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मजदूर दिवस : उपेक्षित हैं खून-पसीना बहाते मजदूर

(मजदूर दिवस पर विशेष)
आज सोमवार 1 मई को मजूदर दिवस के रूप में मनाया गया होगा। इसके मद्देनजर मजदूरों को लेकर बड़ी-बड़ी बातें और घोषणा की गई होंगी। परन्तु दूसरी ओर गिद्धौर समेत आसपास के गाँव-देहात में मजदूर दो जून की रोटी के लिए कहीं खून-पसीना बहा रहा होगा। मजदूरों को सरकार की तरफ से जारी न्यूनतम मजदूरी भी नसीब नहीं हो रही है।


गिद्धौर व आसपास के गाँव में रहने वाले अधिकतर खेतिहर मजदूर भूमिहीन हैं। गाँव के बड़े किसान के खेत में काम करने वाली इन खेतिहर मजबूरों को बहुत कम पैसा या इसके बदले इतने मूल्य का धान और गेहूं मिलता है, जिससे इनकी आर्थिक स्थिति दयनीय होती चली जाती है। मजूदरों की दयनीय स्थिति को देखते हुए स्थानीय प्रतिनिधि द्वारा इस पर अभी तक कोई काम नहीं हुआ। इंटरनेट से प्राप्त आँकड़े के अनुसार किसानों एवं मजदूरों के लिए पेंशन योजना लाने की मांग प्रत्येक माह 70-73% होती है पर इनकी मांगों पर पहल शून्य प्रतिशत होता है।

पाठकों को जानकारी से अवगत करते चलें कि गिद्धौर जैसे इलाके में किसान और मजदूरों में से काफी संख्या में लोग दलित समाज से आते हैं, लेकिन उनके लिए ऐसी कोई योजना नहीं है कि जब वे शारीरिक रूप से अक्षम हो जाएं, तब उन्हें पेंशन या कोई सामाजिक सुरक्षा योजना का लाभ मिल सके। वैसे हमारे भारत के संविधान में हर व्यक्ति बराबर है और सभी को समान अधिकार हैं, ऐसे में किसानों और खेतिहर मजदूरों की सामाजिक सुरक्षा और आर्थिक सशक्तिकरण पर विशेष ध्यान देने की जरुरत है।
शुरुआती दिनों में खेतिहर मजदूरों ने अपनी पैठ बनाई थी लेकिन बदलते समय के अनुसार यह लोग अपने ही गाँवों में अपना वजूद खो रहे हैं। खेत में काम करने वाले मजदूरों तक अपना आधार बढ़ाने के लिए मजदूर संगठनों के पास कोई योजना नहीं है, जिसका नतीजा है कि मजदूर उपेक्षित हैं। खैर, विचार विमर्श अब भी किया जा सकता है। क्योंकि हमारे समाज के पृष्ठभूमि पर इन मजदूर और इनके मजदूरी की अहम भूमिका होती है।

(अभिषेक  कुमार झा)
गिद्धौर । 01/05/2017, सोमवार
www.gidhaur.blogspot.com


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