विशेष (सुशांत सिन्हा) : दुनिया के सभी देशों अपने-अपने झंडे हैं. ये झंडे उन देशों के आन-बान-शान के प्रतीक हैं. हमारे देश भारत का भी झंडा है जो हमारे लिए बहुत ही अहमियत रखता है. भारतीय झंडे को तिरंगा कहा जाता है. कम ही लोग जानते हैं कि हमारे राष्ट्रध्वज को पिंगली वेंकैया नाम के व्यक्ति ने डिजाइन किया था. पिंगली वेंकैया का जन्म वर्ष 1876 में 2 अगस्त को हुआ था.
भारत वापस आने पर उन्होंने एक रेलवे गार्ड के रूप में और फिर बेल्लारी में एक सरकारी कर्मचारी के रूप में काम किया. बाद में वो एंग्लो वैदिक महाविद्यालय में उर्दू और जापानी भाषा का अध्ययन करने लाहौर चले गए. उन्हें उर्दू और जापानी समेत कई तरह की भाषाओं की अच्छी जानकारी थी. वो जियोलॉजी में डॉक्ट्रेट थे. हीरे के खनन में भी उन्हें विशेषज्ञता हासिल थी. इसी वजह से उन्हें डायमंड वेकैंया नाम दिया गया था.
वर्ष 1906 से लेकर 1911 तक वे कपास की फसल की अलग-अलग किस्मों के तुलनात्मक अध्ययन में व्यस्त रहे. उन्होंने बॉम्वोलार्ट कंबोडिया कपास पर एक अध्ययन भी प्रकाशित किया था. इसके बाद उनका नाम पट्टी वैंकैया पड़ गया था. वर्ष 1921 में पिंगाली ने केसरिया और हरा झंडा सामने रखा था. फिर जालंधर के लाला हंसराज ने इसमें चर्खा जोड़ा और गांधीजी ने सफेद पट्टी जोड़ने का सुझाव दिया था. पिंगाली का निधन 4 जुलाई 1963 को हुआ था.
भारतीय राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा को इसके वर्तमान स्वरूप में 22 जुलाई 1947 को आयोजित भारतीय संविधान सभा की बैठक के दौरान अपनाया गया था, जो 15 अगस्त 1947 को अंग्रेजों से भारत की स्वतंत्रता के कुछ ही दिन पूर्व की गई थी. इसे 15 अगस्त 1947 और 26 जनवरी 1950 के बीच भारत के राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया गया था.
आज हम gidhaur.com के द्वारा आपको बताने जा रहे हैं उनके बारे में ऐसी बातें, जो उन्हें आम से खास बनाती हैं.
महज 19 वर्ष की उम्र में पिंगली वेंकैया ब्रिटिश आर्मी से जुड़े और अफ्रीका में एंग्लो-बोएर जंग में हिस्सा लिया. वहां उनकी भेंट महात्मा गांधी से हुई. मछलीपत्तनम से हाई स्कूल उत्तीर्ण करने के बाद वो अपने वरिष्ठ कैम्ब्रिज को पूरा करने के लिए कोलंबो चले गए.
भारत वापस आने पर उन्होंने एक रेलवे गार्ड के रूप में और फिर बेल्लारी में एक सरकारी कर्मचारी के रूप में काम किया. बाद में वो एंग्लो वैदिक महाविद्यालय में उर्दू और जापानी भाषा का अध्ययन करने लाहौर चले गए. उन्हें उर्दू और जापानी समेत कई तरह की भाषाओं की अच्छी जानकारी थी. वो जियोलॉजी में डॉक्ट्रेट थे. हीरे के खनन में भी उन्हें विशेषज्ञता हासिल थी. इसी वजह से उन्हें डायमंड वेकैंया नाम दिया गया था.
वर्ष 1906 से लेकर 1911 तक वे कपास की फसल की अलग-अलग किस्मों के तुलनात्मक अध्ययन में व्यस्त रहे. उन्होंने बॉम्वोलार्ट कंबोडिया कपास पर एक अध्ययन भी प्रकाशित किया था. इसके बाद उनका नाम पट्टी वैंकैया पड़ गया था. वर्ष 1921 में पिंगाली ने केसरिया और हरा झंडा सामने रखा था. फिर जालंधर के लाला हंसराज ने इसमें चर्खा जोड़ा और गांधीजी ने सफेद पट्टी जोड़ने का सुझाव दिया था. पिंगाली का निधन 4 जुलाई 1963 को हुआ था.
भारतीय राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा को इसके वर्तमान स्वरूप में 22 जुलाई 1947 को आयोजित भारतीय संविधान सभा की बैठक के दौरान अपनाया गया था, जो 15 अगस्त 1947 को अंग्रेजों से भारत की स्वतंत्रता के कुछ ही दिन पूर्व की गई थी. इसे 15 अगस्त 1947 और 26 जनवरी 1950 के बीच भारत के राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया गया था.