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बुधवार, 7 अगस्त 2019

संपादकीय : भारतीय राजनीति की उर्जावान ओजस्विता की सुषमा खो गई!

भले ही सुषमा स्वराज अब हमारे बीच नहीं रहीं लेकिन उनके कृतित्व एवं व्यक्तित्व युगों-युगों तक प्रासंगिक रहेंगे...

संपादकीय | सुशान्त साईं सुन्दरम :
भारतीय जनता पार्टी की शीर्ष स्तरीय नेत्री एवं पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज नहीं रहीं. मंगलवार, 6 अगस्त की रात जब पूरा देश सोने की तैयारी कर रहा था तब उनके हृदयाघात से निधन की खबर आई. इस खबर पर सहसा किसी को भी यकीन नहीं हुआ. खबर आने के बाद कईयों की रात करवट लेते हुए कटी. प्रखर वक्ता एवं ओजस्वी गुणों वाली इस राजनेता ने विश्वभर में अपनी अद्वितीय पहचान बनाई थी. सुषमा स्वराज ने पन्ने की कई पहली कहानियाँ लिखीं. चाहे वो हरियाणा कैबिनेट की पहली सबसे युवा मंत्री बनाई गईं, चाहे दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री. या फिर किसी राजनीतिक दल की पहली महिला प्रवक्ता या भारत की पहली (पूर्णकालिक) महिला विदेश मंत्री (इनके पूर्व इंदिरा गाँधी कार्यवाह विदेश मंत्री के रूप में योगदान दे चुकी हैं). सुषमा जी ने हर रोल में अपने आप को अद्भुत तरीके से साबित किया.

बतौर महिला नेत्री सुषमा स्वराज ने विपक्षी दलों के नेताओं के साथ भी सामंजस्य और मधुर सम्बन्ध बनाकर रखा. वर्ष 1970 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ता के रूप में अपनी राजनीतिक करियर की शुरुआत कर भारत देश का अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिनिधित्व करने का गौरव प्राप्त किया. सुषमा जी आम लोगों से जुड़ी नेता रहीं. शायद यही वजह है कि आज उनके जाने के बाद हर किसी की आँखें ग़मगीन हैं. नरेंद्र मोदी की पहली सरकार में बतौर विदेश मंत्री उन्होंने अमिट छाप छोड़ी.
सुषमा स्वराज एवं गीता (आर्काइव इमेज)
प्रधानमंत्री मोदी जिस डिजिटल इंडिया के हिमायती रहे उसे सफलता के शीर्ष तक पहुँचाने और जनकल्याण में यथासंभव योगदान देने में सुषमा स्वराज का बड़ा हाथ रहा. ट्वीटर के जरिये वे देश-विदेश के लोगों से जुड़ी रहीं और उनकी आवश्यकतापूर्ति के लिए सहर्ष प्रयासरत भी रहीं. फिर चाहे मूक-बधिर गीता की पाकिस्तान से भारत वापसी हो या फिर पाकिस्तानी दम्पति को उनके बच्चे के भारत में इलाज के लिए वीजा उपलब्ध कराने की बात हो. सुषमा जी ने सोशल मीडिया को जनता से सीधा संवाद का सुलभ माध्यम बनाया. इस बारे में एक यूजर ने जब ट्वीट किया कि यह सुषमा जी नहीं हो सकतीं, बल्कि उनकी पीआर टीम है जो ट्वीट करती है. इसके जवाब में सुषमा स्वराज ने चुटकी लेते हुए लिखा - ये मैं ही हूँ, मेरा भूत नहीं.
सुषमा स्वराज एवं नरेंद्र मोदी (आर्काइव इमेज)
नरेंद्र मोदी की विदेश नीति और उनके विदेश दौरों की चर्चा और बहस होती रही. लेकिन इसके पीछे भी सुषमा जी का ही कुटनीतिक दिमाग रहा, जिससे आज के समय में बड़े और शक्तिशाली राष्ट्र भी भारत की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान एवं महत्त्व को स्वीकार कर रहे हैं और भारत सरकार के लिए कड़े फैसलों पर भी अपना समर्थन दे रहे हैं.
शंघाई सहयोग संगठन (SCO) समिट 2018 में सुषमा स्वराज (आर्काइव इमेज)
सुषमा स्वराज के अचानक निधन से दुनियाभर के प्रमुख नेता दुःख प्रकट कर रहे हैं. एससीओ समिट 2018 में बतौर विदेश मंत्री के हिस्सा लेने गईं सुषमा जी की यह तस्वीर भारतीय महिला की अंतर्राष्ट्रीय शक्ति को परिलक्षित कर रही है. इस तस्वीर की खासियत यह है कि इसमें शामिल दस विदेश मंत्रियों में एकमात्र सुषमा स्वराज ही महिला शामिल हैं. इस तस्वीर में ही दुनिया ने वैश्विक मंच पर भारतीय महिला की शक्ति और दिव्यता को देखा. इस तस्वीर के सामने आने के बाद दुनिया ने भारत में नारी सशक्तिकरण को सलाम किया.
सुषमा स्वराज एवं सोनिया गाँधी (आर्काइव इमेज)
सुषमा स्वराज जितनी मधुर और सौम्य मिजाज की थीं राजनीति में उतनी ही कड़ी और अनुशासित. तभी तो वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव में जब यूपीए गठबंधन की जीत हुई थी तब सोनिया गाँधी के नेतृत्व में सरकार बनाए जाने की चर्चाएँ थीं. इसका भारतीय जनता पार्टी ने जोरदार विरोध किया था. भाजपा ने सोनिया गाँधी के विदेशी मूल के होने को मुद्दा बनाकर खिलाफत की थी. भाजपा द्वारा किये गए विरोध-प्रदर्शन की अगुआई सुषमा स्वराज ने की थी. यह उनके विरोध का ही असर था कि सोनिया गाँधी के बजाय मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाया गया.

