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रविवार, 3 नवंबर 2019

गिद्धौर : क्षितिज पर लालिमा के बाद छाया घना कोहरा, उगs हो सुरुज देव से गूंज रहा छठ घाट

गिद्धौर [सुशान्त साईं सुन्दरम] :
छठ पूजा लोक आस्था के सबसे बड़े त्योहार के तौर पर जाना जाता है। कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से लेकर सप्तमी तक मनाए जाने वाले इस पर्व को भगवान सूर्य की उपासना के तौर पर मनाया जाता है। मान्यता है कि सूर्य देव की उपासना से सेहत अच्छी रहती है। संतान की कामना के लिए भी यह पर्व मनाया जाता है। इस बार छठ महापर्व की शुरुआत 31 अक्टूबर को नहाय-खाय के साथ शुरू हो चुकी है। जिसका समापन 3 नवंबर को प्रातः अर्घ्य के साथ होगा।

गिद्धौर के दुर्गा मंदिर घाट, राजमहल घाट, रानी बगीचा घाट, कलाली रोड घाट सहित अन्य छठ घाटों पर भगवान भास्कर को अर्घ्य देने बड़ी संख्या में ग्रामवासी मौजूद हैं। आसमान पर सूर्य की लालिमा छा रही है। लोगों को इंतजार है सूर्यदेव के उदित होने का।
क्षितिज पर सूर्य की लालिमा के साथ नदी किनारे घना कोहरा छा गया है। कहते हैं आज के दिन सूर्यदेव बड़े मनुहार के बाद उदय होते हैं। छठ व्रती पानी में खड़े हो सूर्योदय के इंतजार कर रहे हैं। भगवान भास्कर को मनाने महिलाएं छठ गीत गा रही हैं।

छठ महापर्व में सूर्य की उपासना की प्रधानता है इसलिए सूर्योदय का समय बेहद खास माना गया है। सूर्योदय के समय उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। छठ महापर्व का समापन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर किया जाता है। सुबह का अर्घ्य संध्याकालीन अर्घ्य के बाद दूसरे दिन उदीयमान सूर्य को दिया जाता है। छठ पूजा के प्रातः अर्घ्य के दिन सूर्योदय का समय सुबह 6:33 बजे है। सूर्य को अर्घ्य देने के लिए यह समय शुभ है।
छठ पर्व का महत्व
छठ पर्व में सूर्य देव की उपासना की जाती है। माना जाता है कि सूर्य की उपासना से स्वास्थ्य अच्छा रहता है। इसके अलावा मान्यता है कि छठी मैया की कृपा से संतान प्राप्ति का वरदान मिलता है। छठ का व्रत रखने वाले लोगों की कामना यह होती है कि सूर्य जैसा तेजस्वी संतान की प्राप्ति का आशीर्वाद मिले।
छठ महापर्व से संबंधित षष्ठी देवी के बारे में वर्णन मिलता है कि ये सूर्य देव जी बहन हैं। पौराणिक ग्रन्थों में इसे वर्णन मिलता है कि श्री राम को बनवास वापस लौटने के बाद माता सीता ने राम के साथ मिलकर सूर्य की उपासना की थी। इसके अलावा महाभारत में भी छठ पर्व का वर्णन मिलता है। जिसके मुताबिक अविवाहित कुंती ने कर्ण नामक बालक को जन्म देने के बाद नदी में बहा दिया था। मान्यता है कि भगवान सूर्य की कर्ण पर विशेष कृपा बनी थी।

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