Gidhaur.com (विशेष/इतिहास) : कुम्भलगढ़ का निर्माण 15वीं सदी में महाराणा कुंभा ने किया था। मेवाड़ के 84 में से 32 किलों को महाराणा कुंभा ने बनवाया जिनमे यह सबसे बड़ा और अजेय दुर्ग है। किले को देश का सबसे मजबूत दुर्ग माना जाता है जिसे आज तक सीधे युद्ध में जीतना नामुमकिन है। गुजरात के अहमद शाह से लेकर महमूद ख़िलजी सभी ने आक्रमण किया लेकिन कोई भी युद्ध में इसे जीत नही सका। यह चित्तौरगढ़ के बाद सबसे बड़ा दुर्ग है। इसकी परकोटे की दीवार लंबाई में दुनिया में चीन की दीवार के बाद दुसरे स्थान पर है। इसकी लंबाई 38 किलोमीटर है और इसे भारत की महान दिवार भी कहा जाता है।
कुम्भलगढ़ के निर्माण के वक्त आने वाली बाधाओ को दूर करने के लिये सबसे पहले इस स्थान पर एक राजपूत योद्धा की स्वेछिक नर बलि दी गई थी। कुम्भलगढ़ मेवाड़ के महाराणाओं की शरणस्थली रहा है। विपत्तिकाल में हमेशा महाराणाओं ने इस दुर्ग में शरण ली है। यही पर महाराणा उदय सिंह को छिपाकर सुरक्षित रखा गया और उनका पालन हुआ।
इसी दुर्ग में हिंदुआ सूर्य महाराणा प्रताप का जन्म हुआ। उस कमरे को आज भी देखा जा सकता है। महाराणा कुंभा हर रात को दुर्ग के निचे वादियों में काम करने वाले किसानो के लिये 50 किलो घी और 100 किलो रुई के इस्तमाल से जलने वाले दियो से रोशनी करवाते थे। किले को हाल ही में चित्तोड़, गागरोन, जैसलमेर, आम्बेर और रणथम्भोर के साथ यूनेस्को की वर्ल्ड हेरिटेज साईट के रूप में मान्यता मिली है और इन्हें राजपूत पहाड़ी दुर्ग कला का अद्वितीय नमूना माना गया है।
कुम्भलगढ़ किला 1100 मीटर ऊँची पहाड़ी पर बना है और इसकी दीवारे 14 फ़ीट मोटी हैँ और इसके 7 मुख्य दरवाजे हैँ। इस दुर्ग में 360 जैन और सनातनी मन्दिर हैँ जिनमे कई अब भी अच्छी हालत में है। कुम्भलगढ़ से एक तरफ सैकड़ो किलोमीटर में फैले अरावली पर्वत श्रृंखला की हरियाली दिखाई देती हैँ जिनसे वो घिरा है। वहीँ दूसरी तरफ थार रेगिस्तान के रेत के टीले भी दिखते हैँ। हर साल यहाँ राजस्थान सरकार द्वारा 3 दिन का उत्सव मनाया जाता है जिसमे महाराणा कुंभा के स्थापत्य और कला में योगदान को याद किया जाता है।
Gidhaur.com के लिए अनूप नारायण की विशेष रिपोर्ट
09/02/2018, शुक्रवार