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गिद्धौर राज रियासत द्वारा करवाया गया था इस काली मंदिर का निर्माण



[न्यूज डेस्क | अभिषेक कुमार झा]
मंत्रोच्चारण,  ढोल की थाप, और शंखों की पवित्र ध्वनि...कुछ ऐसा ही नज़ारा दिखा गिद्धौर के पतसंडा पंचायत अंतर्गत राजपुत टोला स्थित माँ काली मंदिर में. मौका था माँ काली के वार्षिक पूजनोत्सव का जहाँ सुबह से ही मां काली की पूजा-अर्चना करने के लिए भक्तों का तांता लगा रहा. मंगलवार को पतसंडा के ऐतिहासिक काली मंदिर में मां की वार्षिक  पूजा पूरे नियम- निष्ठा के साथ संपन्न हुआ। गिद्धौर स्थित इस काली मंदिर का निर्माण गिद्धौर राज रियासत द्वारा करवाया गया था तब से लेकर आज तक इस मंदिर में विधिवत रूप से सावन माह में वार्षिक पूजा की परंपरा चली आ रही है।

इस मंदिर के इतिहास पर यदि बात  करें तो, यह मंदिर लगभग ढाई सौ वर्षों  से अधिक का बताया जाता है. सन 1893 ई. में इस मंदिर का निर्माण महाराजा रावणेश्वर सिंह के द्वारा कराया गया था. सन 1923 ई. में उनकी मृत्यु के बाद तत्कालीन महाराजा चंद्र मौलेश्वर सिंह ने काली मंदिर के स्वरुप में परिवर्तन कराया तथा राज परिवार की ओर नियमित पूजा-पाठ के लिए पंडित हरि गौरी मिश्रा, सोमनाथ मिश्र एवं विश्वनाथ मिश्र को जिम्मेदारी सौंपी.


 कलांतर के बाद गिद्धौर में यह मंदिर काली मंडा के नाम से विख्यात हो गया. गिद्धौर में काली मंडा के नाम से विख्यात इस मंदिर का रखरखाव एवं जीर्णोद्वार का कार्य फ़िलहाल ग्रामीणों के सहयोग से किया जाता है. मंदिर का अस्तित्व कायम रखते हुए प्रत्येक वर्ष इस मंदिर में काली पूजा का आयोजन ग्रामीणों द्वारा धूमधाम से कराया जाता है. राजपरिवार के द्वारा प्रतिनियुक्त पुजारियों के हट जाने के बाद ग्रामीणों द्वारा आचार्य कृष्ण कुमार शास्त्री को मंदिर के पूजा पाठ की जिम्मेदारी सौंपी गई थी. उनके निधन के बाद यह जिम्मेवारी कलानंद पांडे एवं पंडित जलधर पांडे को सौंपी गई.



 पुजारी आचार्य कलानंद पांडे ने जानकारी देते हुए बताया कि इस मंदिर में वार्षिक पूजा श्रावण माह के शुक्ल पक्ष में मंगलवार या सोमवार से होता है. उन्होंने बताया कि ग्रामीण पूजा के नाम से प्रचलित इस अवसर पर जो भी श्रद्धालु मां काली से मन्नत मांगते हैं वह अवश्य पूरी होती है. बुजुर्ग ग्रामीण बताते हैं कि इस वार्षिक पूजा के अवसर पर बकरे की बलि चढ़ाने की पुरानी परंपरा चली आ रही है.

पाठकों को बता दे कि, वार्षिक पूजा के अवसर पर गिद्धौर के इस काली मंदिर में आसपास के गांव की सभी महिला एवं पुरुष भाग लेकर माँ काली को  प्रसाद चढ़ाते हैं. इस मंदिर में वृहद रूप से होने वाला वार्षिक ग्राम पूजा के प्रति ग्रामीणों की श्रद्धा व अखंड विश्वास मां काली की महिमा से बढ़ता जा रहा है, लिहाजा 25 दसक पूर्व निर्मित काली मंदिर आज भी स्थानीय ग्रामीणों के लिए आस्था और विश्वास का केंद्र बना हुआ है.