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सोमवार, 9 जून 2025

जाने-माने हिंदी कवि प्रभात सरसिज का निधन, साहित्य और समाज सेवा को दिया अविस्मरणीय योगदान

पटना/जमुई/बिहार, 9 जून 2025, सोमवार : हिंदी साहित्य जगत के प्रख्यात कवि, साहित्यकार और सामाजिक कार्यकर्ता प्रभात सरसिज का सोमवार सुबह 4:25 बजे पटना में निधन हो गया। वे 75 वर्ष के थे, पटना में ही रह रहे थे और लंबे समय से कई बीमारियों से ग्रसित हो इलाजरत थे। उनके निधन की जानकारी उनके छोटे पुत्र धनंजय कुमार सिन्हा ने दी। धनंजय ने बताया कि प्रभात सरसिज का अंतिम संस्कार पटना के दीघा घाट पर किया जाएगा।

प्रभात सरसिज का जन्म 29 सितंबर, 1949 को बिहार के जमुई जिले के गिद्धौर गाँव में हुआ था। उनका वास्तविक नाम प्रभात कुमार सिन्हा था, लेकिन साहित्य जगत में वे ‘प्रभात सरसिज’ नाम से विख्यात रहे। एक साधारण पारिवारिक पृष्ठभूमि से आने वाले सरसिज जी ने गाँव से ही अपनी प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण की और बाद में भागलपुर विश्वविद्यालय से हिंदी में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की।

नौंवी कक्षा में पढ़ते समय ही उनकी पहली कहानी “शालीग्राम सिंह और उनका नौकर” प्रकाशित हुई थी, जिसके बाद उनका साहित्यिक सफर निरंतर आगे बढ़ता गया। उनकी रचनाएँ देशभर के प्रमुख समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहीं, साथ ही भागलपुर और पटना आकाशवाणी केंद्र से उनकी कविताएँ प्रसारित होती रहीं।

प्रभात सरसिज न केवल साहित्यिक जगत में बल्कि सामाजिक आंदोलनों में भी सक्रिय रहे। 1974 के जे.पी. आंदोलन में उन्होंने बढ़-चढ़कर भाग लिया और उस दौरान पुलिस द्वारा गिरफ़्तारी और गोलीबारी जैसी घटनाओं का भी सामना किया। इसके बाद उन्होंने आचार्य राममूर्ति के सचिव के रूप में खादीग्राम में कार्य किया।

कुछ वर्षों तक पटना आकाशवाणी केंद्र में नौकरी करने के बाद वे माँ के निधन पर गाँव लौट आए और वहाँ प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रमों, ग्रामीण स्कूलों की स्थापना तथा सामाजिक संस्थाओं के संचालन में जुट गए। उन्होंने गिद्धौर में राजमणि इंटरमीडिएट कॉलेज और राजमाता गिरिराज कुमारी गर्ल्स हाई स्कूल की स्थापना में अहम भूमिका निभाई।
सामाजिक कार्यों के साथ-साथ वे शिक्षा क्षेत्र में भी योगदान देते रहे और जमुई स्थित एस.पी.एस. वीमेंस डिग्री कॉलेज में वर्षों तक व्याख्याता के रूप में कार्यरत रहे। इसके अतिरिक्त वे "नवभारत टाइम्स" में स्वतंत्र पत्रकार के रूप में भी कार्य करते रहे।

राजनीति से उनका गहरा नाता रहा, लेकिन सत्ता की जटिलताओं से उनका मन बार-बार खिन्न होता रहा। उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की पदयात्रा में भाग लिया और स्व. दिग्विजय सिंह तथा वर्तमान झाझा विधायक दामोदर रावत जैसे नेताओं के निकट सहयोगी भी रहे।

प्रभात सरसिज की लेखनी जीवन के अंतिम दिनों तक सक्रिय रही, भले ही वे बीमार थे। उन्होंने कभी नैतिक मूल्यों से समझौता नहीं किया और सदैव ईमानदारी, सादगी और सेवा की भावना से कार्य करते रहे।

उनके निधन की खबर से गिद्धौर सहित पूरे जमुई जिला में शोक की लहर दौड़ गई है। साहित्य और समाजसेवा से जुड़े लोग उनके योगदान को याद करते हुए नम आँखों से श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे हैं। प्रभात सरसिज की स्मृतियाँ उनके लेखन और कर्मों के माध्यम से हमेशा जीवित रहेंगी।

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