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आलेख : दाने-दाने को मोहताज हुए परिवार

हरिश अब ये नाम आपको सुनने में थोड़ा अटपटा लगा होगा मगर यही नाम था उसका। अभी हाल ही में तो उसने यहां  आकर डेरा डाला था मतलब टीन और तंबू वाला अस्थाई मकान बेहतर ढंग से बनाया था। जिसमे बहुत थोड़े जगह थे। 
        जिंदगी ऐसे ही ब्यतित करते हैं ये लोग।  
                 वे अपने पत्नी-  पुनिया और दो छोटे-छोटे बच्चों के साथ लोहे के कढ़ाई, पतीले, छुरा, हथोड़ा बनाकर रोड किनारे उचित भाव में बेचने का काम किया करता था और इनका धंधा तो अच्छा चल रहा था पर, 
              भारत में कोरोना  महामारी ने दफ्तर दे दे दी थी जिसके चलते इनका काम धंधा चौपट हो गया। कोरोना महामारी के कारण सरकार द्वारा लॉक डाउन की अवधि बढ़ा दी गई थी। हरीश की उम्मीदें भी अब टूटने लगी। हरीश अपने पत्नी पुनिया और बच्चों को देख रहा था... हरीश ने कहा, "पुलिस लोगन लाठी- मार- मार कर सबको भगा रही है सड़कों से अब तो खानू को कुछ बच्चे नय, कुसी के घर भी बचल "रोटी- भात" ना मांग सकू अब तो"
       पुनिया ने अपने पति को खैनी का पुड़िया बढ़ाते हुए कहा, "लो बना लो इतनू ही बचू है"। और हमरो पेट चिपक गयन भूख से पूरा। बच्चों के खावे खातिर भी तो कुछ नहीं रही थ, "हरीश ने खैनी होठ से दबाते हुए कहा"। हरीश के सवाल सुनते ही पुनिया ने आंखों में आंसू भर लिया।
     हरीश की आंखों से भी अब दुख के आंसू निकल चुके थे हरीश ने खीजते हुए कहा,- कुम से कुम सामने वाली गली में भी घुसने दे तू तो।...तो कुछु ना कुछु मोहल्ले वालों सु मांग लातूर खानू को।
     ई चीन वालू कु कबू कोई माफ ना करौ, "पुनिया ने माथे का पसीना पोछते कहा, " ई अमीरन आदमी से आयल बीमारी है। वो लोगन तो आ गयु भागकर इधर, अपनु घर। पर पता नहीं सरकार कब हम लोगन को राजस्थान भेजे के व्यवस्था करी
           सरकार के द्वारा लगाए गए लॉक डाउन को 4 सप्ताह गुजर गए थे। हरीश और पुनिया के भविष्य के सुनहरे सपनों के नाम पर अब बस, सुबह- शाम भरपेट खाना मिल जाने के सपने संजो रहे थे। वैसे तो...,
       सरकार ने इन जैसे लोगों को 1000 रुपये देने की बात कही है लेकिन संसार में हरीश जैसे भी कई लोग है जिनका नाम सरकारी दस्तावेज में अंकित ही नहीं है और सरकारी पैसा क्या होता है शायद वे जानते तक नहीं। हम आपको बताना ही भूल गए कि इन्हें देख कर ऐसा ज्ञात हुआ जैसे इनके लिए विधाता ने जो भाग्य में लिखे थे ओ पन्ने ही कहीं गुम(खो) हो गए।  
       यकीन मानिए सुबह से उसने और उनके बच्चों ने कुछ नहीं खाया... हां, कुछ भी नहीं एक दाना भी नहीं। ऐसा इन लोगों के साथ इसलिए भी हुआ। क्योंकि ये लोग आने वाले समय के लिए ज्यादा कुछ बचाकर नहीं रखते। 
          हरीश कुछ मांग लेने की नियत से उठा और चल दिया। कुछ कदम चलते ही सुनने लगा। वहां भी कोरोना के विषय पर चर्चा चल रही थी। 
       अभी और सामने वाली गली में घुसा ही था कि पुलिस ने पीछे से कॉलर पकड़ते हुए पूछा, "रुक साले कहां जा रहा है...तू
      पुलिस जिसके  सामने हरीश की डरी सहमी सी हालत हो जाती थी आज पूरे जोश के साथ बोला, "कोरोना के एहां। 
