दे की जरूरत है
अभी सफर बाकी है, मशीन जैसी जिंदगी जीनी है पूछता हूं भगवान से क्यों हमसे बचपन छीनी है ?
क्यों हमसे बचपन छीनी है ?
नितेश मिश्रा
मानित, भोपाल | 04/02/2018(रविवार)
www.gidhaur.com

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