भले ही सुषमा स्वराज अब हमारे बीच नहीं रहीं लेकिन उनके कृतित्व एवं व्यक्तित्व युगों-युगों तक प्रासंगिक रहेंगे...
संपादकीय | सुशान्त साईं सुन्दरम :भारतीय जनता पार्टी की शीर्ष स्तरीय नेत्री एवं पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज नहीं रहीं. मंगलवार, 6 अगस्त की रात जब पूरा देश सोने की तैयारी कर रहा था तब उनके हृदयाघात से निधन की खबर आई. इस खबर पर सहसा किसी को भी यकीन नहीं हुआ. खबर आने के बाद कईयों की रात करवट लेते हुए कटी. प्रखर वक्ता एवं ओजस्वी गुणों वाली इस राजनेता ने विश्वभर में अपनी अद्वितीय पहचान बनाई थी. सुषमा स्वराज ने पन्ने की कई पहली कहानियाँ लिखीं. चाहे वो हरियाणा कैबिनेट की पहली सबसे युवा मंत्री बनाई गईं, चाहे दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री. या फिर किसी राजनीतिक दल की पहली महिला प्रवक्ता या भारत की पहली (पूर्णकालिक) महिला विदेश मंत्री (इनके पूर्व इंदिरा गाँधी कार्यवाह विदेश मंत्री के रूप में योगदान दे चुकी हैं). सुषमा जी ने हर रोल में अपने आप को अद्भुत तरीके से साबित किया.
बतौर महिला नेत्री सुषमा स्वराज ने विपक्षी दलों के नेताओं के साथ भी सामंजस्य और मधुर सम्बन्ध बनाकर रखा. वर्ष 1970 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ता के रूप में अपनी राजनीतिक करियर की शुरुआत कर भारत देश का अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिनिधित्व करने का गौरव प्राप्त किया. सुषमा जी आम लोगों से जुड़ी नेता रहीं. शायद यही वजह है कि आज उनके जाने के बाद हर किसी की आँखें ग़मगीन हैं. नरेंद्र मोदी की पहली सरकार में बतौर विदेश मंत्री उन्होंने अमिट छाप छोड़ी.
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सुषमा स्वराज एवं गीता (आर्काइव इमेज) |
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सुषमा स्वराज एवं नरेंद्र मोदी (आर्काइव इमेज) |
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शंघाई सहयोग संगठन (SCO) समिट 2018 में सुषमा स्वराज (आर्काइव इमेज) |
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सुषमा स्वराज एवं सोनिया गाँधी (आर्काइव इमेज) |
राजनीतिक मंचों पर भले ही सुषमा जी विपक्षी दलों का विरोध करती नजर आईं हों लेकिन व्यक्तिगत जीवन में उनके विपक्षी दलों के नेताओं से सम्बन्ध मधुर ही रहे. ऐसे में बशीर बद्र की लिखी यह पंक्तियाँ याद आती हैं जिसे सुषमा जी ने संसद में एक बार कहा था -
"दुश्मनी जमकर करो लेकिन ये गुंजाईश रहे,
जब कभी हम दोस्त हो जाएँ तो शर्मिंदा न हों."
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जॉर्ज फर्नांडिस, अटल बिहारी वाजपेयी एवं सुषमा स्वराज (आर्काइव इमेज) |
जेल में रहते हुए ही जॉर्ज चुनाव लड़े और जीते भी. चुनाव के दौरान जॉर्ज तो जेल में थे, ऐसे में जनमानस के बीच उनकी आवाज सुषमा स्वराज बनीं. वे उनकी स्टार प्रचारक बन कर बिहार के मुजफ्फरपुर आईं थीं. सुषमा लोकसभा क्षेत्र में अहले सुबह से सूरज ढलने तक बिना किसी ताम-झाम के लगातार नुक्कड़ सभाएं करतीं. वह आपातकाल और देश के विकास को केन्द्रित कर भाषण देतीं और लोगों से परिवर्तन की अपील करतीं. जॉर्ज के चुनाव प्रचार के लिए सुषमा ने दस दिनों तक मुजफ्फरपुर में अपना डेरा डाला. कार्यकर्ताओं के सहयोग से उनके रहने-खाने का बंदोबस्त किया गया. यह लोकसभा चुनाव और इसका प्रचार अभियान ऐतिहासिक रहा. हाथ उठाये हथकड़ी वाला जॉर्ज का कटआउट चुनाव का बैनर-पोस्टर बना. इस चुनाव में जॉर्ज जेल में थे, बाहर सुषमा उनके प्रतिनिधि के रूप में जनता से मुखातिब हो रहीं थीं और आम लोग स्वयं इस चुनाव में हिस्सा ले रहे थे.
भले ही सुषमा स्वराज अब हमारे बीच नहीं रहीं लेकिन उनके कृतित्व एवं व्यक्तित्व युगों-युगों तक प्रासंगिक रहेंगे. वे असाधारण प्रतिभा की धनी थीं. सुषमा की बेटी बांसुरी ने उनके अंतिम संस्कार की रस्म अदायगी की. इस दौरान सुषमा के पति स्वराज कौशल भी मौजूद रहे. रुढ़िवादी भारत देश में जहाँ पति या पुत्र के हाथों अंतिम संस्कार सम्पन्न करवाया जाता है, वहाँ उनके अंतिम संस्कार की सभी रस्में उनकी बेटी बांसुरी द्वारा पूरी की गई. सुषमा स्वराज जी के अंतिम संस्कार में सभी दलों के उच्च स्तरीय नेता-पदाधिकारियों एवं भारत सरकार के लगभग सभी मंत्रियों की उपस्थिति ने यह साबित कर दिया कि वे दलीय राजनीति से परे सबको गले लगाने वाली राजनेताओं में से एक थीं. वैश्विक स्तर के प्रतिनिधियों एवं अधिकारियों ने विभिन्न माध्यमों से सुषमा जी के निधन पर अपनी श्रद्धांजली अर्पित की है एवं शोक व्यक्त किया है.
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सुशांत साईं सुन्दरम |
gidhaur.com की पूरी टीम की ओर से आदरणीय सुषमा स्वराज जी को भावभीनी श्रद्धांजली!
एडिटर-इन-चीफ
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