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सोमवार, 30 जुलाई 2018

झाझा को छोड़ पाटलिपुत्रा रेलवे स्टेशन की शान बढ़ाएगा ब्रिटिश काल का यह स्टीम इंजन

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[gidhaur.com | इनपुट सहयोगी]
जमुई जिले के रेलनगरी झाझा को विरासत में मिली ब्रिटिश काल के स्टीम इंजन अब अंग्रेजों की निशानी बनकर झाझा की शोभा न बनकर पटना के पाटलीपुत्रा स्टेशन की शोभा बनने को तयारी में है, जिसकी तैयारी रेलवे प्रशासन द्वारा पूरी कर ली गई है। जब झाझा रेलनगरी से स्टीम इंजन रवाना हुआ तो उसे देख झाझावासियों में मायूसी देखी गयी। कई तो ऐसे व्यवसायी थे जो इस स्टीम इंजन को रोकने के लिए आगे भी बढ़े लेकिन काफी देर हो चुकी थी।

जबकि अंग्रेजों के जमाने की झाझा रेलनागरी को स्टीम लोको के नाम से पूरे देश में जाना जाता हैे। पूरे देश में अपनी छाप छोड़ने वाला झाझा रेलनगरी का स्टीम इंजन अब दूसरे स्टेशन के मॉडल के रूप में रखा जाएगा। जबकि अंग्रेजों द्वारा रेलवे की नींव स्टीम इंजन के माध्यम से रखी थी और झाझा में ही स्टीम इंजन का रखरखाव एवं बनाने का कार्य प्रारंभ किया गया था।

वर्ष 1991-92 में केन्द्र सरकार ने स्टीम इंजन को बंद करने का निर्णय लिया। जिसके विरोध में झाझावासियों ने तत्कालीन सरकार के विरोध में जमकर विरोध-प्रदर्शन किया था, जो लगभग तीन महीने तक चला था जिसमें तत्कालीन रेलराज्य मंत्री स्व. दिग्विजय सिंह सहित कई अन्य नेताओं ने भी इस विरोध -प्रदर्शन में भाग लिया था। इस दिन को आज भी झाझावासी याद करते हैं और कहते हैं कि स्टीम इंजन के बंद होते ही झाझा की रौनक कहाँ चली गयी पता नहीं। जबकि आन्दोलनकारियों ने रेलवे बोर्ड से रेलनगरी झाझा में डीजल इंजन या इलेक्ट्रिक इंजन कारखाना की स्थापना करने की भी मांग की। जिसपर रेलवे बोर्ड ने आश्वासन तो दिया, लेकिन झाझा को आज ये नसीब नहीं हुआ। 
jhajha+steam+engine
इधर दानापुर मंडल से आए अधिकारी ने कहा कि स्टीम इंजन को पटना के पाटलीपुत्रा स्टेशन पर मॉडल के रूप में रखा जाएगा। जिसे ले जाने के लिए इंजन को ट्रैक पर लोड किया गया है लेकिन बरसात होने कारण ट्रैक मिट्टी में धंस गया और वह बाहर नहीं निकल पा रहा है। जबकि स्टीम इंजन का सभी चक्का आदि यंत्र सही रूप में है। पूर्व काल के इस इंजन को रेलवे बोर्ड ने संजोकर रखने का निर्णय लिया है।

इस मामले में रामप्रसाद वर्णवाल, राजू रिलाईस आदि कई व्यवसायियों ने कहा कि झाझा का स्टीम इंजन झाझा की शोभा होना चाहिए थी। इस इंजन को झाझा स्टेशन के बाहर प्रदर्शनी के रूप में लगाया जाना चाहिए था। व्यवसायियों ने रेलवे प्रशासन से मांग करते हुए कहा कि झाझा रेलनगरी में ही इस इंजन को रखा जाय ताकि झाझावासियों के साथ-साथ जमुई जिले से इसकी प्राचीन यादें जुड़ी रहे, ताकि यह अतीत की निशानी को भविष्य मे भी रेलनगरी की शोभा में चार चान्द लगाते रहे।

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