भारत के मानचित्र पर हिमालय के उतुंग शिखरों से कल-कल करके बहती "गंगा" की धाराएँ सदियों से हमारी सामाजिक, आर्थिक, भौगोलिक तथा सांस्कृतिक पहचान रही है। भूगोल के अनुसार, गंगा भारत के एक बड़े भू-भाग को हरियाली तथा खुशहाली से महकाती है इसलिये यह जीवनदायिनी कही जाती है। हमारे हिन्दुत्व ग्रन्थो ने भी "गंगा" को माँ का दर्जा दिया है। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में गंगा की सफाई एक बड़ी चुनौती बनकर सामने आई है। करोड़ों रुपये खर्च होने के बावजूद गंगा का एक गंदे नाले के रूप में बहते रहना निश्चित ही दुर्भाग्यपूर्ण है।
वर्तमान में गंगा की स्थिति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यहां पानी में घुलनशील ऑक्सीजन की मात्रा प्रति लीटर-मिलीग्राम की सामान्य स्थिति के मुकाबले शून्य है। अर्थात् गंगा का पानी जलीय जीवों के लिए पूरी तरह से प्रतिकूल है। यही वजह है कि इसके पानी में मछलियों व अन्य जलीय जीवों का अस्तित्व समाप्त हो रहा है। हमारे पर्यावरण में गंगा नदी अहम भूमिका अदा करती है। पर्यावरण के वातावरण को संतुलित करना, पर्यावरण मे पल रहे जीव जन्तुओं को पनाह देना, गंगा तट पर बसे जीवों को नमी पहुँचा कर किसानों को अनाज देना इत्यादि इनकी भूमिका है। गंगा की सफाई के लिए सरकारी प्रयासों के साथ ही आवश्यकता इस बात की भी है कि सरकार आम जनता को भी इस कार्य से जोड़े। जब तक जनता के मन में गंगा को बचाने के लिए उसके प्रति प्रेम नहीं उमड़ेगा, तब तक गंगा का साफ होना न सिर्फ मुश्किल अपितु असंभव ही है। भारत देश हमेशा से ही धर्म और आस्था का देश माना जाता रहा है। पुराणों में यहां की नदियों के महत्व का विशेष वर्णन किया गया है। हिन्दु धर्म आस्था की मुख्य धरोहर गंगा आज अपनी बदहाल स्थिति की बदनसीबी पर रो रही है। अब तो यही कहने को मन करता है- राम तेरी गंगा मैली हो गयी... पापियों के पाप धोते धोते..!
(अभिषेक कुमार झा)
~गिद्धौर | 05/06/2017, सोमवार
www.gidhaur.blogspot.com

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