पटना [अनूप नारायण] :
संसद में मंगलवार को जानेमाने गणितज्ञ दिवंगत वशिष्ठ नारायण सिंह का मामला उठाया गया. भारतीय जनता पार्टी (BJP) के सांसद आरके. सिन्हा ने राज्यसभा में उनसे जुड़ा मुद्दा उठाया. उन्होंने वशिष्ठ नारायण सिंह को मरणोपरांत पद्म सम्मान देने और पटना यूनिवर्सिटी का नाम इस महान गणितज्ञ के नाम पर करने की मांग की है. आरके सिन्हा ने शून्य काल (Zero Hour) में यह मामला उठाया. वशिष्ठ बाबू का गत 14 नवंबर को 73 साल की उम्र में निधन हो गया था. वह लंबे समय से बीमार थे.
23 साल की उम्र में अमेरिका से ली थी PhD की डिग्री
वशिष्ठ नारायण सिंह की विलक्षण प्रतिभा का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उन्होंने महज 23 साल की उम्र में ही यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया, बर्कले (अमेरिका) से PhD की डिग्री हासिल कर ली थी. बिहार के भोजपुर के बसंतपुर में पैदा हुए वशिष्ठ नारायण सिंह ने प्रतिष्ठित पटना साइंस कॉलेज से BSc किया था. वशिष्ठ बाबू पांच भाई-बहनों में सबसे बड़े थे. उनके पिता पुलिस कांस्टेबल थे. उन्होंने 6 वर्ष की उम्र में नेतरहाट प्रवेश परीक्षा पास कर ली थी. रांची के करीब स्थित इस आवासीय स्कूल से कई बेहतरीन ब्यूरोक्रेट्स और एकेडमीशियंस पढ़ाई कर चुके हैं. बताया जाता है कि वह स्कूल के सेक्शन 'D' में थे.
वशिष्ठ बाबू गणित में इस हद तक प्रतिभावान थे कि वह शिक्षक के बताए तरीके से भी अलग तरह से प्रश्न को हल कर देते थे. पटना साइंस कॉलेज में अध्ययन के दौरान एक बार वह मैथ के टीचर से उलझ गए थे. उन्हें तत्कालीन प्रिंसिपल के चैंबर में ले जाया गया था. उनकी मेधा से प्रिंसिपल इस हद तक प्रभावित हुए थे कि उन्हें BSc फर्स्ट ईयर से सीधे फाइनल ईयर में प्रमोट कर दिया गया. वशिष्ठ बाबू ने वर्ष 1964 में ऑनर्स की डिग्री हासिल कर ली थी. 'इंडियन एक्सप्रेस' में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, उस दौरान यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के प्रोफेसर जॉन केली पटना साइंस कॉलेज आए थे. उन्होंने किशोर वशिष्ठ नारायण सिंह की प्रतिभा के बारे में सुना तो उनसे मिलने की इच्छा जताई. कॉलेज के प्रिंसिपल ने दोनों की यह मुलाकात करवाई. प्रोफेसर केली वशिष्ठ नारायण सिंह की प्रतिभा से इस हद तक प्रभावित हुए कि उन्होंने भोजपुरी में बातचीत करने वाले किशोर वशिष्ठ को अमेरिका ले जाने की इच्छा जता दी. और इस तरह वशिष्ठ बाबू बसंतपुर से अमेरिका पहुंच गए. उन्होंने वहीं से MSc और PhD की पढ़ाई की.
सिजोफ्रेनिया के हो गए थे शिकारवशिष्ठ बाबू बाद में सिजोफ्रेनिया नामक बीमारी से ग्रसित हो गए. इसके बाद से गणित का यह महान विद्वान धीरे-धीरे नेपथ्य में चला गया. इस तरह नंबर्स और फॉर्मूले के साथ समय बिताने वाले वशिष्ठ नारायण सिंह का ज्यादातर वक्त डॉक्टरों के साथ व्यतीत होने लगा. आखिरकार 14 नवंबर को वह दिन भी आ गया जब जीवन के आखिरी पलों में गुमनामी का जीवन बिताने वाले वशिष्ठ बाबू चिर निंद्रा में चले गए.