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आलेख : बेटे ने अम्मा को घर से निकाला

(राहुल कुमार / अलीगंज)
मुकुल द्वारा बाहर की गई बूढ़ी और बिमार अम्मा आंख मे आंसू  लिए चिल्लाए जा रही थी- 'अरे नहीं विश्वास होत है रे की तुम हमरे बेटा है। कमज़ोर आंखो से बहते आंसू जैसे रूकने का नाम ही नहीं ले रहे। जिस बेटे को कितने जतन से पाला-पोसा,  पढ़ाया-लिखाया। उन्हे एक समर्थ जीवन दिया। कभी खूद के कुछ नहीं बचाया।

      ममता बेटे-बहू की बदनामी के डर से माथा पकड़कर सिसकियां लेते हुए बैठ गई। उसकी बहू ने दो मंजिले खिड़की से निचे देखकर ये बुढ़िया इतना दुर्गती करने के बाद भी नहीं गयी। हम ही चले जाते है फिलहाल इस घर से तब समझ आएगा इसे क्या खाएगी?' कैसे बनाएगी?। रतिमा मन ही मन सोची और अपने पति मुकुल  से भड़कते हुए  बोली- "जिना मुश्किल कर दिया है। तुम्हारी अम्मा ने।' अब और नहीं सहा जाएगा मुझसे ये रोज-रोज का किचकिच। अब नहीं रहना मुझे अपने बच्चो के साथ इस घर मे। सास का घर मे रहना ही उसके घुटन का कारण  बन चुका था।
   मुकुल अपने पत्नी को घर से ले जाने के लिए राजी हो गया। उनके 
बेटे और बहू ये कहते हुए वहां से चला गया कि अब करलो राज पूरे
घर मे, अकेले ही वैसे  भी मै तंग आ गया हूं। अम्मा ने बहुत कोशिश की रोकने की। वो कहते है न, "गुस्से मे इंसान को कुछ नहीं 
सुझता है। ..उसके बेटे-बहू, पोता-पोती चले गये,। वह कहां गये?' अम्मा को नहीं पता। वो अकेली रह गई उस बड़े से घर मे।
अम्मा वहीं बैठी स्वयं से कह रही थी, "किसी बात को उल्टा समझती है, हर बात का उल्टा उत्तर देती है मेरी बहू। जब ब्याह कर लाई थी तो कितना कम बोलती थी। लगता था... जैसे घर मे लक्ष्मी ही आ गई। अब? .... अब तो तील सी बात को ताड़  बनाकर कहती है हमरे बेटा के पास। तभी सामने की घर से नीलम आई और उनका ध्यान भंग कर दिया।
     वैसे वो कई बार समझा चुकी है- 'ममता दीदी आपकी उम्र ढ़ल गयी है, हर बात बात पर बेटे व बहू को टोका मत करिए। ... जो मिले खाइए, प्रभु के गुण गाइए। अब किस बात की चिन्ता है तुम्हे?। क्यों बहन जी? .... देखती नहीं कि एक बात मुंह से निकला नहीं कि जवाब देने लगती है। मुकुल भी हमे ही डाट देता है,। मैने रोका था उसे मगर बड़ा हो गया है न हमारी बाते क्यो ....। कंठ अवरूद्ध हो गया। किसी वृद्ध का स्वर मर जाते है तो आँखें जल्द बरस पड़ती है। नीलम ने अपनी उंगलियों से आंसू पोछते हुए धिरज बंधाया और कहा, "अब अन्दर जाओ ममता बहन बाहर अंधेरा हो रहा है। अपनी बची खुची शक्ति को समेटे हुए सिढिया चढी.. बिना कुछ खाए-पीये बिस्तर पर सो गई।
       बूढ़ी अम्मा के दिमाग मे देर तक बेटे-बहू की बाते घुमती रही। ठीक वैसे ही जैसे अंधेरी बड़ी कोठरी मे किसी ने उसे बंद कर दिया हो। आज रात उन्हे रोज के मुकाबले मे बड़ी लगी।
        सबेरे सूर्योदय से पहले उठ गयी, ममता नहा-धोकर सच्चे मन से बेटे और बहू के घर लौट आने की ईश्वर से प्रार्थना किया और छत पर लगे कुर्सी पर आकर बैठ गये। कहते है कि माँ का ह्रदय दुष्टता से दूर होता है। पूत कपूत हो सकता है माता कुमाता नहीं हो सकती।ममता का मोबाईल काफी समय से बज रहा था। उसने फोन उठाया जो, उनके बेटे के करीबी दोस्त का था।कैसें हैं हमारे लाल..? कहां हैं उनके बच्चे..? वगैरह-वगैरह एक ही सांस मे कितने प्रश्न पूछ लिए थे अम्मा ने मुकुल के दोस्त से।
     हमारे यहाँ है और सब ठीक है। अंत मे उसने पूछा मुकुल घर आ रहा है? ,हाँ जा रहा वो और फोन कट गया। अम्मा आसमान को देख मानो पूछ रही हो, "बताओ हमारे बेटे-बहू आने के बाद मुझे क्या कहेंगे? पर आसमान कहां किसी को जवाब देता है। खूद ही कुछ कल्पना करने लगी। ठीक उसी समय उसके विचारो को तोड़ती हुई एक आवाज़ आई।, 'जो उसके बेटे मुकुल की थी- अम्मा तुम इस घर से निकलेगी तब हम इस घर मे रहेंगे।
    ये सुनते ही अम्मा के सीने मे शूल की भांति चुभ गयी और बुढ़ापे की विशाल ममता टूटे हुए ह्रदय से, निकल कर रोते हुए चली गयी।
लेखक -: राहुल कुमार, घर-:अलीगंज (जमुई) संपर्क -: 9661003520