भारत जैसे धार्मिक देश में बिहार की अस्मिता और आस्था का भी अपना एक अतुल्य वजूद है। बिहार के जमुई जिले में ऐसे कई स्थान हैं जहाँ आस्थाओं का सैलाब उमड़ते हुए देखने को मिलता है। इसका एक ज्वलंत उदाहरण जमुई जिले के झाझा प्रखंड अंतर्गत धमना गाँव स्थित प्रसिद्ध माँ काली का मंदिर है जो स्थानीय व जिले भर के लोगों के लिए आज भी गहरी आस्था का केन्द्र बना हुआ है। यहाँ की माँ काली दक्षिणेश्वर काली के रूप में विख्यात हैं।
प्राचीन है मन्दिर
धमना के बुजुर्गों की मानें तो इस मंदिर में माँ काली की पूजा पिछली चार पीढ़ियों से चली आ रही है। मतलब स्पष्ट है कि प्राचीनकाल से ही यह मंदिर यहां के लोगों के धार्मिक आस्था का केन्द्र बना हुआ है। परन्तु कुछ बुजुर्गों की मानें तो वो अनुमानित तौर पर बताते हैं कि इस ऐतिहासिक मंदिर में सन् 1684 से ही पूजा पाठ हो रही है।
अटल है पूजा की तिथि व विधि
एक अनुमान के मुताबिक आस्था के इस कुम्भ मे हाल के वर्षों में लगभग पचास हजार से अधिक श्रद्धालुओं का आना-जाना लगा रहता है। यहाँ प्रत्येक वर्ष ज्येष्ठ मास की नवमी तिथि को विशेष वार्षिक पूजा का आयोजन होता है। जिसमे हजारों की संख्या में श्रद्धालु पुराने रीति-रिवाज के अनुसार पूजा - अर्चना करते हैं ।
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कलश स्थापना से शुरू हुआ पूजा विधान द्वादशी को संपन्न
झाझा के धमना स्थित इस काली मंदिर मे इस वर्ष 29 मई (अमावस्या) को कलश स्थापना के साथ ही पूजा का विधान शुरू हुआ जिसका समापन 6 जून (द्वादशी) को संपन्न हुआ। अमावस्या के दिन सैंकडो की संख्या मे जूटे श्रद्धालू पूजा के विधि विधान और कलश स्थापना को और भी सशक्त करते हुए देखे गये। मंगलवार द्वादशी को सैंकड़ों पाठा बलि एवं रात्रि पूजा के साथ माँ दक्षिणेश्वर काली की पूजा संपन्न हुई।

दंडवत देने वालों की लगती है भीड़
मन्दिर के समीप स्थित धर्मशाला में इस वर्ष भी मन्नत मांगने व पूरा होने पर दंडवत देने वालों की भीड़ लगी रही। प्रतिदिन सैंकड़ों महिला-पुरुष श्रद्धालुओं ने स्नान कर, मंदिर की परिक्रमा कर दंडवत दी। दंडवत देने वाले श्रद्धालु के ठहरने से धमना बाजार में भी चहल-पहल रहा। स्थानीय दुकानदारों की जमकर कमाई हुई। इस मन्दिर मे हजारों श्रद्धालु मन्नत मागते हैं और पूरा होने तक कष्टी देकर पूजा-अर्चना के लिए आते हैं।
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धमनावासी पेश करते है सांप्रदायिक सौहार्द की मिशाल
इस मंदिर से जुड़ी गहरी आस्था ही है कि धमना एवं आसपास के क्षेत्र के लगभग 18 से भी अधिक गाँव के हिन्दू अथवा मुस्लिम प्रत्येक घरों मे कलश स्थापना के दिन से ही लहसुन-प्याज और मांसाहार बन्द हो जाता है। जो न केवल गहरी आस्था को प्रकट करता है, बल्कि इसकी मान्यताएं हमारे समाज को सांप्रदायिक सौहार्द की मिशाल भी पेश कर रही है।

