Gidhaur.com (विशेष) : पटना के प्रख्यात शिक्षाविद एलिट कोचिंग के संस्थापक अमरदीप झा का संस्मरण जो सोशल मीडिया पर लूट रहा है वाह-वाही। आप भी पढिए उत्कृष्ट लेख को।
हाँ... मैं पटना में रहता हूँ.
तुम्हारी कहानी का वो पन्ना, जिसके बिना तुम्हारी किताब पूरी नहीं होती.
तुम्हारे महानगरों जैसे सैर-सपाटे,घूमने-टहलने जैसी चीजों का नितांत अभाव...
उपर से कचरे-गंदगी की बात अलग.
वही पटना, जहाँ रोड पर भीड़ बहुत ज्यादा है,
धुँआ-धूक्कर, पसीना, असभ्य लोग, गाली-गलौज, बेतरतीब दौड़ती गाड़ियाँ...
धुँआ-धूक्कर, पसीना, असभ्य लोग, गाली-गलौज, बेतरतीब दौड़ती गाड़ियाँ...
पर... यहीं तो मैं हूँ.
एक ऐसा बोध...
जिसके लिये आँखों से कितनी बार आँसू छलके,
कितनी बार बेमतलब के कहकहे...
तो कितनी बार लाल-पीले हृदय...
एक ऐसा बोध...
जिसके लिये आँखों से कितनी बार आँसू छलके,
कितनी बार बेमतलब के कहकहे...
तो कितनी बार लाल-पीले हृदय...
हाँ... मैं पटना में ही रहता हूँ.
जहाँ की सडकों ने तुमको अल्हर होते देखा,
शांत-गंभीर थोड़े-डरे हुये परीक्षा की तारीखों को...
रोड के किनारे गोलगप्पे और झुंड में खड़े होकर मस्ती करते शाम तुम्हारे यहीं कटे...
जहाँ की सडकों ने तुमको अल्हर होते देखा,
शांत-गंभीर थोड़े-डरे हुये परीक्षा की तारीखों को...
रोड के किनारे गोलगप्पे और झुंड में खड़े होकर मस्ती करते शाम तुम्हारे यहीं कटे...
बड़े-बड़े मॉल, बड़ी-बड़ी इमारतें और उसके अन्दर तुम्हारे दिन और रात किसी फिल्म के अदाकारों को अपना आदर्श देखती हों,
पर इस सुबहो-शाम के आगे सब कड़ा-कड़ा, खोखला और दूसरे पर झुका है...
तुम्हारी नियति पटना से तुमको इतनी जल्दी नहीं अलग होने देगी...
कभी तुमको अपने घर जाना होता होगा तो रास्ते में गाँव के किसी चौक-चौराहे के जैसे पटना आता होगा.
शायद, तुमको तब कभी थोड़ी-देर के लिये याद आती होगी कि कोई किसी कोने में सुबह से रात करते अपनी ज़िन्दगी को पागल जैसे बर्बाद करता है...
शायद, तुमको तब कभी थोड़ी-देर के लिये याद आती होगी कि कोई किसी कोने में सुबह से रात करते अपनी ज़िन्दगी को पागल जैसे बर्बाद करता है...
या तुम अपने स्वजन-सम्बन्धियों,अपने इष्ट-मित्रों के भाव-तरंगों की भीड़ में इस पागल मास्टर को भूला जाते होगे...
फ़ेसबुक, व्हाटसप, इंस्टाग्राम पर पोस्ट और फोटो.
समय के साथ तुम्हारे चेहरे और दिमाग के बदलने की गवाही हैं...
समय के साथ तुम्हारे चेहरे और दिमाग के बदलने की गवाही हैं...
सब-कुछ कितनी जल्दी बीत रहा है...
तुम्हारे लिये वर्षों पुरानी कहानी,
कोई बीती याद या तुम्हारे बचपने का हिस्सा हो सकता हूँ...
तुम्हारे लिये वर्षों पुरानी कहानी,
कोई बीती याद या तुम्हारे बचपने का हिस्सा हो सकता हूँ...
पर, मैं तो किसी प्लेटफॉर्म पर गरम-चाय, गरम-चाय वाला और तुम जाती हुई रेलगाड़ियों के डिब्बे में बैठे यात्री...
अपना ध्यान रखना...
मैं मस्त हूँ एलिट में.
मैं मस्त हूँ एलिट में.
संकलन - अनूप नारायण
15/10/2017, रविवार