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दयानंद सरस्वती को युवा नायक ने किया नमन

gidhaur.com(सोनो) :-  महान सन्यासी एवं महान चिन्तक महर्षि दयानन्द सरस्वती की जयंती पर उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए  युवा नायक माननीय सुमित कुमार सिंह जी  ने कहा कि वे पहले ऐसे संस्कृतज्ञ थे जिन्होंने विद्वानों को वेदार्थ और शास्त्रार्थ के लिए ललकारा। वे वेदों की सत्ता को सर्वोपरि मानते थे। महर्षि दयानंद जी ने 1875 में आर्यसमाज की स्थापना की। आर्यसमाज के नियम और सिद्धांत मानव के कल्याण के लिए हैं। आर्य समाज का मुख्य उद्देेश्य शारीरिक , आत्मिक और सामाजिक उन्नति के जरिये संसार का उपकार करना है। वे तत्कालीन समाज में व्याप्त सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ थे। स्वामी दयानंद पहले व्यक्ति थे जिन्होंने दलितों को स्वदेशी कहा और महात्मा गांधी जी से पहले अछूत परंपरा को दूर करने की लड़ाई लड़ी थी। स्त्रियों की शिक्षा के लिए उन्होंने जोरदार आन्दोलन चलाया।  वे बाल विवाह और सती प्रथा के विरोधी और विधवा विवाह के पक्षधर थे।
ऐसी हस्ती को नमन करते हुए श्री सिंह ने कहा कि स्वामी दयानंद जी ने ही देशवासियों में राष्ट्रीयता का अलख जगाने का काम 1857 में अंग्रेजों के खिलाफ जो क्रांति हुई उसके सूत्रधार स्वामी दयानंद सरस्वती ही थे।

(चन्द्रदेव बरनवाल)
सोनो | 12/02/2018(सोमवार)
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