[गिद्धौर | अभिषेक कुमार झा]:-
धर्म, अध्यात्य व ज्ञान की भूमि के रूप में प्रसिद्ध गिद्धौर के चंदेल राजवंश की परम्पराओं व रीति रिवाजो का अपना एक अलग ही इतिहास रहा है। इन्ही इतिहास खंड में बिखरे महाराजा गिद्धौर के मंझले भतीजे कुमार रणबीर सिंह, के आवास गिद्धौर लार्ड मिन्टो टावर चौक से लगभग 1.5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित महुलीगढ़ में स्थापित दक्षिण काली मां का मंदिर आज भी गिद्धौर और महुलीगढ़ वासियों के लिए आस्था और विश्वास का केंद्र बना हुआ है। स्थानीय लोग इसे मशान काली के रूप में भी जानते है।
धर्म, अध्यात्य व ज्ञान की भूमि के रूप में प्रसिद्ध गिद्धौर के चंदेल राजवंश की परम्पराओं व रीति रिवाजो का अपना एक अलग ही इतिहास रहा है। इन्ही इतिहास खंड में बिखरे महाराजा गिद्धौर के मंझले भतीजे कुमार रणबीर सिंह, के आवास गिद्धौर लार्ड मिन्टो टावर चौक से लगभग 1.5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित महुलीगढ़ में स्थापित दक्षिण काली मां का मंदिर आज भी गिद्धौर और महुलीगढ़ वासियों के लिए आस्था और विश्वास का केंद्र बना हुआ है। स्थानीय लोग इसे मशान काली के रूप में भी जानते है।
प्राप्त जानकारी
अनुसार, इस मंदिर की स्थापना सन् 1920 ईस्वी में गिद्धौर राज परिवार के राज गुरु
तांत्रिक ललिता नन्द ब्रह्मचारी के द्वारा की गयी थी| महुलीगढ़ परिसर में इस मंदिर
का निर्माण, तंत्र विद्या में दीक्षित कुमार रणबीर सिंह ने 1920 में करवाया था|
निर्मित उक्त मंदिर में अष्टधातु की बनी बेस कीमती मां काली एवं महाकाल भैरव की
प्रातिमा का प्राण प्रतिष्ठा गिद्धौर राज परिवार के राजगुरु तांत्रिक ललितानंद
ब्रह्मचारी (तारापीठ) के द्वारा पूर्ण तांत्रिक पद्धति से किया गया है|
राज परिवार के दस्तावेजों में वर्नितानुसार,
इस मंदिर के उत्तराधिकारी वही हुआ करते थे, जो तंत्र विद्या में दीक्षित हुआ करते
थे| राजगुरु ललितानंद ब्रह्मचारी ने स्वर्गीय महाराजा चंद्र्यौलेश्वरी सिंह एवं
उनके भतीजे महुलीगढ़ के कुमार रणबीर सिंह, कुमार दिग्विजय सिंह, कुमार चंद्रशेखर
सिंह एवं कुमार शैलेश सिंह को भी तंत्रविद्या में दीक्षित किया था| लोगों का मानना
है कि, इस दक्षिण काली के मंदिर में नियम-निष्ठा के साथ जो भी मन्नत मांगता है, वो
जरुर पुरा होता है। महुलीगढ़ राज परिवार के कृपा कुमार सिंह के अनुसार, सबसे
पहले इस मंदिर के अधिकारी के रूप में कुमार रणबीर सिंह हुए। वे नियमित रूप से माँ
मशान काली मंदिर में प्रतिदिन तांत्रिक विधि के अनुसार पूजा कर मांस व मदिरा का
भोग लगाया करते थे। उन्होंने बताया कि आज भी विशेष पूजा का आयोजन अक्षय तृतीया
दुर्गा पूजा के नौवें दिन किया जाता है।
इस अवसर पर दक्षिण काली के समक्ष मांस एवं
मदिरा का महाभोग भी लगाया जाता है|। इस माह प्रसाद को पाने के लिए सैंकड़ो लोगों की
भीड़ लगी रहती है। उन्होंने बताया कि तंत्र विद्या में दीक्षित अंतिम उत्तराधिकारी
कुमार शैलेन्द्र सिंह (बब्बन जी) के निधन के बाद इस मंदिर में प्रतिदिन सामान्य पंडित
से पूजा कराई जा रही है, और मशान काली के समक्ष अब चावल, दाल और सब्जी का भोग हरेक
दिन लगाया जाता है। लेकिन हर वर्ष विशेष पूजा के अवसर पर तंत्र विद्या के जानकार
देवघर के पंडित द्वारा विशुद्ध तंत्र पद्धति से माशान काली की पूजाकर पञ्च मकार का
भोग भी लगाया जाता है।
लोगों की मान्यताएं है कि आज भी इस मंदिर में एक विशाल सर्प
प्रतिदिन माँ काली के दर्शनार्थ आते हैं और पुजारी के आने के बाद वह मंदिर से
निकलकर अचानक अदृश्य हो जाता है| महुलीगढ़ ग्राम के कई बुजुर्गो ने यह भी बताया कि इस
विशाल सर्प को कई लोगों ने देखा भी है, लेकिन अचानक गायब हो जाने के कारण महुलीगढ़
के लोगों ने इसे मशान काली के महिमा की संज्ञा दे रखी है।{साभार- अभय कुमार सिंह (वरिष्ठ पत्रकार)}