[न्यूज़ डेस्क | अजीत कुमार झा / अभिषेक कुमार झा] :-
धर्म और अध्यात्म से जुड़ी बाबा घनश्याम का नाम मौरा गाँव से भी जुड़ा हैं। जी हां, गिद्धौर प्रखंड मुख्यालय से महज 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित ये पंचायत बाबा घनश्याम को लेकर विशेष पहचान रखता है। वार्षिक पूजनोत्सव को लेकर इसकी विशिष्ठता दिन ब दिन और विस्तार होती जा रही है।
मौरा के ब्राह्मण टोला स्थित बाबा घनश्याम की वार्षिक पूजनोत्सव सोमवार की देर रात्रि को सम्पन्न हुई। इस पूजनोत्सव में आसपास के इलाकों से भारी संख्या में ग्रामीणों की उपस्थिति देखी गयी। बाबा के अनुवाई व उनके चटिया द्वारा विधिवत व पारंपरिक तरीके से पूजनोत्सव को सफल बनाया गया। पूजनोत्सव का समापन ब्राह्मण भोज से किया गया। इस दौरान दर्जन बकरे की बलि भी दी गयी।
--[ वर्षों से चली आ रही है परंपरा आज भी है जारी ]--
धार्मिक और अध्यात्मिक ज्ञान रखने वाले ग्रामीण बताते हैं कि बाबा घनश्याम की महत्ता सर्वविदित है। इनके महिमा का बखान जितना किया जाय वो कम है। इन के दरबार में सच्चे मन से आने वाले भक्त कभी निराश नहीं होते। माना जाता है कि बाबा घनश्याम शिव के बड़े भक्त थे, वार्षिक पूजा होने से पहले पूरे समाज मिलकर इन के प्रांगण में पार्थिव पूजन कम से कम सवालाख करते हैं ।
इसके बाद सारे लोग इकट्ठे प्रसाद के रूप में सादे भोजन चावल दाल और सब्जी का प्रयोग कर सब एक साथ वहीं ग्रहण करते हैं । उसके बाद शुक्रवार या सोमवार के दिन हर साल वार्षिक पूजन किया जाता है। पूर्वजों से शुरू हुई ये परंपरा आज भी निष्ठापूर्वक जारी है।
--[ सूर्यास्त के बाद शुरू होती है पूजा, अर्धरात्रि तक चलती है ] --
यहां के वार्षिक पूजनोत्सव की एक और विशेषता है और वो ये कि यहां सूर्यास्त के बाद लोग पूजा की तैयारी में जुटते हैं। बाबा के अनुवाई ढोल, थाप मृदंग की आवाज पर उनका आह्वाहन करते हैं, इससे पूरा मौरा का माहौल भक्तिमय हो जाता है। सूर्यास्त के बाद शुरू हुए इस पूजनोत्सव का समापन अर्धरात्रि से पूर्व हो जाता है।
लोग मानते हैं कि सर्पदंश या बिछु के काटने से यहां पूजा अर्चना कर बाबा का भभूत ललाट पर लगाने से उसके विष का प्रकोप कम हो जाता है।
वार्षिक पूजनोत्सव के अलावे प्रत्येक दिन बाबा के पिंड पर इनके भक्तों का आना जाना लगा रहता है। ऐसे में बाबा घन्यश्याम का ये पिंड स्थल स्थानीय लोगों के लिए आस्था और विश्वास का केंद्र बना है।