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झारखंड : भाजपा-आजसू के रार से गठबंधन को हुआ लाभ



रांची : झारखंड में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और ऑल झारखंड स्टूडेंट यूनियन (आजसू) का अलगाव कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के लिए काफी फायदे का साबित हुआ है।

आंकड़े इस बात की पुष्टि करते हैं कि भाजपा और आजसू का अगर साथ नहीं छूटता तो कम से कम 19 सीटों पर नुकसान से भाजपा बच जाती।

आंकड़ों के मुताबिक, डुमरी में भाजपा को जहां 36,013 मत मिले, वहीं आजसू को 36,840 मत मिले हैं। जबकि गठबंधन प्रत्याशी जगन्नाथ महतो को 71,128 मत मिले और वह विजयी घोषित हुए। अगर भाजपा और आजसू यहां साथ चुनाव लड़ती तब यहां उनकी विजय होती।

इसी तरह जुगसलाई में भाजपा को 66,647 तथा आजसू को 46,779 मत मिले, जबकि गठबंधन के प्रत्याशी 88,581 मत के साथ विजयी रहे। चुनाव के पूर्व भाजपा और आजसू में दरार पड़ने वाली सीटों में लोहरदगा भी शामिल है, जहां भाजपा और आजसू दोनों उम्मीदवार उतारने को लेकर अड़े हुए थे। लोहरदगा के परिणाम भी बताते हैं कि भाजपा, आजसू साथ चुनाव मैदान में जाते तो परिणाम उलट होता।

लोहरदगा में भाजपा को कुल 44,230 वोट मिले, जबकि आजसू ने 39,916 वोट हासिल किए। गठबंधन प्रत्याशी कांग्रेस के रामेश्वर उरांव 74,380 मत पाकर यहां विजयी हो गए। ऐसी ही सीटों में ईचागढ़, नाला, जामा, रामगढ़, बड़कागांव, चक्रधरपुर, गांडेय, मधुपुर, घाटशिला शामिल हैं, जहां भाजपा और आजसू को मिले मतों को जोड़ दिया जाए तो वह गठबंधन के प्रत्याशी से ज्यादा हो जाता है।

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बिहार के भाजपा विधायक मिथिलेश तिवारी मानते हैं कि आजसू के साथ गठबंधन नहीं करना बड़ी भूल साबित हुई है। उन्होंने हालांकि यह भी माना कि “यह किसी एक दल की जवाबदेही नहीं होती है। गठबंधन बनाए रखना दोनों दलों की जिम्मेदारी है। जब दल अड़ जाते हैं तो गठबंधन टूट जाता है, जिसका नुकसान दोनों दलों को उठाना पड़ता है।”

उल्लेखनीय है कि पिछले चुनाव में भाजपा 72, आजसू आठ सीटों पर, जबकि लोजपा एक सीट पर लड़ी थी। भाजपा को 37 सीटें मिली थीं। आजसू ने पांच सीटों पर जीत दर्ज की थी। भाजपा और आजसू गठबंधन की सरकार बनी थी। बाद में झाविमो के छह विधायकों को तोड़कर भाजपा ने संख्या बढ़ा ली थी।

पांच साल में झारखंड की राजनीति में काफी उठा-पटक हुई। आजसू जिन सीटों पर 2014 में दूसरे स्थान पर थी या जीत दर्ज की थी, उन्हीं सीटों पर उसने दावेदारी की। लेकिन बातचीत के बाद भी कोई हल नहीं निकला। भाजपा आजसू के दावे को खारिज करती रही और आजसू अड़ी रही।

भाजपा प्रदेश नेतृत्व ने उसके बाद आजसू के साथ सीटों के तालमेल को लेकर रणनीति नहीं बनाई। दोनों के बीच समन्वय का अभाव दिखा। सब कुछ दिल्ली के भरोसे छोड़ दिया गया। दिल्ली ने झारखंड की जमीनी हकीकत को नजरअंदाज कर तालमेल के लिए आजसू को कोई तवज्जो नहीं दी। इस चुनाव में भाजपा को 25 सीटों पर संतोष करना पड़ा, वहीं आजसू दो सीटों पर मिट गई।