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नहीं जानते तो जान लीजिये, सुशासन बाबू पर दर्ज है हत्या का मुकदमा

विशेष (सुशान्त सिन्हा) : बिहार की राजनीति में कद्दावर नेता माने जाने वाले एवं सुशासन बाबू के नाम से विख्यात जनता दल (यूनाइटेड) के वर्तमान अध्यक्ष व सूबे के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को आज बच्चा-बच्चा जानता है. नीतीश कुमार के सत्तारूढ़ होते ही बिहार के सूरत-ए-हाल में बड़ा परिवर्तन आया. जिसके चलते नीतीश लोगों के चहेते बन गए. लेकिन कुछ लोग शायद ही इस बात को जानते होंगे की नीतीश कुमार पर हत्या का मुक़दमा भी दर्ज है. इस घटना को लेकर महागठबंधन से अलग होने के बाद राजद सुप्रीमो लालू यादव भी नीतीश कुमार को निशाने पर ले चुके हैं.

जी हाँ! स्वच्छ छवि वाले सीएम नीतीश की छवि पर यह एक दाग की तरह है. नीतीश कुमार पर हत्या का ये मामला 1991 का है. 1991 में बिहार में हुए लोकसभा के मध्यावधि चुनाव में बाढ़ संसदीय क्षेत्र से नीतीश कुमार जनता दल के उम्मीदवार थे. इस क्षेत्र में वोटिंग के दौरान कांग्रेस कार्यकर्ता सीताराम सिंह नाम के एक व्यक्ति की गोली मार कर हत्या कर दी गई थी. इस मामले में ढीबर गांव के अशोक सिंह ने नीतीश कुमार को हत्या में नामजद किया था. 2009 में बाढ़ कोर्ट के तत्कालीन एसीजेएम रंजन कुमार ने इस मामले में तत्कालीन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को दोषी पाते हुए उनपर इस मामले में ट्रायल शुरू करने का आदेश दिया था.
बाद में इस मामले का हाईकोर्ट में स्‍थानांतरित करा दिया गया. वर्ष 2009 से लेकर अबतक यह मामला हाइकोर्ट में लंबित है. एक समय न्यायाधीश सीमा अली खान ने इस मामले में नीतीश की पैरवी कर रहे उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता सुरेंद्र सिंह की दलीलों को सुनने के बाद अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था. बाद में फिर से मामले पर सुनवाई शुरू हुई जो अभी भी चल रही है. 

17 नवंबर 1991 में पटना जनपद के पांडरक में एक मतदान बूथ पर कांग्रेस कार्यकर्ता सीताराम सिंह की हत्या कर दी गई थी, जिसमें नीतीश कुमार और एलजेपी के एक विधायक दूलचंद यादव के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 147 (दंगा), 148 (घातक हथियारों से सशस्त्र दंगा), 149 (गैरकानूनी विधानसभा), 302 (हत्या), 307 (हत्या की कोशिश) के तहत मामला दर्ज किया गया था. यह मामला मृतक के रिश्तेदार द्वारा दायर याचिका के बाद दर्ज किया गया था, जिस पर अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट रंजन कुमार ने 1 सितंबर, 2009 को एक आदेश पारित कर दोनों आरोपियों को कोर्ट में तलब किया था.

अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने कहा था कि, “आरोपियों के खिलाफ वोट देने के लिए सीताराम सिंह की हत्या और चार लोगों पर गोलीबारी का आरोप है.”
वोट डालने से रोकने को नीतीश कुमार ने चलाई थी गोली!
सीताराम सिंह हत्या मामले में गवाह अशोक सिंह ने बाढ़ के अपर मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी की अदालत में शिकायत पत्र दायर कर आरोप लगाया था कि बाढ़ संसदीय उपचुनाव के दौरान 16 नवंबर 1991 को वे सीता राम सिंह सहित अन्य लोगों के साथ मतदान करने जा रहे थे, तभी वहां जनता दल प्रत्याशी नीतीश कुमार, तत्कालीन मोकामा विधायक दिलीप सिंह और कुछ हथियारबंद लोगों के साथ पहुंचे और वोट ना देने को कहा. इन लोगों की बात जब सीताराम ने उनकी बात नहीं मानी तो नीतीश ने राइफल उस पर गोली चला दी, जिससे उसकी मौत हो गई. जबकि उनके साथ आये अन्य लोगों द्वारा की गयी गोलीबारी से सुरेश सिंह, मौली सिंह, मन्नू सिंह एवं रामबाबू सिंह घायल हो गये थे. इस मामले में अशोक ने ही रिपोर्ट दर्ज कराई थी और वो ही मुख्य गवाह हैं.
अशोक सिंह के परिवाद पत्र पर बाढ़ के अपर मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी रंजन कुमार ने 31 अगस्‍त 2010 को सिंह के बयान और दो गवाहों रामानंद सिंह और कैलू महतो द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य के आधार पर अपराध दंड संहिता 202 के अंतर्गत नीतीश और दुलारचंद यादव को अदालत के समक्ष गत नौ सितंबर को उपस्थित होने का निर्देश दिया था. 

बाद में नीतीश द्वारा इस मामले में पटना उच्च न्यायालय का रुख किये जाने पर न्यायालय ने बाढ़ अनुमंडल अदालत के उक्त आदेश पर रोक लगा दी थी तथा इस कांड में नीतीश से जुड़े सभी मामलों को उसके पास भेजने को कहा था.

सीएम नीतीश के खिलाफ कांग्रेस नेता की हत्या में सबूतों के साथ छेड़छाड़ करने की कोशिश करने पर आरोप लगाते हुए 14 अक्टूबर 1991 को पटना हाईकोर्ट में एक आपराधिक रिट याचिका दायर की गई थी.
इस रिट याचिका कांग्रेस के कार्यकर्ता सीताराम सिंह की मां शैल देवी और भाई ने दायर की थी. याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया था कि नीतीश कुमार ने इस मामले में गवाहों को प्रभावित करने और साक्ष्यों के साथ छेड़छाड़ करने की कोशिश की थी.

एक अदालत से बरी पर मुकदमा कायम

याचिकाकर्ताओं के वकीलों ने अदालत में उनके क्लाइंट के मामले की जांच बाहर की एजेंसी द्वारा किए जाने की मांग की थी, क्योंकि उन्हें लग रहा था कि इस मामले का निष्पक्ष मुकदमा और जांच उन्हें बिहार में संभव नहीं लगती. गौरतलब है कि बाढ़ अदालत ने इस मामले से नीतीश कुमार को बरी कर दिया था, क्योंकि कोर्ट के मुताबिक इस मामले में नीतीश के खिलाफ कोई सबूत नहीं थे.

हालांकि कोर्ट ने 31 अगस्त, 2009 को शिकायत पर संज्ञान लेते हुए 10 सितंबर, 2009 को नीतीश को अदालत में पेश होने का आदेश दिया था, क्योंकि एक प्रमुख गवाह रामानंद सिंह ने इसमें नीतीश की संलिप्तता को जाहिर किया था.

नीतीश कुमार ने तब इस मामले को पटना हाइकोर्ट में चुनौती दी थी, जिसके बाद बाढ़ अदालत में उनके खिलाफ सभी कार्रवाइयां रोक दी गयी थीं.