सिमुलतला (बिरेन्द्र कुमार) : हरितालिका तीज व्रत महिलाओं द्वारा पति की लंबी उम्र की कामना के लिए बड़े ही उत्साह व श्रद्धा के साथ बुधवार को मनाया गया। मंदिरों व कई घरों में सजाई गई तीज झांकी में गौरी-शंकर का पूजन किया गया। यह व्रत सुहागिन महिलाएं करती हैं।
हरितालिका तीज का यह पर्व भाद्र पद के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है, इस पर्व के अगले दिन ही गणेश चतुर्थी का पर्व भी मनाया जाता है, जिस दिन से गणेश उत्सव की शुरुआत होती है। इस बार यह पर्व 12 सितंबर को पड़ा, जिसमें सूर्योदय के बाद से देर रात्रि तक पूजा का मुहूर्त माना गया।
इस दिन हरितालिका तीज पर महिलाओं ने निर्जला व्रत रखकर देर रात तक पूजा-अर्चन किया और शंकर-पार्वती की बालू या मिट्टी की मूर्ति बनाकर पूजा किया गया। घर साफ-सफाई कर आम व केला के पत्तों के तोरण-मंडप आदि से सजाया गया। हालांकि पूर्व की भांति हर घर में तीज पर झांकियां नहीं सजाई गईं, जिसके चलते महिलाओं ने मंदिरों में सजाई गईं तीज झांकी पर पहुंचकर पूजन अर्चन किया और भजन-कीर्तन का दौर मध्य रात्रि के बाद तक चला।
पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान शिव ने पार्वती को इस व्रत के बारे में विस्तार पूर्वक समझाया था। गौरा ने माता पार्वती के रुप में हिमालय के घर में जन्म लिया था। बचपन से ही पार्वती भगवान शिव को वर के रुप में पाना चाहती थीं और उसके लिए उन्होंने कठोर तप किया। तब नारद जी ने हिमालय को बताया कि पार्वती के कठोर तप से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु उनकी पुत्री से विवाह करना चाहते हैं। नारद मुनि की बात सुनकर महाराज हिमालय बहुत प्रसन्न हुए।
उधर, भगवान विष्णु के सामने जाकर नारद मुनि बोले कि महाराज हिमालय अपनी पुत्री पार्वती से आपका विवाह करवाना चाहते हैं। भगवान विष्णु ने भी इसकी अनुमति दे दी। लेकिन जब माता पार्वती के पास जाकर नारदजी ने यह जानकारी तो यह सुनकर पार्वती बहुत निराश हुईं और वह अपनी सखियों के साथ घने सुनसान जंगल में स्थित एक गुफा चली गईं। यहीं रहकर उन्होंने भगवान शिव को पति रुप में पाने के लिए कठोर तप शुरु किया था, जिसके लिए उन्होंने रेत के शिवलिंग की स्थापना की।
संयोग से हस्त नक्षत्र में भाद्रपद शुक्ल तृतीया का वह दिन था जब माता पार्वती ने शिवलिंग की स्थापना की और निर्जला उपवास रखते हुए उन्होंने रात्रि में जागरण भी किया। तब भगवान शिव प्रसन्न हुए माता पार्वती जी को उनकी मनोकामना पूर्ण होने का वरदान दिया। उसी दिन से इस दिन तीज व्रत रखने की परंपरा मानी जाती है।
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