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जगतजननी की आराधना और पितरों के विसर्जन का दिन है महालया

15 दिनों तक पितृपक्ष रहने के बाद महलया (Mahalaya) की सुबह सभी पितरों का विसर्जन होता है। महालया आश्विन (Aashwin)मास की अमावस्या तिथि को मनाया जाता है। नवरात्रि (Navratri) के ठीक पहले जो अमावस्या होती है, उसे ही महलया कहते हैं। इस अमावस्या को पितृ अमावस्या भी कहते हैं। महालया की सुबह पितरों की विदाई की जाती है और शाम में मां दुर्गा (Maa Durga) की आराधना करते हुए यह प्रार्थना की जाती है कि वह धरती पर आएं और अपने भक्तों को आशीर्वाद दें। बंगाल (Bangal) में इसी दिन मां दुर्गा की मूर्ति बनाने वाले मूर्तिकार उनकी आंखें बनाते हैं और उनमें रंग भरने का कार्य करते हैं। इस कार्य की शुरुआत विधि-विधान के साथ की जाती है। 

महालया का इतिहास
आदिकाल में महिषासुर नामक एक दैत्य हुआ करता था, जो बड़ा ही क्रूर था। महिषासुर को वरदान मिला था कि कोई भी देवता अथवा पुरुष उसका वध नहीं कर पाएगा। वरदान पाकर महिषासुर ने देवताओं पर आक्रमण कर दिया, जिसमें महिषासुर ने विजय प्राप्त कर ली। महिषासुर की अत्याचार से सभी देवता परेशान हो गए और भगवान विष्णु के पास गए। महिषासुर से रक्षा के लिए सभी देवताओं ने भगवान विष्णु के साथ जगतजननी जगदंबा की आराधना की। इस दौरान सभी देवताओं के शरीर से दिव्य प्रकाश निकला। जिसने भगवती का रूप धारण कर लिया। सभी देवताओं ने देवी को अपने-अपने अस्त्र-शस्त्र प्रदान किया।

देवी दुर्गा ने नौ दिनों तक महिषासुर से भीषण युद्ध किया और दसवें दिन उसका वध कर दिया। मां दुर्गा शक्ति की देवी मानी जाती है। महालया को माता की आगमन की पहली सूचना माना जाता है। इसलिए इसका एक अलग ही महत्व है। मान्यता ऐसी भी है कि महालय की शुरुआत से ही त्योहारों का मौसम शुरू होता है। साथ ही महालय हमारे जीवन में सुख-समृद्धि, शांति, उल्लास, खुशियां लेकर आता है।

इस वर्ष शारदीय नवरात्र 15 अक्टूबर रविवार से शुरू हो रहा है। इस वर्ष महालया 14 अक्टूबर शनिवार को है। यह 13 अक्टूबर की रात 9:50 से 14 अक्टूबर रात 11:24 तक रहेगा। दुर्गा पूजा का यह पहला दिन रहता है। इस दिन को मां दुर्गा का निमंत्रण भी माना जाता है। नवरात्रि में मां दुर्गा कैलाश पर्वत से पृथ्वी लोक पर आती है और नौ दिनों तक रहने के बाद विजयदशमी को अपने ससुराल यानी कैलाश पर्वत पर वापस चली जाती है।

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