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कवि कथा - ५ : माँ विदा होने लगी तो नाना-नानियों के अश्रुधार में हमारी सारी शरारतों को भुला दिया गया

विशेष : जमुई जिलान्तर्गत मांगोबंदर के निवासी 72 वर्षीय अवनींद्र नाथ मिश्र का 26 अगस्त 2020 को तड़के पटना के एक निजी अस्पताल में निधन हो गया. स्व. मिश्र बिहार विधान सभा के पूर्व प्रशासी पदाधिकारी रह चुके थे एवं वर्तमान पर्यटन मंत्री के आप्त सचिव थे. स्व. मिश्र विधान सभा के विधायी कार्यो के विशेषज्ञ माने जाते थे. इस कारण किसी भी दल के मंत्री उन्हें अपने आप्त सचिव के रूप में रखना चाहते थे.

अवनींद्र नाथ मिश्र जी के निधन के बाद उनके भाई एवं गिधौरिया बोली के कवि व हिंदी साहित्य के उच्चस्तरीय लेखक श्री ज्योतिन्द्र मिश्र अपने संस्मरणों को साझा कर रहे हैं. स्व. अवनींद्र नाथ मिश्र का पुकारू नाम 'कवि' था. ज्योतिन्द्र मिश्र जी ने इन संस्मरणों को 'कवि कथा' का नाम दिया है. इन्हें हम धारावाहिक तौर  पर gidhaur.com के अपने पाठकों के पढने के लिए प्रस्तुत कर रहे हैं. यह अक्षरशः श्री ज्योतिन्द्र मिश्र जी के लिखे शब्दों में ही है. हमने अपनी ओर से इसमें कोई भी संपादन नहीं किया है. पढ़िए यहाँ...

कवि -कथा (५)
किएक दुन्नू बच्चा कें नेने जा रहल छी? होनिहार अछि दुन्नू। बड़का त अंग्रेजी में सै में निन्यानवे लैलक आ छोटका मैथ में सै में निन्यानवे ?सूरी स्कूल के प्रिंसिपल ने मेरे पिताजी से जिज्ञासा की।
मेरे छोटे नाना जी ने जबाब दिया कि छोटका कें पानी नय सूट केलकै तें जाय दियौक।
और एस एम दास जी ने टी सी दे दी।
नानी घर से जब चलने के लिये मोटरी गठरी बंधने लगी तो हम भी यादों की गठरी सहेजने लगे।
मौसी नानी का लताम चुराना, नाना के बागान का सपातू तोड़ कर भागना। शाम के धुंधलके में सामने की तालाब में मछली का जाल फेंकते मल्लाहों की सहेजी गयी मछलियां लेकर भाग जाना। हरेक रविवार को बड़का मामू का जूता छिपा देना ताकि वे तीन सेरी रोहू ससुराल न ले जायें । मंझले नाना की सुंघनी अपने नाक में डालकर छींकना । उफ्फ कितनी तरह की शरारतें जिसके लीड रोल में मैं और भाई पीछे रहता था।
जब माँ विदा होने लगी तो नाना नानियों के अश्रुधार में हमारी सारी शरारतो को भुला दिया गया । नाती नतिनी के सौ कसूर माफ ।
साल भर में हमारे खान पान की आदतें बदल गयी थी ।कद्दू के पत्ते की सब्जी, अरिकनचन के पत्ते की सब्जी ,तिलकोर का बचका यानी हम पत खोर और लत खोर हो गये थे ।रास्ते भर माँ से स्वाद की चर्चा करते हुए कन्दा और खखुसी की धरती पर फिर पहुँच गये। दिग्घी के दोस्तों ने फिर से हमारा खैरमखदम किया ।घुल मिल गये। दो चार दिनों तक मैथिली जुबान पर रही । अंगिका फिर चढ़ गयी।
अब जमुई में ही नवीं क्लास में नाम लिखाने की तैयारी हुई। 26 जनवरी का झण्डा फहरा लेने के बाद हम दोनों भाइयों को जमुई लाया गया । जमुई हायर सेकेंडरी स्कूल के प्रिंसिपल थे अनिरुद्ध झा। उनके किसी खासमखास को ढूंढने की कोशिश हुई जो नामांकन का काम आसान कर दे । कोई न मिला तो बड़े बाबूजी अकेले मिलने चले गये। फिर क्या बातें हुईं हमलोग नहीं जान सके लेकिन इतना पता चला कि झा जी भी सूरी स्कूल के प्रोडक्ट थे ।सो उन्होंने सूरी स्कूल की टी सी देखी और एड्मिसन का आदेश लिखकर बाबूजी को कार्यालय में भेज दिया ।उन्होंने फीस भरी और हमें यहॉं भी नवें क्लास के सेक्सन बी में जाना पड़ा। जिसके क्लास टीचर थे मेजरवार वसन्त प्रसाद।क्रमशः


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