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अल्लाह की रहमत और बेशुमार बरकतों वाला महीना है रमजान



भूख-प्यास की तड़प के बीच जबान से रूह तक पहुंचने वाली खुदा की इबादत हर मोमिन को उसका खास बना देती है...

धर्म एवं आध्यात्म | सुशान्त साईं सुन्दरम :

हर साल चांद के दीदार के साथ शुरू होने वाले माह-ए-रमजान की शुरुआत इस साल 7 मई से हो चुकी है. रहमत, मगफिरत के साथ ही जहन्नुम से आजादी दिलाने वाला मुकद्दस रमजान का महीना बेशुमार बरकतों वाला है. इस मुकद्दस महीने के तीन अशरे (हिस्से) होते हैं. इनमें रोजदार पर अल्लाह की रहमत बरसती है. सारे गुनाह माफ हो जाते हैं. जहनुन्न से आजादी मिलती है. अल्लाह के नेक बंदे खुद को इस महीने में इबादत करते हुए जन्नत का हकदार बना लेते हैं.

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रहमत का है पहला अशरा
माह-ए-रमजान का पहला अशरा रहमत का होता है. दूसरा अशरा मगफिरत का होता है. रमजान महीने का अंतिम और तीसरा अशरा जहन्नुम से आजादी का होता है. आखिरी अशरे में अल्लाह अपने बंदों को जहन्नुम से आजादी देते हैं. पहले दस दिन रहमत के अशरे में शामिल हैं. मुसलमानों को रोजा रखने के साथ तिलावत-ए-कलाम पाक और तरावीह की नमाज भी पाबंदी के साथ मुकम्मल करनी चाहिए.

दूसरे अशरे में गुनाहों की माफी मांगी जाती है
पहला अशरा रहमत का है, जिसमें अल्लाह अपने बंदों पर रहमत की बारिश करते हैं. दस दिन तक अल्लाह की बेशुमार रहमतें बंदों पर नाजिल होती हैं. दूसरा अशरा मगफिरत का है. इस अशरे में अल्लाह मरहूमों की मगफिरत फरमाते हैं. रोजेदारों को उनके गुनाहों से आजाद करते हैं. दूसरे अशरे में अल्लाह से गुनाहों की माफी मांगी जाए तो वह कबूल होती है.

जहन्नुम से आजादी का है तीसरा अशरा
तीसरा अशरा जहन्नुम से आजादी का होता है. तीसरे अशरे में अल्लाह अपने बंदों को जहन्नुम से निजात देते हैं. इस मुकद्दस महीने में मुसलमानों को रोजा रखने के साथ पांचों वक्त की नमाज व तरावीह पढ़नी चाहिए.

अल्लाह के नजदीक लेकर जाने वाले होते हैं रमजान के दिन
भूख-प्यास की तड़प के बीच जबान से रूह तक पहुंचने वाली खुदा की इबादत हर मोमिन को उसका खास बना देती है. खुद को हर बुराई से बचाकर अल्लाह के नजदीक ले जाने की यह सख्त कवायद हर मुसलमान के लिए खुद को पाक-साफ करने का सुनहरा मौका होती है. रमजान का मकसद खुद को गलत काम करने से रोकने की ताकत पैदा करना या उसे पुनर्जीवित करना है. शरीयत की जुबान में इस ताकत को ‘तक़वा’ कहा जाता है.