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बुधवार, 10 अक्टूबर 2018

कैसे तय होती है रुपये की कीमत! समझें रुपया और डॉलर का पूरा गणित

[न्यूज़ डेस्क | शुभम् कुमार] Edited by :- सुशान्त सिन्हा

बड़ा प्रचलित व्यंग है, “भारतीय रुपया सिर्फ एक ही समय उपर जाता है और वो है टॉस का समय।”
आज कल रुपये के गिरते भाव के कारण काफ़ी हो हल्ला मचा हुआ है। भारतीय मुद्रा यानी रुपया का मूल्य डॉलर के मुक़ाबले काफ़ी कम हो चुका है। पर क्या आप जानते हैं कि क्या है वो वजह जिसके कारण रुपया का मूल्य प्रभावित होता है और कैसे आप देशहित में रुपये को मजबूत करने में अपना योगदान दे सकते हैं।
आपका अपना विश्वसनीय व क्षेत्र का सर्वाधिक पढ़ा जाने वाला पोर्टल gidhaur.com बता रहा है ये सारा गणित।
बड़ी ही सीधी सी थ्योरी है, भारत के पास जितना कम डॉलर होगा, डॉलर का मूल्य उतना बढ़ेगा। भारत या कोई भी देश अपने ज़रूरत की वस्तुएँ या तो खुद बनाते हैं या उन्हें विदेशों से आयात करते हैं और विदेशों से कुछ भी आयात करने के लिए आपको उन्हें डॉलर में चुकाना पड़ता है। उदाहरण के तौर पर यदि किसी देश से आप तेल का आयात करना चाहते हैं तो उसका भुगतान आप रुपये में नही कर सकते, उसके लिए आपको अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्य किसी मुद्रा का प्रयोग करना होगा। तो इसका मतलब ये है कि भारत को भुगतान डॉलर या यूरो में करना होगा।
अब सवाल ये उठता है कि अंतरराष्ट्रीय खरीददारी करने के लिए हम डॉलर कहाँ से लायें! अपने देश में डॉलर या विदेशी मुद्रा विभिन्न माध्यमों से आती है।
1. निर्यात :-
देश में बनी वस्तुओ का निर्यात जब हम विदेशो में करते हैं तो उनसे हमें भुगतान के रूप में विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है।
2. विदेशी निवेश :-
विदेशों की कंपनियाँ जब देश में अपना कारोबार लगती हैं या यदि विदेशी निवेशक हमारे देश में उद्योग या शेयर बाजार में निवेश करते हैं तब भी हमें विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है।
3. विदेशो में रहने वेल भारतीय जब विदेशों से कमाया हुआ डॉलर देश में भेजते हैं तब भी हमारा विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ता है।
अब हमें अपने खर्चों एवं ज़रूरी वस्तुओं के आयात के लिए डॉलर का भंडार सुरक्षित रखना पड़ता है. जिसे “विदेशी मुद्रा भंडार” भी कहते हैं। यदि किसी कारणवश ये भंडार ख़त्म हो जाता है तो हमारे लिए बहुत बड़ी समस्या खड़ी हो जाएगी क्युकि तेल के बिना हमारी सारी अर्थव्यवस्था कमजोर पड जाएगी।
हमारे आयात का बिल और निर्यात के बिल में एक संतुलन आवश्यक है। यदि ये संतुलन खराब होता है तब हमारे यहाँ विदेशी मुद्रा की कमी हो जाती है जिसे “करेंट अकाउंट डेफिसिट” भी कहते हैं। अभी भारत करेंट अकाउंट डेफिसिट की समस्या से गुजर रहा है जिसकी वजह से हमारी मुद्रा का लगातार का अवमूल्यन हो रहा है। जिससे रुपये का मूल्य लगातार गिरता चला जा रहा है।
आइये जरा ये भी जानें की रुपये को मजबूत करने के लिए क्या-क्या किया जा सकता है :-
1. निर्यात बढ़ाया जाए जिससे की विदेशी मुद्रा की प्राप्ति हो। उत्पादन बढ़ाए जाएँ जिससे की अधिक से अधिक निर्यात हो सके।
2. स्वदेशी अपनाओ :-
विदेशो में बनने वाली 80 पैसे की ड्रिंक यहाँ 15 से 20 रुपये में बेची जाती है। यदि हम स्वदेशी वस्तुओं या प्रयोग करना शुरू कर दें तो इन विदेशी वस्तुओं को आयात करने का खर्च बच जाएगा।
3. तेल का विकल्प :-
हम बड़ी मात्रा में तेल का आयात करने पर मजबूर हैं क्युकि देश में तेल का उत्पादन माँग के अनुसार नही है। यदि हम तेल पर आश्रित अपनी अर्थव्यवस्था को बदलने की कोशिश करें तो विदेशी भंडार एक बहुत बड़ा हिस्सा हम बचा सकते हैं और इसके लिए हमें तेल के विकल्पों पर विचार करना चाहिए।
4. भारतीयो का स्वर्ण प्रेम :-
भारतवासियों का सोना से लगाव काफ़ी पुराना है। विवाह या पर्व त्योहारो पर सोने की माँग में अप्रत्याशित वृद्धि देखी जाती है जिससे हमारा आयात बिल बढ़ता है।
मोटे तौर पर रुपये को मजबूती देने के लिए हमें विदेशो से निवेश बढ़ाना होगा। विदेशी निवेशको के लिए अनुकूल माहौल का निर्माण करना होगा। इसके अलावे स्वदेशी अपनाना होगा। जिन चीज़ो को हम देश में बना सकते हैं उनका आयात बंद करना होगा। हर भारतीय को ईमानदारी के साथ भारत का विकास में योगदान देना होगा। उत्पादन जितना बढ़ेगा, निर्यात उतना अधिक होगा, जिससे हमारी अर्थव्यवस्था मजबूत होगी।

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