पटना | अनूप नारायण :
मैरवा प्रखंड से २ किलोमीटर की दूरी पर सिवान मुख्य मार्ग पर हरि राम का मन्दिर है, हरी राम बाबा का स्थान के नाम से प्रचलित झरही नदी के किनारे इस स्थान पर कार्तिक और चैत्र महीने में मेला लगता है। यह ब्रह्म स्थान एक संत की समाधि पर स्थित है। इस स्थान पर डाक बंग्ला के सामने बने चनानरी डीह (ऊँची भूमि) पर एक अहिरनी औरत के आश्रम को पूजा जाता है।
मैरवा धाम स्थित हरिराम ब्रह्मा मंदिर में पूजा अर्चना को श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। स्थानीय लोगों के अलावे भी दूर दराज के लोगों की आस्था भी यहां से जुड़ी हुई है। मन्नतें पूरी होने के बाद वे चढ़ावे को यहां आते हैं। चैत्र रामनवमी पर एक माह के मेले एवं नवरात्र पर भी श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है। ऐसी मान्यता है कि यहां प्रेतों का मेला भी लगता है। मानसिक एवं शारीरिक कष्ट लेकर भी यहां आने वाले चंगे हो जाते हैं।
हिन्दी के सुप्रसिद्ध महाकवि तुलसी दास की परिकल्पना साकार हो गयी। मैरवा आगमन के दौरान उन्होंने इस क्षेत्र को मुक्तिधाम होने की भविष्यवाणी की थी, तब मैरवा कनकगढ़ के नाम से जाना जाता था। कालांतर में यह मुक्तिधाम बना और फिर मैरवा धाम।
कनकगढ़ के राजाकनक सिंह का किला वर्तमान में हरिराम कालेज के स्थल पर था। राजा के दरबार में हिन्दी के प्रसिद्ध महाकवि तुलसी दास का आगमन हुआ। तुलसी दास की मुलाकात इष्टदेव हरिराम ब्रह्मा से बभनौली (वर्तमान नाम) गांव में हुई। दोनों के बीच कुछ देर वार्तालाप हुई। इसके बाद दोनों राजदरबार पहुंचे। प्रसन्न चित तुलसी दास ने कहा कि यह कनकगढ़ कनक व कंचन की तरह है। यह कंचनपुर मुक्तिधाम बनेगा। कालांतर में यह मुक्तिधाम हरिराम धाम व मैरवा धाम के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
मैरवा प्रखंड से २ किलोमीटर की दूरी पर सिवान मुख्य मार्ग पर हरि राम का मन्दिर है, हरी राम बाबा का स्थान के नाम से प्रचलित झरही नदी के किनारे इस स्थान पर कार्तिक और चैत्र महीने में मेला लगता है। यह ब्रह्म स्थान एक संत की समाधि पर स्थित है। इस स्थान पर डाक बंग्ला के सामने बने चनानरी डीह (ऊँची भूमि) पर एक अहिरनी औरत के आश्रम को पूजा जाता है।
मैरवा धाम स्थित हरिराम ब्रह्मा मंदिर में पूजा अर्चना को श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। स्थानीय लोगों के अलावे भी दूर दराज के लोगों की आस्था भी यहां से जुड़ी हुई है। मन्नतें पूरी होने के बाद वे चढ़ावे को यहां आते हैं। चैत्र रामनवमी पर एक माह के मेले एवं नवरात्र पर भी श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है। ऐसी मान्यता है कि यहां प्रेतों का मेला भी लगता है। मानसिक एवं शारीरिक कष्ट लेकर भी यहां आने वाले चंगे हो जाते हैं।
हिन्दी के सुप्रसिद्ध महाकवि तुलसी दास की परिकल्पना साकार हो गयी। मैरवा आगमन के दौरान उन्होंने इस क्षेत्र को मुक्तिधाम होने की भविष्यवाणी की थी, तब मैरवा कनकगढ़ के नाम से जाना जाता था। कालांतर में यह मुक्तिधाम बना और फिर मैरवा धाम।
कनकगढ़ के राजाकनक सिंह का किला वर्तमान में हरिराम कालेज के स्थल पर था। राजा के दरबार में हिन्दी के प्रसिद्ध महाकवि तुलसी दास का आगमन हुआ। तुलसी दास की मुलाकात इष्टदेव हरिराम ब्रह्मा से बभनौली (वर्तमान नाम) गांव में हुई। दोनों के बीच कुछ देर वार्तालाप हुई। इसके बाद दोनों राजदरबार पहुंचे। प्रसन्न चित तुलसी दास ने कहा कि यह कनकगढ़ कनक व कंचन की तरह है। यह कंचनपुर मुक्तिधाम बनेगा। कालांतर में यह मुक्तिधाम हरिराम धाम व मैरवा धाम के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
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