      पुलिस वाले को लगा इसका दिमाग सही नहीं है तो दांत निकाल कर हंसते हुए बोला, "ससूरे के नाती के हौ कोरोना 
तोर।"
     हरीश फिर गंभीर होते हुए बोला, 'हुजूर सुना है सरकार कोरोना से बिमार लोगन के रोट्टी दे रही थ जी। बिमारी हमको पकड़ी कि तो खावे खातिर मिल जाई थ।पर साहेब छोटे बच्चे को अपनु आगु मरते ना देखे चाहि थ..।           
       तब तक एक अधिकारी और बीडीओ  साहब भी वहां आ गए थे। हरीश की बात सुनकर ना चाहते हुए भी उन सभी की आंखों में आंसूओ की बूंद अब सैलाब बन उमड़ पड़ी थी। बीडीओ साहब अब बड़ी नर्मी से कहा, " चिंता मत कर बहुत जल्द और सरकारी व्यवस्था भी होगी तुम्हारे लिए।
     हुजूर सरकारी पैसा खातिर जितने कागजात चाहि थ..उतनु  तो जुगाड़ न हो सके। फिर हरीश, सारे पुलिसकर्मी और बीडीओ के आगे घुटने टेकते हुए कहने लगा, " हट्टा - कट्टा देह है हुजूर मांग के खावे के शौक नय हो। मुझे कुछु ना मिलय खानू को पर वहाँ मेरे बच्चें मेरी घरवाली पुनिया जो कुछु भी बचल था बच्चों को खूला दिया।
       इतना कह कर हरीश, बीडीओ साहब के पैरों में गिरकर मुंह निचे करके सिसक सिसक कर रोने लगा। बीडीओ साहब ने जल्दी से हटकर दूरी बनाई।  
       जाऊ साहब कुछ मांग लाऊं खावे खातिर हरीश ने उत्सुकता बस पुछा? 
       सारे पुलिसकर्मी वा बीडियो ने हरीश को सांत्वना देते हुए कहा, "चलो आंसू  पोछ लो अपनी। बताओ तुम्हारे जैसे और कितने हैं। 
        हरीश ने आंसूओ को मुस्कुराहट मे बदलते हुए कहा.., "जी 5 झोपड़ी, सब मिलाकर 25 होंगे। 
         सरकार ये व्यवस्था हम लोगों को जिंदा रखने के लिए ही तो कर रही है।
      तु फिकर मत कर हम सिपाही से कहते हैं वे तुरंत खाना लेकर वहीं पहुंचते हैं। बीडीओ साहब ने हरीश के आगे हाथ जोड़ते हुए कहा,-"कोई भूखा नहीं मरेगा! 
       तभी एक साथ कुछ लोगों की आवाज आई सर जी...। सारे अधिकारी चौक कर इधर-उधर ताकने (देखने)लगे। 
     "तभी कुछ लोगों ने आवाज लगाई सर इधर देखिए ऊपर 
    उस गली में ऊचे- ऊचे भवन के बालकनी व खिड़की के पास खड़े प्रत्येक व्यक्ति की  आंखें  भरी हुई थी। तभी उनमें से एक व्यक्ति चलकर अधिकारी के पास आया और कहने लगा सर कहिए तो सही और सिर्फ आप लोग देखिए कि कहां-कहां खाना की जरूरत है? बाकी हम देख लेंगे। हां हां हम लोग खाना पहुंचा देंगे सभी लोगों के मुख से एक ही आवाज आई...।सर हम भूख से लड़ लेंगे यह लड़ाई हमारी भी है।
          वहां पर मौजूद सारे अधिकारी के कलेजे को पहुंची ठंडक और गरिमा के साथ उत्तर दिया, "जी जरूर! मगर अभी इनके खाने की व्यवस्था हम कर देते हैं। कल से यह जिम्मेवारी आप लोगों को सौपता हूं, मगर हमें सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना होगा...ध्यान रहे"
    बीडीओ साहब ने हरीश को राजशाही अंदाज में कहा, "जा..अपने जैसे साथ के लोगों को कह दो कि सब को खाना मिलेगा। लेकिन जब खाना मिलेगा तो सभी को दूर दूर खड़े होना है, समझ गया। 
      हरीश ने अपनी आंसुओं से गिले गाल को गमछे से पोछा फिर खुशी-खुशी अपने घरवाली और बच्चों के तरफ चल दिया...।