राजनीतिक मंचों पर भले ही सुषमा जी विपक्षी दलों का विरोध करती नजर आईं हों लेकिन व्यक्तिगत जीवन में उनके विपक्षी दलों के नेताओं से सम्बन्ध मधुर ही रहे. ऐसे में बशीर बद्र की लिखी यह पंक्तियाँ याद आती हैं जिसे सुषमा जी ने संसद में एक बार कहा था -
"दुश्मनी जमकर करो लेकिन ये गुंजाईश रहे,
जब कभी हम दोस्त हो जाएँ तो शर्मिंदा न हों."
जॉर्ज फर्नांडिस, अटल बिहारी वाजपेयी एवं सुषमा स्वराज (आर्काइव इमेज)
सुषमा स्वराज ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत बिहार से ही की. वे जॉर्ज फर्नांडिस की करीबी रहीं और उनके मार्गदर्शन में राजनीति का ककहरा सीखा. यह प्रासंगिक है कि आपातकाल के दौर में जयप्रकाश नारायण के सम्पूर्णक्रांति आन्दोलन में हिस्सा ले रहे समाजवादी नेता जॉर्ज फर्नांडिस को जब गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया तो सुषमा स्वराज ने यह नारा दिया था - 'जेल का फाटक टूटेगा, जॉर्ज हमारा छूटेगा'. यह नारा जन-जन के जुबान पर चढ़ गया था. आपातकाल के इस स्याह समय  में जॉर्ज और उनके साथियों को जून 1976 में गिरफ्तार कर लिया गया था. वर्ष 1977 के लोकसभा चुनाव में जॉर्ज ने मुजफ्फरपुर लोकसभा  के लिए जेल से ही नॉमिनेशन का परचा भरा.

