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जानिए क्यों मनाया जाता है सतुआन? क्या है इसका धार्मिक महत्व?

पटना | अनूप नारायण सिंह : जिस दिन सूर्य मीन राशि से मेष राशि में प्रवेश करता है, उस दिन को मेष संक्रांति के नाम से जाना जाता है. जबकि उत्तर भारत के लोग इसे सत्तू संक्रांति या सतुआ संक्रांति के नाम से जानते हैं. इस दिन भगवान सूर्य उत्तरायण की आधी परिक्रमा पूरी करते हैं. इसी के साथ खरमास समाप्त हो जाता है और सभी तरह के शुभ कार्य शुरू हो जाते हैं. मेष संक्रांति को अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है. 

उत्तर भारत सहित उत्तर पूर्व के कुछ राज्यों में इसे सतुआना के रूप में मनाया जाता है और इस दिन सत्तू को उनके इष्ट देवता को अर्पित किया जाता है और फिर स्वयं प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है. आइए जानते हैं इस साल सतुआन कब है और क्या है इसे मनाने का महत्व.आमतौर पर हर साल सतुआन का त्योहार 14 या 15 अप्रैल को ही पड़ता है. इस साल यह पर्व 14 अप्रैल को पड़ रहा है. 

आपको बता दें कि इस दिन सूर्य राशि परिवर्तित करते हैं. इसी के साथ इस दिन से गर्मी का मौसम शुरू हो जाता है. सतुआन के दिन सत्तू खाने की परंपरा काफी समय से चली आ रही है. इस दिन लोग मिट्टी के बर्तन में भगवान को पानी, गेहूं, जौ, चना और मक्का के सत्तू के साथ आम का टिकोरा चढ़ाते हैं. इसके बाद वह स्वयं इसे प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं.

सतुआन के दिन घर में आम के टिकोरे और इमली की चटनी बनाई जाती है. इसके बाद चना, जौ, गेहूं और मक्का की सत्तू मिलाकर पानी में आटे की तरह गूंथ कर खाया जाता है. लोग इसके साथ अचार, चोखा और चटनी खाते हैं. इसके अलावा कई लोग नींबू, मिर्च, टमाटर, चटनी, नमक आदि मिलाकर केवल चने के सत्तू का ही सेवन करते हैं. सत्तू बिहारियों का पसंदीदा खाना है.

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