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बुधवार, 19 फ़रवरी 2020

पत्रकार धनंजय की टिप्पणी : प्रेम की बजाय शारिरिक संबंधों की प्रगाढ़ता से हुआ जुली-मटुकनाथ में अलगाव

पटना | धनंजय कुमार सिन्हा :
ऐसी परिस्थितियों के लिए जिम्मेदार है प्रेम के सम्बन्ध में अ-समझ या सीमित समझ। स्त्री एवं पुरुष के बीच सभी प्रकार के प्रेम अथवा मैत्री संबंधों को शारीरिक सम्बन्ध एवं/अथवा विवाह से जोड़ देने की अ-समझ ही ऐसी सारी विषम परिस्थितियों के लिए जिम्मेदार कारक है।

शारीरिक संबध एवं विवाह के अतिरिक्त भी स्त्री-पुरुष के बीच सामान्य प्रेम अथवा मैत्री संबंध होने चाहिए, वैसे ही जैसे स्त्री-स्त्री के बीच होते हैं, पुरूष-पुरूष के बीच होते हैं। 

स्त्री-स्त्री के बीच अथवा पुरूष-पुरूष के बीच जब प्रेम पूर्ण अथवा मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध पनपता है तो वह भी खुशी देता है, आनंददायक होता है। किन्तु अगर बाद में कभी उन संबंधों में कुछ पल के लिए कोई खटास आ जाए या हमेशा के लिए अलगाव भी हो जाए तो जो अवसाद होता है, वह 'अति' रूप में नहीं होता है। वह सामान्य अवसाद होता है, और सम्बन्ध भी कहीं-न-कहीं किसी रूप में थोड़ा-बहुत सुरक्षित रहता है। 
असली दिक्कत शारीरिक सम्बन्ध एवम्/अथवा विवाह वाले सम्बन्ध में होती है। मटुकनाथ एवं जुली का प्रेम/मैत्री संबंध एक सामान्य प्रेम/मैत्री संबंध भी हो सकता था, और अगर वह सामान्य होता तो उसकी गहनता और भी अधिक होती, और अगर कभी खटास या विच्छेद होता तो भी अवसाद का स्तर बहुत गहन नहीं होता।

प्रेम या मैत्री गलत नहीं है, बल्कि यह तो दुनिया का सबसे अच्छा एवं अमूल्य सम्बन्ध है। गलत है सभी प्रकार के प्रेम/मैत्री संबंधों को शारीरिक सम्बन्धों में बदलना एवं फिर उस संबंध को विवाह में परिणत करना। यही अ-समझ वाली भूल मटुकनाथ एवं जूली के प्रेम/मैत्री संबंधों में हुई। भूल सिर्फ जुली की तरफ से ही नहीं हुई, बल्कि मटुक नाथ के तरफ से भी हुई। 

जूली को मटुकनाथ के ज्ञान-स्तर से आकर्षण हुआ जो कि एक सामान्य बात है। किसी भी रिसर्च स्कॉलर को अपने गाइड के ज्ञान-स्तर से आकर्षण होना एक सामान्य बात है। अगर रिसर्च स्कॉलर को अपने गाइड के ज्ञान-स्तर से आकर्षण न हो तो फिर तो वह गाइड ही बेकार है। फिर तो वह गाइड गाइड कहे जाने योग्य भी नहीं। 
और जूली को मटुकनाथ के ज्ञान-स्तर से आकर्षण हो गया, वरना मटुकनाथ के शरीर में तो आकर्षण योग्य कुछ बचा भी नहीं था। सिर के बाल तक उड़ चुके थे। जूली को प्रेम/मैत्री के संबंध में समझ की कमी रही होगी, और उस उम्र में यह अ-समझ स्वाभाविक भी थी, इसलिए वह मटुक नाथ के साथ शारीरिक संबंध और विवाह की तरफ बढ़ गई।

दूसरी तरफ मटुकनाथ को जूली के युवा रूप ने आकर्षित किया। पुरूष एवं स्त्री के बीच आकर्षण प्रकृति-प्रदत्त गुण भी है, और युवा जूली किसी भी पुरूष को आकर्षित करने के लिए पर्याप्त भी थी। यूं तो लड़की कितनी भी कुरूप क्यों न हो, युवावस्था में उसका अपना अलग ही आकर्षण होता है। तो मटुक नाथ जूली के सौंदर्य पर इतने मुग्ध हो गए कि उनका ज्ञान दरभंगा हाउस से खिसकता हुआ गंगा की धार में बह गया, और वे जूली से विवाह को आतुर-व्याकुल हो गए, जबकि वरिष्ठ एवं ज्ञानवान होने के कारण उनकी यह जिम्मेवारी बनती थी कि वे जूली को प्रेम के स्वरूप एवं भावों के बारे में समझाएं। अगर मटुकनाथ भूल करने से बच लेते तो भी परिस्थितियां ऐसी नहीं आतीं।
लेकिन अब परिस्थिति ऐसी आ भी गई है तो कोई बहुत बड़ी बात नहीं है। अब भी प्रेम/मैत्री के बारे में "सम्यक समझ" जुली को अवसाद से बाहर कर सकता है। लेकिन अब सिर्फ प्रेम एवं मैत्री के बारे में "सम्यक समझ" से काम नहीं चलेगा, साथ-साथ शारीरिक सम्बन्धों के बारे में भी "सम्यक समझ" की आवश्यकता पड़ेगी।

इसलिए जूली जितना जल्दी अपने सम्यक समझ को विकसित कर पाएंगी, चाहे किसी के सहयोग से या किताबों के सहयोग से या फिर प्रकृति के सहयोग से, उतनी ही जल्दी वे अवसादों से उबर पाएंगी। बाकी आध्यात्मिक गुरू चाहे त्रिनिदाद के हों या भारत के या फिर कैलाशा देश के, अधिकतर राम-रहीम इंसान जैसे ही होते हैं। वे किसी को अवसाद से निकालते नहीं, बल्कि और ज्यादा अवसाद में ठेल देते हैं।

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