आप सभी सुधि पाठकों को पहले ही सूचित कर दूँ कि यह मेरी सच्ची कहानी नहीं है. यह गिद्धौर और इस एरिया के ऐसे कई लड़को की कहानी हैं जिनके लिए शारदीय नवरात्र का आठवां दिन यानि जगरणा (जागरण) बहुत ही खास मौका होता है जिसमे माता के दर्शन के बाद, उस बचपन और स्कूल वाली क्रश के दर्शन का इन्तेजार होता है, जिसे बचपन मे दोस्त तो बनाया था लेकिन आज यौवन की दहलीज पर कदम रखते ही उसे अपनी जान, बेबी और महबूबा बनाना चाहते है.
आज जगरणा है, नवरात्रा का आठवाँ दिन. माता के इस जगराता में भक्ति-भावना मे लीन होने के बाद न जाने हमारे अन्दर कितनी भावनाएँ जागृत हो उठती है. चलिए आज हम आपको आज के मेला का कुछ बात बताते हैं, जगरणा मे हम और हमरे प्यारे सहपाठी या फिर लंगोटिया यार बोल ले या फिर आपको जे समझना हैं उ समझ लीजिए, सब कोय घर से टार्गेट बनाकर निकलते है घर से 8 बजे के पहले नाय निकलना हैं जानते है काहे, काहे कि बचपन से ही देखते रहे कि हम्मर वो स्कूल वाली सहेली 8 बजे के बाद मेला मे एंट्री मारती है. बस अन्तर यह्हे है कि अब 3-4 साल से हम अप्पन दोस्त के साथ मेला घुमते है और उ अब भी अप्पन मम्मी पापा के साथ. बहुते बडा हो गयी है उ भी, हमरी तरह, अब हम कहीं और वो कहीं और, लेकिन हाँ नजरें मिली तो थोडी सी स्माइल हो जाती है, लेकिन मम्मी पापा से बचकर.
आज भी भोरवे सब दोस्त प्लान बना चुके हैं की सात बजे के बाद जाना है. आज भी उसका इन्तजार रहेगा. दिन बदला, साल बदला अब मेरा दिल बचपन वाली वो प्यार को, इश्क-मोहब्बत वाली प्यार मे बदलना चाहता है, शायद वो भी यही चाहती है. इसलिए आज रात केमेस्ट्री उल्टी चलेगी और मैं प्रोटान बनुगा और उसका बाप न्यूट्रान. एक बात बताए हर पुजा मे जब दुर्गा माँ से कुछ माँगे तो ओकरो लिए भी हमेशा माँ से सुखद जीवन और खुशी मांगे, लेकिन ओक्कर बाप इ बात समझवे नहीं करता है. इ वाला कहानी मे सिर्फ जगरणा मेला का उल्लेख करने का मतलब इ है कि वो भसान के दिन नहीं आती है बोलती है गिद्धौर मेला मे बडी भीड़ रहता है, कमीना लडका लोग जान-बुझकर धक्का देता है.
ताजा अपडेट दे दूँ की रात के मेले में फिर वो मिली मीना बाजार के पास हाथ मे कुछ लिए थी शायद कनफुदना टिकुली होगा, यहीं सब तो उसका ब्यूटफुल होने वाला श्रृंगार है और एक लिपस्टिक भी लेकिन कलर नहीं बतायेंगे जी. सच्चे बोले तो रात मे वो बहुते खूबसूरत लग रही थी, लेकिन पहले की तरह ही बस एक स्माइल दे गई, लेकिन इस बार उसकी ये स्माइल मानों दोस्ती वाले प्यार को इश्क में बदलने के लिए हाँ कर गई. जानते हैं इस बार आवेशित कण ओकरा साथ नहीं थे यानी की उनके "डैडी". एक बात औरो बोले कोई भी लड़की मेला मे मम्मी पापा के साथ ही घुमते हुए ज्यादा खूबसूरत लगती है. मेरा हर जगरणा बस ऐसी ही कहानी के इर्दगिर्द घुमती रहती है. आप सब से भी गुजारिश है कि मेला परिसर मे घुमते वक्त अपने सहेली जिसको आप प्रियतम मानते है या फिर जो भी जानु, बेबी या स्वीटहार्ट लेकिन उसपर खास नजर बनाए रखें, का पता वो भी बैचेन हो आपसे एक नजर मिलाने के लिए. चलिए ठीक है, फेरो मिलते हैं तनी दिन में कौनो और कहानी के साथ तब तक के लिए बाय.