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कवि कथा - ६ : कवि की गिनती होस्टल के पढ़ाकू लड़के में और मेरा नाम होस्टल के ब्लैक रजिस्टर में

विशेष : जमुई जिलान्तर्गत मांगोबंदर के निवासी 72 वर्षीय अवनींद्र नाथ मिश्र का 26 अगस्त 2020 को तड़के पटना के एक निजी अस्पताल में निधन हो गया. स्व. मिश्र बिहार विधान सभा के पूर्व प्रशासी पदाधिकारी रह चुके थे एवं वर्तमान पर्यटन मंत्री के आप्त सचिव थे. स्व. मिश्र विधान सभा के विधायी कार्यो के विशेषज्ञ माने जाते थे. इस कारण किसी भी दल के मंत्री उन्हें अपने आप्त सचिव के रूप में रखना चाहते थे.

अवनींद्र नाथ मिश्र जी के निधन के बाद उनके भाई एवं गिधौरिया बोली के कवि व हिंदी साहित्य के उच्चस्तरीय लेखक श्री ज्योतिन्द्र मिश्र अपने संस्मरणों को साझा कर रहे हैं. स्व. अवनींद्र नाथ मिश्र का पुकारू नाम 'कवि' था. ज्योतिन्द्र मिश्र जी ने इन संस्मरणों को 'कवि कथा' का नाम दिया है. इन्हें हम धारावाहिक तौर पर gidhaur.com के अपने पाठकों के पढने के लिए प्रस्तुत कर रहे हैं. यह अक्षरशः श्री ज्योतिन्द्र मिश्र जी के लिखे शब्दों में ही है. हमने अपनी ओर से इसमें कोई भी संपादन नहीं किया है. पढ़िए यहाँ...

कवि - कथा (६)
जमुई हाई स्कूल में नबीं क्लास में एड्मिसन लेकर हम दोनों भाई घर लौट आये। 1960 ई का यह जनवरी चल रहा था । अब हम सीट पर बैठकर ,ऊंची जगह का सहारा लेकर साइकिल चलाना सीख गये थे। कवि मुझसे थोड़ा लम्बे थे सो उसने यहॉं भी बाजी मारी और बिना किसी सहारे के वे सायकिल चला लेते। जब मेरी बारी आती तो वो पीछे से कैरियर पकड़ कर चढ़ा देता ।हम दोनों चाहते थे कि स्कूल में जाने से पहले सिद्धता प्राप्त हो जाय । इसके लिए हम घर के सेवक कारू को(चित्र में मेरे साथ) खुशामद भी करते । सायकिल की देखभाल और घर का सौदा पानी वही करता था । लम्बा भी था । हमें जमुई में रहने का ठिकाना , खाना पीना का इंतज़ाम नहीं हो रहा था। कई विकल्प आये ।अंत में होस्टल में ही रखने पर सम्मति बनी । एक स्थानीय महा प्रतापी टीचर प्रताप झा जी ने बेमाँगे सलाह दे डाली - वैद्य जी ,बच्चों को कंगारू की तरह नहीं , बानर की तरह पालिये। गोद से नीचे उतारिये।
हमें उतार दिया गया । सेकेंड होस्टल के हाल नुमा कमरा में आठ बच्चे रह सकते थे। आठ चौकियां थी। जो रूम इंचार्ज होता था उसे स्वीच बोर्ड और खिड़की वाली सीट मिलती थी । वह मुझे मिली । हम दोनों की चौकी अगल बगल । अलग अलग तोसक ,तकिया ,चादर , थाली , लोटा , लेकिन बक्शा एक और दो चाभी ।एक भाई के जनेऊ में दूसरा मेरे जनेऊ में। सुवह सुवह सुपरिन्टेन्डेन्ट श्री जयनाथ पांडेय जी स्वयं 5 बजे घण्टी बजाते । हमें जगना होता ।फिर बरामदे पर कांपते हुए कतारबद्ध होते और रघुपति राघव राजा राम सबको सन्मति दे भगवान।
फिर दैनिक चर्या के बाद 6 से 8 बजे तक स्टडी पीरियड।
9:30 में दुबे जी की रसोई घण्टी । थाली लोटा लेकर रसोईघर तक दौड़ते जगह लूटने। चावल, दाल और सब्जी। दी हुई सब्जी पर चावल ढंक कर और सब्जी लेने का लोभ हमें छलिया बना डाला । कवि हर रोज रोता घर जाने के लिये। संवाद का कोई साधन नहीं। रो पीटकर चुप हो जाना। चूंकि जमुई होस्टल माँगोबन्दर से नजदीक था इसलिये अब हम छोटे बाबूजी के ज्यूरिडिक्सन में आ गये । हर रविवार को आठ बजे सुवह तक आना। चूड़ा ,चना ,गुड़ , नमकीन पहुंचा देना । फिर चले जाना । सख्त मिजाजी पिता केवल कवि से ही हाल पूछ कर सन्तुष्ट हो लेते थे । कुछ पैसे भी साबुन तेल और पाकेट खर्च के लिये दे जाते जिसमें गिरीश टाकीज में सिनेम्मा देखने का पैसा भी बचाना होता था। कवि की उदासी तोड़ने का यही एक उपाय था। रहते रहते उसे सिनेमा देखने की आदत लग गयी थी । एक टिकट में दो खेल का तो मजा ही कुछ और था ।भूख मारकर भी देखा जाता था। शायद ही कोई फिलिम छूटी हो। छह आने की टिकट ही हमें तृप्ति देती थी ।सब कुछ होस्टल सुपरिन्टेन्डेन्ट से बच बचाकर करना होता था। होस्टल में एक समस्या अत्यंत विकट थी । रात में रोटी खाने को नहीं मिलती थी ।दोनों टाइम चावल दाल भुजिया। माँ का खाना हम सबो को याद आते रहता था। यही कारण था कि छुट्टियों में घर से वापस आने वक्त कवि खूब रोते थे। सुबकते तो हम भी थे लेकिन बड़प्पन का बोझ आंसुओं को अन्दर ही रोक लेता था ।रोते कलपते रघुपति राघव करते करते हम दोनों भाई 11 स्पेशल में पहुँच तो गये लेकिन कवि की गिनती होस्टल के पढ़ाकू लड़के में होने लगी और मेरा नाम होस्टल के ब्लैक रजिस्टर में चढ़ गया । कोई ऐसा हफ्ता नहीं होता जब जयनाथ पंडी जी मुझ पर एक चवन्नी का आर्थिक दण्ड निर्धारित नहीं करते । अब जब बदनाम हो ही गये तो मैंने इसे दूर करने की कोशिश नहीं की।क्रमशः


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