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सीएए एवं एनआरसी में ऐसे समझें अंतर


16 DEC 2019

नई दिल्ली : नागरिकता संशोधन विधेयक 2019 को कानूनी जामा पहनाने के बाद सीएए और एनआरसी के बीच अंतर समझना जरूरी है क्योंकि इन दोनों को लेकर भ्रम का माहौल बना हुआ है कि यह भारतीय मुस्लिमों के खिलाफ है। नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) जहां धर्म पर आधारित है वहां राष्ट्रीय नागरिकता पंजी (एनआरसी) का धर्म से कोई लेना-देना नहीं है।

 सीएए के तहत मुस्लिम बहुल आबादी वाले देश पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में उत्पीड़न के कारण भाग कर भारत आए हिंदू, सिख, ईसाई, जैन, बौद्ध और पारसी धर्म के लोगों को भारत की नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान है। इसमें मुस्लिमों को शामिल नहीं किया गया।

एनआरसी में अवैध अप्रवासियों की पहचान करने की बात कही गई है, चाहे वे किसी भी जाति, वर्ग या धर्म के लोग हों, उनकी पहचान कर उन्हें देश से बाहर किया जाएगा।

एनआरसी बहरहाल सिर्फ असम में लागू है जबकि सीएए देशभर में लागू होगा।

गृहमंत्री अमित शाह के बार-बार दावे किए जाने के बावजूद सच यह है कि एनआरसी अभी तक राज्य विशेष में लागू है। सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर नस्ली विशिष्टता को बनाए रखने के लिए एनआरसी असम में लागू किया गया है जिसके तहत राज्य से अवैध अप्रवासियों को बाहर करने का जिक्र किया गया है। असम के अलावा यह किसी दूसरी जगह लागू नहीं है।

नागरिकता संशोधन कानून राष्ट्रव्यापी है और यह पूरे भारत में लागू होगा। हालांकि कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने इसका विरोध करते हुए उनके राज्य में इस कानून को लागू नहीं करने की बात कही है, लेकिन संविधान के जानकारों का मानना है कि इसके लागू किए जाने पर अंतिम फैसला केंद्र सरकार का होगा।

सीएए भारतीय मुस्लिमों के खिलाफ नहीं :

सीएए को लेकर एक धारणा बन गई है कि इससे भारतीय मुस्लिम अपने अधिकारों से वंचित हो जाएंगे, लेकिन सच यह है कि ऐसा करना चाहें तो भी इस कानून के तहत ऐसा नहीं किया जा सकता है। दरअसल, सीएए को देशभर में प्रस्तावित एनआरसी से जोड़कर देखा जा रहा है, इसलिए ऐसी धारणा बनी है।

सीएए को लेकर देशभर में अभी जो विरोध हो रहा है वह दो तरह की आशंकाओं से प्रेरित है।

पूर्वोत्तर में इसका विरोध इसलिए हो रहा है कि अधिकांश लोगों को आशंका है इसके लागू होने पर उनके इलाके में अप्रवासियों की तादाद बढ़ जाएगी जिससे उनकी जनांकिकी और भाषाई विशिष्टता बरकरार नहीं रह जाएगी।

वहीं, भारत के अन्य क्षेत्रों मसलन, केरल, पश्चिम बंगाल और दिल्ली में सीएए का विरोध इसमें मुस्लिमों को शामिल नहीं किए जाने को लेकर हो रहा है। उनका मानना है कि यह संविधान के विरुद्ध है।

देश के विभिन्न हिस्सों में इसको लेकर हिंसात्मक विरोध प्रदर्शन हुए हैं। विगत कुछ दिनों से हो रहे विरोध प्रदर्शन में असम और पश्चिम बंगाल में रेलवे स्टेशनों को जलाने की घटनाएं सामने आई हैं।