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रविवार, 18 मार्च 2018

चेहरे पर मुस्कान बांट रही हैं शगुन कृष्णा

Gidhaur.com (विशेष) : यह बिहार और नेपाल की तराई में बसी निर्मली की शगुण कृष्णा की कहानी है. बाधाओं पर विजय की उनकी प्रेरक कहानी. एक साधारण किसान परिवार में जन्मीं शगुन कृष्णा के पिता खेती कर अपने 6 बच्चों, तीन बेटे और तीन बेटियों की लालन पालन करते थे. बच्चों की पढ़ाई पर उन्होंने प्रारंभ से ही ध्यान दिया.

शगुन बताती हैं की उनके पिता ने जब उन्हें पढ़ने के लिए बोर्डिंग स्कूल में भेजा, उसी समय से उनके दिमाग में यह बात आई कि वह अपने पिता के कष्टों को उनके बलिदान को एक मुकाम देकर रहेगी. पटना विश्वविद्यालय से स्नातक की पढ़ाई के पश्चात शगुन आगे की पढ़ाई के लिए दिल्ली गई. वहां जाने के बाद उन्होंने सोचा कि जो अपने अंदर की कलात्मकता है उसे किसी अन्य क्षेत्र में जीवंत किया जाए. इसलिए दिल्ली में उन्होंने शहनाज ब्यूटी क्लिनिक से ब्यूटीशियन का कोर्स किया.
वर्ष 1989 में दवा कारोबारी सतीश चंद्रा से उनका विवाह हुआ. शगुन पटना विमेंस कॉलेज में 15 वर्षों तक   फैशन और ब्यूटी की फेकल्टी के तौर पर रही है. माता रानी मे उनकी असीम आस्था है. विवेकानंद उनके पसंदीदा लेखक है, जिनसे वो अपने जीवन मे सबसे अधिक प्रभावित रही है.
फिलहाल सक्षम संस्था जो राष्ट्रीय स्तर पर दिव्यांगों की सहायता के लिए कार्य कर रही है, में पटना महानगर के उपाध्यक्ष के रूप कार्यान्वित है.

पर्सनालिटी डेवलपमेंट कोर्स, योगा एरोबिक जैसे कोर्स उनके कुशल निर्देशन में संचालित होते हैं. आज भी शगुन कृष्णा की लोकप्रियता छात्राओं के बीच वैसे ही है, जैसे पहले होती थी. उनकी समाज सेवा अनूठी है. जब भी कोई जरूरतमंद लड़की उनके पास मुश्किल मे आती है, तो वह अपने सेंटर पर मिडिल क्लास और लोअर क्लास क्लास की लड़कियों एवं महिलाओं को यह कला सिखाती है.
जो महिला थोड़ी आर्थिक परेशानी मे भी हो, वो उनके सेंटर में अपने नए नक्श को जब हुए अच्छे ढंग से सुसज्जित होकर बाहर निकलती है और उनके चेहरे पर जो मुस्कान आती है वही उनके लिए सबसे बड़ी पूंजी है. महिलाओ के बीच ये काफी चर्चित कथन है, अच्छा शगुन करना हो तो बस पहले शगुन (शगुन कृष्णा) के पास चले आओ.

अनूप नारायण
18/03/2018, रविवार

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