हरिश अब ये नाम आपको सुनने में थोड़ा अटपटा लगा होगा मगर यही नाम था उसका। अभी हाल ही में तो उसने यहां आकर डेरा डाला था मतलब टीन और तंबू वाला अस्थाई मकान बेहतर ढंग से बनाया था। जिसमे बहुत थोड़े जगह थे। 
        जिंदगी ऐसे ही ब्यतित करते हैं ये लोग।  
                 वे अपने पत्नी-  पुनिया और दो छोटे-छोटे बच्चों के साथ लोहे के कढ़ाई, पतीले, छुरा, हथोड़ा बनाकर रोड किनारे उचित भाव में बेचने का काम किया करता था और इनका धंधा तो अच्छा चल रहा था पर, 
              भारत में कोरोना  महामारी ने दफ्तर दे दे दी थी जिसके चलते इनका काम धंधा चौपट हो गया। कोरोना महामारी के कारण सरकार द्वारा लॉक डाउन की अवधि बढ़ा दी गई थी। हरीश की उम्मीदें भी अब टूटने लगी। हरीश अपने पत्नी पुनिया और बच्चों को देख रहा था... हरीश ने कहा, "पुलिस लोगन लाठी- मार- मार कर सबको भगा रही है सड़कों से अब तो खानू को कुछ बच्चे नय, कुसी के घर भी बचल "रोटी- भात" ना मांग सकू अब तो"
       पुनिया ने अपने पति को खैनी का पुड़िया बढ़ाते हुए कहा, "लो बना लो इतनू ही बचू है"। और हमरो पेट चिपक गयन भूख से पूरा। बच्चों के खावे खातिर भी तो कुछ नहीं रही थ, "हरीश ने खैनी होठ से दबाते हुए कहा"। हरीश के सवाल सुनते ही पुनिया ने आंखों में आंसू भर लिया।
     हरीश की आंखों से भी अब दुख के आंसू निकल चुके थे हरीश ने खीजते हुए कहा,- कुम से कुम सामने वाली गली में भी घुसने दे तू तो।...तो कुछु ना कुछु मोहल्ले वालों सु मांग लातूर खानू को।
     ई चीन वालू कु कबू कोई माफ ना करौ, "पुनिया ने माथे का पसीना पोछते कहा, " ई अमीरन आदमी से आयल बीमारी है। वो लोगन तो आ गयु भागकर इधर, अपनु घर। पर पता नहीं सरकार कब हम लोगन को राजस्थान भेजे के व्यवस्था करी
           सरकार के द्वारा लगाए गए लॉक डाउन को 4 सप्ताह गुजर गए थे। हरीश और पुनिया के भविष्य के सुनहरे सपनों के नाम पर अब बस, सुबह- शाम भरपेट खाना मिल जाने के सपने संजो रहे थे। वैसे तो...,
       सरकार ने इन जैसे लोगों को 1000 रुपये देने की बात कही है लेकिन संसार में हरीश जैसे भी कई लोग है जिनका नाम सरकारी दस्तावेज में अंकित ही नहीं है और सरकारी पैसा क्या होता है शायद वे जानते तक नहीं। हम आपको बताना ही भूल गए कि इन्हें देख कर ऐसा ज्ञात हुआ जैसे इनके लिए विधाता ने जो भाग्य में लिखे थे ओ पन्ने ही कहीं गुम(खो) हो गए।  
       यकीन मानिए सुबह से उसने और उनके बच्चों ने कुछ नहीं खाया... हां, कुछ भी नहीं एक दाना भी नहीं। ऐसा इन लोगों के साथ इसलिए भी हुआ। क्योंकि ये लोग आने वाले समय के लिए ज्यादा कुछ बचाकर नहीं रखते। 
          हरीश कुछ मांग लेने की नियत से उठा और चल दिया। कुछ कदम चलते ही सुनने लगा। वहां भी कोरोना के विषय पर चर्चा चल रही थी। 
       अभी और सामने वाली गली में घुसा ही था कि पुलिस ने पीछे से कॉलर पकड़ते हुए पूछा, "रुक साले कहां जा रहा है...तू
      पुलिस जिसके  सामने हरीश की डरी सहमी सी हालत हो जाती थी आज पूरे जोश के साथ बोला, "कोरोना के एहां। 
      पुलिस वाले को लगा इसका दिमाग सही नहीं है तो दांत निकाल कर हंसते हुए बोला, "ससूरे के नाती के हौ कोरोना 
