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रविवार, 9 जुलाई 2017

धर्म : आदिकाल से पूजनीय हैं बाबा कोकिलचंद, पढ़ें पूरी कहानी

Gidhaur.com    |     गिद्धौर अंतर्गत, पहाड़ के तलहटी में बसा गंगरा गाँव आज बाबा कोकिलचन्द के नाम से और भी अभिभूत हो रहा है। आइए आज बाबा कोकिलचन्द से जुड़ी उनकी एक गाथा का छोटा सा अध्याय संक्षेप मे जानते हैं।
ऐसा  कहा  जाता है कि मानव सभ्यता के आदिकाल से ही मानव के रुप में परमेश्वर की शक्ति का अवतरण की परम्परा का इतिहास पौराणिक कथाओं और गाथाओं में वर्णित है। इनमें भी मनवांछित फल प्रदान करने का सामर्थ होता है और ये देवताओं की भातिं  सर्वपूज्य हो जाते हैं। गिद्धौर प्रखंड के गंगरा पंचायत स्थित सुप्रसिद्ध बाबा कोकिलचंद देव भी इसी श्रेणी के मानवदेव हैं, जिनका अवतार गंगरा ग्राम की पवित्रभूमि में आज से लगभग 750 वर्ष पूर्व हुआ था।
इनका जन्म पदुमपुर में एक भूमिहार ब्राह्मण के यहाँ हुआ। इनके पिता का नाम ठाकुर रुपचंद्र था। इस गाँव को छोडकर कोकिलचंद अपने भाईयों के साथ सिकन्दरा प्रखंड के कैयार गाँव में जा बसे। परंतु इन्होने इस गाँव को भी छोड, अंचारी गाँव के निवासी बन गये। वहाँ से कोकिलचंद सपरिवार उलाई एवं नागी नदी के बीच भूखंड पर अपना निवास बनाया और इसका नाम 'गंगरा' रखा। इस गाँव में वे एक कृषक परिवार के रुप में रहने लगे और अपनी गृहस्थी बसाई। इसी क्रम में अगहन माह के पूर्णिमा रविवार दिन को कोकिलचंद बनहारों के साथ लकडी लाने जंगल जाने को तैयार हुए। उन्होने अपनी भाभी रहमत से कहा- 'ईख पेरने के लिए कोलसार बनाने हेतु मैं बनहारों के साथ जंगल जा रहा हुँ  इसलिए मुझे भोजन करने के लिए कुछ दे दें।' भोजन देते समय रहमत ने कहा- 'कोकिलचंद, आपको आज बाघ खा जाएगा।'

रहमत की यह भविष्यवाणी सही निकली। जंगल में लकडी काटकर जब कोकिलचंद लौटने की तैयारी करने लगे तो एक विशाल बलशाली बाघ आ खडा हुआ और कोकिलचंद पर आक्रमण कर दिया। अत्यंत बलशाली ठाकुर कोकिलचंद बाघ से भीड गये और उन्होने उसे मार गिराया। लहुलुहान हो वे घर की ओर ज्योंहिं बढे कि एक बाघिन ने उन्हें रोक लिया। बाघ से लडते हुए कोकिलचंद में दिव्य वीरता के भाव ने उनकी चेतना को निर्मल और विराट बना दिया। इस भाव से ओतप्रोत कोकिलचंद  मृत्यु पर विजय हासिल कर अमर चेतना से जुड गए। उनकी विराट चेतना ने बाघिन में स्वयं माँ परमेश्वरी का साक्षात्कार किया और सहज भाव से आत्मसमर्पण कर अपना प्राण माँ की चरणों में न्यौछावर कर दिया। विश्वमयी माँ की सारी शक्ति कोकिलचंद में समाहित हो गई और ठाकुर कोकिलचंद देव कोकिलचंद के रुप में रुपांतरित हो गये। सहज शारदा उनके कंठ में विराजमान हो गई और वरदायनी गौरी की सारी शक्ति उन्हें प्राप्त हो गई। अब कोकिलचंद सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान और सर्वव्यापी हो गये।
कोकिलचंद ने अपने इस शक्ति का परिचय सर्वप्रथम गिद्धौर राज्य के तत्कालिक राजा को उनके पास जाकर दिया। गिद्धौर महाराज मुसलमान राजा के द्वारा किसी कारण बंदी बना लिये गये थे और दिल्ली के कैदखाने में रखे गये थे। राजा को कोकिलचंद ने वहाँ जाकर दर्शन दिया, और मुक्त होने की युक्ति बताई। राजा को मुक्त कराकर वे उन्हें गिद्धौर तक ले आये और स्वयं उनसे अलग हो गये। राजा ने कोकिलचंद की खोज की और यह जानकर हैरान हो गये कि कोकिलचंद कुछ दिन पहले ही बाघ द्वारा मारे गये थे। कुछ पल के लिए राजा सौभाग्य और पश्चताप का चिंतन करते हुए बाबा कोकिलचंद को अपना आराध्य के रुप में स्वीकार करते हुए उनकी पिंडी बनवायी, मंडपा बनवाया एवं उनकी पूजा अर्चना हेतु 18 बीघा जमीन सेवायत को प्रदान किया, जिससे बाबा की पूजा अर्चना होती है। अपनी देव शक्ति का परिचय उन्होने देवघर मंदिर की ध्वजा को बार-बार झुकाकर दिया। भगवान शिव ने कोकिलचंद के देवशक्ति को पहचानकर उन्हें अपने मंदिर के पश्चिम द्वार (सरस्वती मंदिर के सामने) स्थापित करवाया और देवघर मंदिर के सभी देवी-देवताओं के साथ पूजा पाने का अधिकार प्रदान किया।