जेल में रहते हुए ही जॉर्ज चुनाव लड़े और जीते भी. चुनाव  के दौरान जॉर्ज तो जेल में थे, ऐसे में जनमानस के बीच उनकी आवाज सुषमा स्वराज बनीं. वे उनकी स्टार प्रचारक बन कर बिहार के मुजफ्फरपुर आईं थीं. सुषमा लोकसभा क्षेत्र में अहले सुबह से सूरज ढलने तक बिना किसी ताम-झाम के लगातार नुक्कड़ सभाएं करतीं. वह आपातकाल और देश के विकास को केन्द्रित कर भाषण देतीं और लोगों से परिवर्तन की अपील करतीं. जॉर्ज के चुनाव प्रचार के लिए सुषमा ने दस दिनों तक मुजफ्फरपुर में अपना डेरा डाला. कार्यकर्ताओं के सहयोग से उनके रहने-खाने का बंदोबस्त किया गया. यह लोकसभा चुनाव और इसका प्रचार अभियान ऐतिहासिक रहा. हाथ उठाये हथकड़ी वाला जॉर्ज का कटआउट चुनाव का बैनर-पोस्टर बना. इस चुनाव में जॉर्ज जेल में थे, बाहर सुषमा उनके प्रतिनिधि के रूप में जनता से मुखातिब हो रहीं थीं और आम लोग स्वयं इस चुनाव में हिस्सा ले रहे थे.
भले ही सुषमा स्वराज अब हमारे बीच नहीं रहीं लेकिन उनके कृतित्व एवं व्यक्तित्व युगों-युगों तक प्रासंगिक रहेंगे. वे असाधारण प्रतिभा की धनी थीं. सुषमा की बेटी बांसुरी ने उनके अंतिम संस्कार की रस्म अदायगी की. इस दौरान सुषमा के पति स्वराज कौशल भी मौजूद रहे. रुढ़िवादी भारत देश में जहाँ पति या पुत्र के हाथों अंतिम संस्कार सम्पन्न करवाया जाता है, वहाँ उनके अंतिम संस्कार की सभी रस्में उनकी बेटी बांसुरी द्वारा पूरी की गई. सुषमा स्वराज जी के अंतिम संस्कार में सभी दलों के उच्च स्तरीय नेता-पदाधिकारियों एवं भारत सरकार के लगभग सभी मंत्रियों की उपस्थिति ने यह साबित कर दिया कि वे दलीय राजनीति से परे सबको गले लगाने वाली राजनेताओं में से एक थीं. वैश्विक स्तर के प्रतिनिधियों एवं अधिकारियों ने विभिन्न माध्यमों से सुषमा जी के निधन पर अपनी श्रद्धांजली अर्पित की है एवं शोक व्यक्त किया है.
सुशांत साईं सुन्दरम
सुषमा स्वराज महज 67 की उम्र में गईं हैं. महज इसलिए क्यूंकि अभी उनके पास वक्त बहुत था लेकिन विधि के विधान के आगे किसी की नहीं चलती. सुषमा जी अपने आप में 'न भूतो न भविष्यति' हैं. उनके जाने से भारतीय राजनीति में उपजा शून्य आने वाले समय में तो भरा जाना दुष्कर ही मालूम पड़ता है. सुषमा जी महिला सशक्तिकरण की ज्वलंत उदाहरण बनी रहेंगी. वे सदैव नारियों को प्रेरित करती रहेंगी. उनके आचार और विचार पीढ़ियों तक मार्गदर्शन करेंगे. शालीनता, सौम्यता, विनम्रता, वाकपटुता, नीति, सिद्धांत एवं उर्जावान ओजस्विता की सुषमा खो गई. उनकी सम्मोहक भाषा शैली एवं विदुषिता ने सदैव प्रेरणा दिया है. पारलौकिक सभा भी उन्हें सर्वोच्च पद प्रदान करेगी. ॐ शांति!

gidhaur.com की पूरी टीम की ओर से आदरणीय सुषमा स्वराज जी को भावभीनी श्रद्धांजली!

एडिटर-इन-चीफ
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