जिलाभर के लोगों का लगता है जमावड़ा
धार्मिक रसधारा मे भींगना, जमुई जिले का इतिहास रहा है। अपने इसी इतिहास को कायम रखने के लिए जिलाभर के लोग, माँ काली के इस मंदिर मे बह रहे आस्था की गंगा मे डूबकी लगाते हैं। जमुई, झाझा, गिद्धौर, सोनो सहित दूरदराज के लोग भी यहाँ माँ काली की पूजा करने एवं उनका आशीर्वाद लेने आते हैं।
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अवश्य पूरी होती हैं मुरादें
इस मन्दिर के पूजारी, जगत नारायण पान्डेय एवं ललन पान्डेय से बातचीत करने पर उन्होंने कहा कि माँ काली के इस मन्दिर में साफ एवं सच्चे मन से मांगी गयी मुरादे अवश्य पूरी होती है। उन्होने बताया कि पूजा, दंडवत और बलि को कठिन नियम के साथ किया जाता है। दंडवत देने वाले श्रद्धालु मंदिर के निकट बने धर्मशाला में ठहरकर नौ दिनों तक नियम-धर्म के साथ पूजा-अर्चना करते हैं। इस दौरान दंडवत देने वाले श्रद्धालुओं को धर्मशाला से कहीं भी जाने की मनाही होती है।
जर्जर है सड़क, पर बुलन्द हैं हौसले
झाझा के धमना गाँव स्थित माँ काली के इस मंदिर तक पहुँचने के लिए काफी हिम्मत जुटानी पड़ती है। कारण यह है कि, झाझा-जमुई मुख्यमार्ग से उतरने के बाद, जब धमना की ओर जाने वाले तीन किलोमीटर तक जर्जर सड़क पर श्रद्धालु की नजर पड़ती है तो सुखद यात्रा पर ग्रहण लग जाता है, परन्तु आस्था तो निर्जीव को भी अपनी ओर खींच लेती है, इस बुलन्द हौसले को और भी बुलंदी मिल जाती है जब सुदूर इलाके के ग्रामीण ट्रेक्टर से अपनी यात्रा कर इस मंदिर तक अपन मुरादें लेकर आते हैं।
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माँ काली के उपस्थिति का होता है आभास
कहते हैं ईश्वर सर्वत्र और हर समय मौजूद रहते हैं। धमना की यह माँ काली की उपस्थिति का आभास गाँव वालों को भी सदैव होता रहता है। माता का यह मन्दिर सदैव गुलजार रहता है, आस्था का सैलाब लगा रहता है, मंदिर में माता के जयघोष गूंजते रहते हैं। चाहूओर धार्मिक मंत्रोच्चारण, अगरबत्ती व सुंगंधित धूप और धुवन से वातावरण पवित्र रहता है। माँ काली का बुलावा अपने सभी भक्तों को मिलता रहता है। अगले वर्ष पूजा में या फिर कभी छुट्टियों में माता रानी का आशीर्वाद लेने अवश्य आएं।
(अभिषेक कुमार झा)
~गिद्धौर | 07/06/2017, बुधवार
www.gidhaur.blogspot.com
(Adv.)
प्राचीन है मन्दिर
धमना के बुजुर्गों की मानें तो इस मंदिर में माँ काली की पूजा पिछली चार पीढ़ियों से चली आ रही है। मतलब स्पष्ट है कि प्राचीनकाल से ही यह मंदिर यहां के लोगों के धार्मिक आस्था का केन्द्र बना हुआ है। परन्तु कुछ बुजुर्गों की मानें तो वो अनुमानित तौर पर बताते हैं कि इस ऐतिहासिक मंदिर में सन् 1684 से ही पूजा पाठ हो रही है।

अटल है पूजा की तिथि व विधि
एक अनुमान के मुताबिक आस्था के इस कुम्भ मे हाल के वर्षों में लगभग पचास हजार से अधिक श्रद्धालुओं का आना-जाना लगा रहता है। यहाँ प्रत्येक वर्ष ज्येष्ठ मास की नवमी तिथि को विशेष वार्षिक पूजा का आयोजन होता है। जिसमे हजारों की संख्या में श्रद्धालु पुराने रीति-रिवाज के अनुसार पूजा - अर्चना करते हैं ।
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कलश स्थापना से शुरू हुआ पूजा विधान द्वादशी को संपन्न
झाझा के धमना स्थित इस काली मंदिर मे इस वर्ष 29 मई (अमावस्या) को कलश स्थापना के साथ ही पूजा का विधान शुरू हुआ जिसका समापन 6 जून (द्वादशी) को संपन्न हुआ। अमावस्या के दिन सैंकडो की संख्या मे जूटे श्रद्धालू पूजा के विधि विधान और कलश स्थापना को और भी सशक्त करते हुए देखे गये। मंगलवार द्वादशी को सैंकड़ों पाठा बलि एवं रात्रि पूजा के साथ माँ दक्षिणेश्वर काली की पूजा संपन्न हुई।

दंडवत देने वालों की लगती है भीड़
मन्दिर के समीप स्थित धर्मशाला में इस वर्ष भी मन्नत मांगने व पूरा होने पर दंडवत देने वालों की भीड़ लगी रही। प्रतिदिन सैंकड़ों महिला-पुरुष श्रद्धालुओं ने स्नान कर, मंदिर की परिक्रमा कर दंडवत दी। दंडवत देने वाले श्रद्धालु के ठहरने से धमना बाजार में भी चहल-पहल रहा। स्थानीय दुकानदारों की जमकर कमाई हुई। इस मन्दिर मे हजारों श्रद्धालु मन्नत मागते हैं और पूरा होने तक कष्टी देकर पूजा-अर्चना के लिए आते हैं।
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धमनावासी पेश करते है सांप्रदायिक सौहार्द की मिशाल
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जिलाभर के लोगों का लगता है जमावड़ा
धार्मिक रसधारा मे भींगना, जमुई जिले का इतिहास रहा है। अपने इसी इतिहास को कायम रखने के लिए जिलाभर के लोग, माँ काली के इस मंदिर मे बह रहे आस्था की गंगा मे डूबकी लगाते हैं। जमुई, झाझा, गिद्धौर, सोनो सहित दूरदराज के लोग भी यहाँ माँ काली की पूजा करने एवं उनका आशीर्वाद लेने आते हैं।
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अवश्य पूरी होती हैं मुरादें
इस मन्दिर के पूजारी, जगत नारायण पान्डेय एवं ललन पान्डेय से बातचीत करने पर उन्होंने कहा कि माँ काली के इस मन्दिर में साफ एवं सच्चे मन से मांगी गयी मुरादे अवश्य पूरी होती है। उन्होने बताया कि पूजा, दंडवत और बलि को कठिन नियम के साथ किया जाता है। दंडवत देने वाले श्रद्धालु मंदिर के निकट बने धर्मशाला में ठहरकर नौ दिनों तक नियम-धर्म के साथ पूजा-अर्चना करते हैं। इस दौरान दंडवत देने वाले श्रद्धालुओं को धर्मशाला से कहीं भी जाने की मनाही होती है।
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माँ काली के उपस्थिति का होता है आभास
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हेल्पलाइन - 9852681895
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