तोर।"
     हरीश फिर गंभीर होते हुए बोला, 'हुजूर सुना है सरकार कोरोना से बिमार लोगन के रोट्टी दे रही थ जी। बिमारी हमको पकड़ी कि तो खावे खातिर मिल जाई थ।पर साहेब छोटे बच्चे को अपनु आगु मरते ना देखे चाहि थ..।           
       तब तक एक अधिकारी और बीडीओ  साहब भी वहां आ गए थे। हरीश की बात सुनकर ना चाहते हुए भी उन सभी की आंखों में आंसूओ की बूंद अब सैलाब बन उमड़ पड़ी थी। बीडीओ साहब अब बड़ी नर्मी से कहा, " चिंता मत कर बहुत जल्द और सरकारी व्यवस्था भी होगी तुम्हारे लिए।
     हुजूर सरकारी पैसा खातिर जितने कागजात चाहि थ..उतनु  तो जुगाड़ न हो सके। फिर हरीश, सारे पुलिसकर्मी और बीडीओ के आगे घुटने टेकते हुए कहने लगा, " हट्टा - कट्टा देह है हुजूर मांग के खावे के शौक नय हो। मुझे कुछु ना मिलय खानू को पर वहाँ मेरे बच्चें मेरी घरवाली पुनिया जो कुछु भी बचल था बच्चों को खूला दिया।
       इतना कह कर हरीश, बीडीओ साहब के पैरों में गिरकर मुंह निचे करके सिसक सिसक कर रोने लगा। बीडीओ साहब ने जल्दी से हटकर दूरी बनाई।  
       जाऊ साहब कुछ मांग लाऊं खावे खातिर हरीश ने उत्सुकता बस पुछा? 
       सारे पुलिसकर्मी वा बीडियो ने हरीश को सांत्वना देते हुए कहा, "चलो आंसू  पोछ लो अपनी। बताओ तुम्हारे जैसे और कितने हैं। 
        हरीश ने आंसूओ को मुस्कुराहट मे बदलते हुए कहा.., "जी 5 झोपड़ी, सब मिलाकर 25 होंगे। 
         सरकार ये व्यवस्था हम लोगों को जिंदा रखने के लिए ही तो कर रही है।
      तु फिकर मत कर हम सिपाही से कहते हैं वे तुरंत खाना लेकर वहीं पहुंचते हैं। बीडीओ साहब ने हरीश के आगे हाथ जोड़ते हुए कहा,-"कोई भूखा नहीं मरेगा! 
       तभी एक साथ कुछ लोगों की आवाज आई सर जी...। सारे अधिकारी चौक कर इधर-उधर ताकने (देखने)लगे। 
     "तभी कुछ लोगों ने आवाज लगाई सर इधर देखिए ऊपर 
    उस गली में ऊचे- ऊचे भवन के बालकनी व खिड़की के पास खड़े प्रत्येक व्यक्ति की  आंखें  भरी हुई थी। तभी उनमें से एक व्यक्ति चलकर अधिकारी के पास आया और कहने लगा सर कहिए तो सही और सिर्फ आप लोग देखिए कि कहां-कहां खाना की जरूरत है? बाकी हम देख लेंगे। हां हां हम लोग खाना पहुंचा देंगे सभी लोगों के मुख से एक ही आवाज आई...।सर हम भूख से लड़ लेंगे यह लड़ाई हमारी भी है।
          वहां पर मौजूद सारे अधिकारी के कलेजे को पहुंची ठंडक और गरिमा के साथ उत्तर दिया, "जी जरूर! मगर अभी इनके खाने की व्यवस्था हम कर देते हैं। कल से यह जिम्मेवारी आप लोगों को सौपता हूं, मगर हमें सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना होगा...ध्यान रहे"
    बीडीओ साहब ने हरीश को राजशाही अंदाज में कहा, "जा..अपने जैसे साथ के लोगों को कह दो कि सब को खाना मिलेगा। लेकिन जब खाना मिलेगा तो सभी को दूर दूर खड़े होना है, समझ गया। 
      हरीश ने अपनी आंसुओं से गिले गाल को गमछे से पोछा फिर खुशी-खुशी अपने घरवाली और बच्चों के तरफ चल दिया...।
... । 
लेखक :- राहुल कुमार 
अलीगंज (जमुई) 
संपर्क:- 9661003520

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