पटना (Patna), 11 जनवरी | बिधुरंजन उपाध्याय : राष्ट्र सृजन अभियान के राष्ट्रीय महासचिव ललितेश्वर कुमार ने कहा की पश्चिम का भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिक विरासत से परिचय करवाने वाले स्वामी विवेकानन्द का जीवन अपने आप में एक प्रेरणा स्रोत है.जरा कल्पना कीजिए उस दौर का,जब ब्रिटिश हुकूमत के अत्याचार तले भारतीय जनता त्राहिमाम कर रही थी। उस समय उन्होंने निराशा के अंधकार में उत्साह और प्रेरणा की ज्योत जलाई। उन्होंने 39 वर्ष की अल्पायु में ही अपनी नश्वर देह को त्याग दिया था परन्तु इतनी छोटे जीवन में भी वे अनगिनत ऐसी कहानियां छोड़ गए जो दूसरों को जीने की राह दिखाती हैं।
रामकृष्ण परमहंस का पड़ा प्रभाव
12, जनवरी 1863 को तत्कालीन कलकत्ता में एक प्रसिद्ध वकील विश्वनाथ सेन के यहां स्वामी विवेकानन्द का जन्म हुआ था। उनके बचपन का नाम नरेन्द्रनाथ दत्त था। बचपन से ही उनमें भगवान को पाने की लगन थी। इसी हेतु वे विभिन्न साधुओं से मिलते, संस्थाओं में जाते और अंत में उनकी खोज रामकृष्ण परमहंस के पास जाकर समाप्त हुई। उन्होंने रामकृष्ण परमहंस से विधिवत दीक्षा ली और मां काली के दर्शन किए।
शिकागो में उनके विद्वतापूर्ण भाषण से अभिभूत हुआ पश्चिम
राजस्थान के खेतड़ी के महाराजा के सहयोग से वह शिकागो में आयोजित महा धर्म सम्मेलन में भाग लेने पहुंचे। वहां उन्हें बोलने के लिए मात्र पांच मिनट दिए गए परन्तु जब उन्होंने बोलना शुरू किया तो उनके भाषण से सभी अभिभूत हो गए और पूरे अमेरिका तथा यूरोप में भारतीय विद्वता का डंका बजने लगा। उनके जीवन में अनेकों ऐसी घटनाएं हुई जिन्होंने पूरी मानवता के सामने आगे बढ़ने की राह दिखाई हैं।
एकाग्रता से सफलता अवश्य मिलती है
एक बार अपनी अमेरिका यात्रा के दौरान स्वामी विवेकानंद एक पुल से गुजर रहे थे। रास्ते में उन्होंने कुछ लड़कों को निशाना लगाते देखा परन्तु उनमें से किसी का भी सही निशाना नहीं लग पा रहा था। ऐसे में स्वामी विवेकानंद ने स्वयं बंदूक संभाली और एक के बाद एक लगातार सारे सही निशाने लगाए। जब लोगों ने उनके पूछा कि आपने यह कैसे किया तो उन्होंने कहा, जो भी काम करो, अपनी पूरी एकाग्रता उसी में लगा दो। सफलता अवश्य मिलेगी।
जब महिला को माना माता
इसी प्रकार एक बार विदेश यात्रा के दौरान एक महिला ने स्वामी विवेकानंद से कहा कि मैं आपसे विवाह कर आपके जैसा गौरवशाली, सुशील और तेजयुक्त पुत्र पाना चाहती हूं। इस पर विवेकानंद ने कहा कि मैं सन्यासी हूं और विवाह नहीं कर सकता परन्तु आप मुझे ही पुत्र मान लीजिए तो आपकी इच्छा भी पूर्ण हो जाएगी और मुझे भी मां का आशीर्वाद मिल जाएगा। उनके इस उत्तर को सुनते ही वह महिला उनके चरणों में गिर गई और उसने माफी मांगी।
व्याधियों से ग्रसित जीवन रहा अल्पायु
उनके ओजस्वी और सारगर्भित व्याख्यानों की प्रसिद्धि विश्चभर में है। प्रत्यदर्शियों के अनुसार जीवन के अंतिम दिन भी उन्होंने अपने ‘ध्यान’ करने की दिनचर्या को नहीं बदला और प्रात: दो तीन घंटे ध्यान किया। उन्हें दमा और शर्करा के अतिरिक्त अन्य शारीरिक व्याधियों ने घेर रक्खा था। उन्होंने कहा भी था, ‘यह बीमारियाँ मुझे चालीस वर्ष के आयु भी पार नहीं करने देंगी।’ 4 जुलाई, 1902 को बेलूर में रामकृष्ण मठ में उन्होंने ध्यानमग्न अवस्था में महासमाधि धारण कर प्राण त्याग दिए। उनके शिष्यों और अनुयायियों ने उनकी स्मृति में वहाँ एक मंदिर बनवाया और समूचे विश्व में विवेकानंद तथा उनके गुरु रामकृष्ण के संदेशों के प्रचार के लिए 130 से अधिक केंद्रों की स्थापना की।
राष्ट्रसृजन अभियान के जनक अमर स्वतंत्रता सेनानी बाबू रामविलास सिंह जी आजीवन स्वामी विवेकानंद जी के आदर्शो पर चल राष्ट्र निर्माण व युवाओं में राष्ट्रीय भावना भरने में लगे रहे.वर्तमान समय में बाबू रामविलास जी के संचित आदर्शो को आगे बढ़ाने में इनके पोता व राष्ट्र सृजन अभियान के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री प्रदुम्न कुमार सिन्हा तथा राष्ट्रीय महासचिव ललितेश्वर कुमार अनवरत लगे हुए है तथा देश के कोने -कोने में जागरूकता अभियान चला रहे है ।
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