संविधान की आड़ में बिखरता समाज, कब तक मुक़दर्शी बने रहेंगे माँ-बाप!

पटना | अनूप नारायण :
प्रेमी के लिए बाप को धोखा देना ये भारत के नौजवानों और नवयुतियों का संवैधानिक अधिकार है। सवाल ऊंच नीच का नहीं है। सवाल धर्म अधर्म का भी नहीं है। सवाल है एक बाप के पारिवारिक, सामाजिक और संवैधानिक अधिकार का।
अगर कभी कोई ऐसी स्थिति आती है कि बेटी अपने ही बाप को चुनौती दे देती है तो फिर ऐसे वक्त में बाप के पास क्या संवैधानिक अधिकार है? अगर नहीं है तो क्यों नहीं है?

भारत का संविधान 18 साल से कम उम्र के बच्चों को स्टेट की संपत्ति मानता है। मां बाप जिन्होंने पैदा किया वो सिर्फ उसके गार्जियन होते हैं। 2014 के बाद स्टेट का बच्चों पर दखल इस कदर बढ़ गया है कि 18 साल से कम उम्र का कोई लड़का या लड़की अपनी मर्जी से या फिर परिवार की अनुमति से न तो शादी कर सकते हैं और न ही शारीरिक संबंध भी नहीं बना सकते हैं।

और जैसे ही वो 18 साल के होते हैं स्टेट उन्हें बालिग घोषित कर देता है। अब यहां से वो अपना निर्णय स्वयं कर सकते हैं। परिवार के लोग उस बालिग के जीवन में कोई बाधा नहीं डाल सकते। अगर ऐसा करते हैं तो वह कानूनन अपराध करते हैं। सवाल ये है कि 18 साल से पहले बच्चे पर मां बाप का कोई संवैधानिक अधिकार नहीं है और 18 साल का होने के बाद बच्चों पर मां बाप का कोई संवैधानिक अधिकार रह नहीं जाता तो फिर बच्चे पर मां बाप का अधिकार होता कब है?

सिर्फ हिन्दुत्व की ऊफनाहट में सरकार बनाकर नाली सड़क बना लेने से इस देश की सभ्यता के आधार परिवार और समाज की रक्षा नहीं हो सकती। उसके कानूनी उपाय भी करने होंगे। संविधान में ऐसे बदलाव करने पड़ेंगे ताकि बच्चों पर स्टेट की बजाय मां बाप का अधिकार स्थापित हो सके। अगर ऐसा नहीं होता तो इस टूटते समाज को बिखरने से कोई ताकत रोक नहीं पायेगी।

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