नीतीश ने पीछे मुड़कर कभी नहीं देखा, तय करते गए नई मंजिलें - gidhaur.com : Gidhaur - गिद्धौर - Gidhaur News - Bihar - Jamui - जमुई - Jamui Samachar - जमुई समाचार

Breaking

Post Top Ad - Contact for Advt

Post Top Ad - SR DENTAL, GIDHAUR

रविवार, 10 सितंबर 2017

नीतीश ने पीछे मुड़कर कभी नहीं देखा, तय करते गए नई मंजिलें

Gidhaur.com (व्यक्तित्व) : नीतीश कुमार पिछले 12 साल से बिहार के मुख्यमंत्री बने हुए हैं। आज वे देश के चर्चित राजनेताओं में एक हैं। लेकिन एक वक्त ऐसा भी था जब उनके पास दोपहर के भोजन के लिए पैसा नहीं होता था। वे सुबह ही अपने घर बख्तियारपुर से ट्रेन में सवार हो कर पटना आते थे। दिनभर युवा लोकदल के अधिकारियों से मिलते, राजनीति विचार-विमर्श करते और देर शाम को घर लौट जाते। वे घर से खाना खा कर पटना आते थे और फिर घर पहुंच कर ही उनको भोजन नसीब होता था।

उस समय नीतीश राजनीति में स्थान पाने के लिए जद्दोजहद कर रहे थे। पैसे की बहुत तंगी थी। दिल्ली आने-जाने और छोटे-मोटे खर्चे के लिए नीतीश कुमार को तब उनके बहनोई देवेन्द्र सिंह और मित्र नरेन्द्र कुमार सिंह (इंजीनियर) मदद किया करते थे। नीतीश कुमार के बहनोई देवेन्द्र सिंह रेलवे में काम करते थे और पटना में रहते थे। 1977 और 1980 में बिहार विधानसभा का चुनाव हार जाने के बाद नीतीश के भविष्य पर बड़ा सवाल खड़ा हो गया था। नीतीश कुमार के दोस्त अरुण सिन्हा ने अपनी किताब में उनके संघर्ष का विस्तार से जिक्र किया है। 1978 में नीतीश कुमार के पिता राम लखन सिंह का निधन हो गया था। उनके पिता बख्तियारपुर के नामी वैद्य थे। आयुर्वेदिक डॉक्टर के रूप में उनकी प्रैक्टिस अच्छी थी। लेकिन उनके गुजरने के बाद घर में नियमित आमदनी का स्रोत बंद हो गया। खेती से थोड़ी-बहुत आमदनी होती थी लेकिन इससे परिवार चलाना मुश्किल था। 1980 में नीतीश कुमार के पुत्र का जन्म हो चुका था। उन पर घर चलाने की भी जिम्मेवारी भी आ चुकी थी।

उनकी पत्नी मंजू सिन्हा तब एक सरकारी स्कूल में शिक्षक की नौकरी पा चुकी थीं। नीतीश कुमार के ससुराल के लोग नीतीश को राजनीति से अलग होने और कोई नौकरी करने की सलाह देते थे। नीतीश इंजीनियर होते हुए भी सरकारी नौकरी नहीं करना चाहते थे। इस लिए उनको ये सलाह कभी- कभी अप्रिय भी लगती। नीतीश के ससुर ने पटना के कंकड़बाग इलाके में मकान बना रखा था। मंजू सिन्हा अपने माता-पिता और भाइयों के साथ पटना में रहती थीं। वे गुलजारबाग के एक स्कूल में शिक्षिका थीं। पैसों की तंगी और अपने चुनाव क्षेत्र से जुड़े रहने के कारण नीतीश बख्तियारपुर में रहते थे। वे रोज ट्रेन से पटना आते। रेल के साधारण डिब्बे में बहुत भीड़ होती थी। कभी-कभी नीतीश को एक घंटे का सफर खड़े-खड़े ही पूरा करना पड़ता था। पटना पहुंच कर वे युवा लोक दल के दफ्तर में जाते। कभी-कभी लोकदल के विधायकों से मिलते। उनके जेब में इतने पैसे नहीं होते कि वे पटना में दोपहर का भोजन कर लेते। जब वे सुबह निकलते तो अखबार खरीदने के बाद उनकी जेब में कहीं आने-जाने भर ही पैसे होते थे।
नीतीश कुमार जेपी आंदोलन के समय चर्चित छात्र नेता थे। इंजीनियर होने की वजह से बड़े- बड़े समाजवादी नेता उनकी क्षमता के कायल थे। लेकिन चुनावी हार ने नीतीश को दोराहे पर खड़ा कर दिया था। नीतीश पटना में कभी-कभी कर्पूरी ठाकुर से भी मिलते थे। कर्पूरी ठाकुर उस समय विपक्ष के नेता थे। एक दिन कर्पूरी ठाकुर ने नीतीश से कहा कि अगर वे चाहें तो उनको इंजीनियर की नौकरी दिलाने में मदद कर सकते हैं। लेकिन नीतीश ने इंकार कर दिया। संसदीय राजनीति ही उनका अंतिम लक्ष्य था। 1984 में जब लोकसभा का चुनाव आया तो नीतीश ने लोकदल की तरफ से चुनाव लड़ने का आमंत्रण अस्वीकर कर दिया। वे एक और चुनाव नहीं हारना चाहते थे। नीतीश ने मन ही मन 1985 के विधानसभा चुनाव की तैयारी शुरू कर दी थी। लेकिन लालू यादव चुनाव लड़ने के लोभ से नहीं बच सके। 1984 में लालू ने लोकदल के टिकट पर छपरा से चुनाव लड़ा लेकिन बुरी तरह हार गये। लालू यादव तीसरे स्थान पर लुढ़क गये जबकि 1977 में उनकी शानदार जीत हुई थी। यहां रामबहादुर राय को जीत मिली थी। कांग्रेस के भीष्म प्रसाद यादव दूसरे स्थान पर रहे थे।
1985 में करीब चार महीने पहले ही विधानसभा चुनाव का एलान कर दिया गया था। नीतीश को लोकदल ने हरनौत से टिकट दिया। पार्टी की तरफ से प्रचार के लिए एक जीप और एक लाख रुपये दिये गये थे। उस समय अन्य उम्मीदवार जहां 8-10 लाख रुपये खर्च कर रहे थे वहां एक लाख रुपये की कोई अहमियत नहीं थी। इस गाढ़े वक्त में मंजू सिन्हा ने अपनी नौकरी से बचाये पैसे नीतीश कुमार को दिये थे। नीतीश ने मंजू सिन्हा से वादा किया था कि ये उनका आखिरी चुनाव है। नीतीश की मेहनत ने रंग दिखाया। वे भारी बहुमत से यह चुनाव जीतने में कामयाब हुए। इसके बाद नीतीश कुमार ने फिर पीछे मुड़ कर नहीं देखा। वे लगातार नयी मंजिलें तय करते गये।

(सिंटू राज)
Gidhaur.com    |    10/09/2017, रविवार

Post Top Ad -