बाबा कोकिलचंद ने अपनी ईश्वरीय शक्ति का परिचय मरी हुई गाय को जीवन प्रदान कर दिया। कहा जाता है कि कोकिलचंद की शक्ति का प्रमाण पाने के लिए एक गाय मारकर उन्हें जीवित करने को कहा गया। कोकिलचंद के भगत ने भगवान विष्णु का नाम लेकर मरी हुई गाय पर अक्षत छिड़क दिया और गाय जीवित हो गई। दूर-दुर से आये लोगों ने इस ईश्वरीय चमत्कार को देखा और उसदिन से बाबा कोकिलचंद सर्वपुज्य देव बन गये। बाबा कोकिलचंद  देव शिव स्वरुप, क्षमाशील, दयासागर और मनवांछित फल प्रदान करने वाले बलिराज हैं। श्रद्धा और विश्वास के साथ इनकी अर्चना और प्रार्थना करने वालों की मनोकामना पूर्ण करते है। इनकी यशगाथा दूर-दूर तक फैली है और यह एक आस्थालय रुप में जाना जाता है। जहाँ सारे देवी-देवताओं के नामों का उद्घोष होता है, उनके साथ बाबा कोकिलचंद  के नाम का भी जयघोष किया जाता है।             

कहना हैं मंदिर के पुरोहित का
'तेज, पुनीत और ईश्वरीय अंश शक्तिपुंज वाले बाबा कोकिलचंद आज गंगरा एवं आसपास के लोगों के लिए आस्था और विश्वास का केन्द्र बने हुए हैं। जो भी भक्त बाबा के दरबार में सच्चे मन और भक्ति भाव से आते हैं, बाबा कोकिलचन्द उनकी मुरादें अवश्य पुरी करते हैं।' - भगत जी, पुरोहित, बाबा कोकिलचंद मंदिर, गंगरा

कहते हैं समिति के सचिव
'कोकिलचन्द बाबा की असीम अनुकम्पा से मन्दिर को युवाओं का सहयोग मिलता रहता है, प्रत्येक सोमवार की संध्या आरती में युवाओं की सहभागिता बाबा कोकिलचन्द की महिमा का बखान करती है।' - चुनचुन कुमार, सचिव, बाबा कोकिलचंद सेवा समिति

ग्रामीणों की सुनिये
गंगरा  के स्थानीय निवासी कल्यान कुमार सिंह, चंदन कुमार, निलेश कुमार, अरविंद कुमार, शंभु सिंह, पप्पु सिंह, बिलायती सिंह, गणेश सिंह, गुड्डु कुमार, सातो सिंह, शिवेश पांडेय, पवन सिंह, श्यामसुंदर पांडेय, राघवेन्द्र पान्डे आदि ने बाबा कोकिलचन्द के महिमा का बखान करते हुए बताया कि बाबा कोकिलचन्द की उपस्थिति का आभास हमें सदैव होता रहता है। बाबा कोकिलचंद के यश को देखते हुए हम ग्रामीण बाबा के मन्दिर निर्माण मे अपना यथासंभव  योगदान कर रहे हैं।


(अभिषेक कुमार झा)
~गिद्धौर        |        09/07/2017, रविवार 
www.gidhaur.com 

(नोट:- बाबा कोकिलचंद से सम्बंधित उनके जीवन चरित्र के बारे में gidhaur.com पूर्ण समर्थन नहीं करता है। इस आलेख को किंवदंतियों व क्षेत्र में प्रचलित किस्सों-कहानियों के आधार पर तैयार किया गया है।)

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