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शुक्रवार, 11 सितंबर 2020

कवि कथा - १२ : 'जमुई की जनता को भान होने लगा कि त्रिपुरारी बाबू का आप्त सचिव मैं ही हूँ'

विशेष : जमुई जिलान्तर्गत मांगोबंदर के निवासी 72 वर्षीय अवनींद्र नाथ मिश्र का 26 अगस्त 2020 को तड़के पटना के एक निजी अस्पताल में निधन हो गया. स्व. मिश्र बिहार विधान सभा के पूर्व प्रशासी पदाधिकारी रह चुके थे एवं वर्तमान पर्यटन मंत्री के आप्त सचिव थे. स्व. मिश्र विधान सभा के विधायी कार्यो के विशेषज्ञ माने जाते थे. इस कारण किसी भी दल के मंत्री उन्हें अपने आप्त सचिव के रूप में रखना चाहते थे.

अवनींद्र नाथ मिश्र जी के निधन के बाद उनके भाई एवं गिधौरिया बोली के कवि व हिंदी साहित्य के उच्चस्तरीय लेखक श्री ज्योतिन्द्र मिश्र अपने संस्मरणों को साझा कर रहे हैं. स्व. अवनींद्र नाथ मिश्र का पुकारू नाम 'कवि' था. ज्योतिन्द्र मिश्र जी ने इन संस्मरणों को 'कवि कथा' का नाम दिया है. इन्हें हम धारावाहिक तौर पर gidhaur.com के अपने पाठकों के पढने के लिए प्रस्तुत कर रहे हैं. यह अक्षरशः श्री ज्योतिन्द्र मिश्र जी के लिखे शब्दों में ही है. हमने अपनी ओर से इसमें कोई भी संपादन नहीं किया है. पढ़िए यहाँ...

कवि -कथा (१२)

मुजफ्फरपुर से प्रकाशित साप्ताहिक पत्रिका में सह संपादक के बतौर मैने अपनी साहित्यिक रुचि को ही आजीविका का आधार बनाने के लिए प्रवृत्त हो गया था । जमुई के स्थानीय विधायक स्व त्रिपुरारी प्रसाद सिंह जी से मेरे बाबूजी की मित्रता जगजाहिर थी ।एक सोशलिस्ट लॉबी हमारे परिवेश को प्रभावित कर रहा था। जिस साप्ताहिक पत्रिका के साथ संलग्न था उसकी भी राजनैतिक रुझान कांग्रेस के विरुद्ध ही थी। तब मैं भी प्रगति शील लेखक  संघ का सदस्य था । मेरी राजनैतिक सम्बद्धता आदरणीय त्रिपुरारी बाबू के साथ ही थी ।इन तीन वर्षों में कई कद्दावर समाजवादियों यथा कर्पूरी जी, मंजय लाल जी, शारदा मल जी, कपिल देव सिंह जी, और अखबार के मालिक सुरेश अचल जी के साथ पूरी निष्ठा के साथ काम किया । इस कार्य के उत्प्रेरक त्रिपुरारी बाबू ही थे ।वे कहते थे झाड़ू भी लगाओ तो लोग कहे कि अमुक ने सफाई की है।अपनी छाप छोड़ो।
जे पी आंदोलन में उस पत्रिका को मैंने आंदोलन का हथियार बना डाला था। स्थानीय प्रशासन को इसकी भनक लग गयी थी । एक दिन, दिन भर थाने में डिटेन भी हुआ था । एक राजनैतिक कार्यकर्त्ता के रूप में मुझे पहचाना जाने लगा। लेकिन इसी बीच 1975 के मार्च में सरकारी सेवा में आकर योगदान करना फिर 75 में ही आपातकाल के लागू हो जाने से सब कुछ जैसे उलट पुलट  गया। अब मैं एक सरकारी सेवक हो चुका था । नफा नुकसान की गणना करने लगा । कवि भी एल एल बी करने के बाद 1976 में पटना आ गये ।एक ही कमरे में कुछ दिनों तक स्व पाकी रहे । फिर पत्नी और बेटी को ले आये। कवि के लिये बरामदे पर रहने का इंतज़ाम हो गया ।एक बार फिर होस्टल में साथ रहने जैसा आनन्द पत्नी बच्चे ,बीबी, और भाई के साथ रहने से मिलने लगा ।भाई केलिये  जॉब  के जुगाड़ में रहने लगे ।  तब एक संस्था ने कौशल विकास के लिए ट्रेनिंग देती थी ।उसमें भी इन्हें नामांकित कराया ताकि स्व रोजगार के लिए लोन मिल सके। चूंकि कवि statistics से एम एस सी थे ।बिहार सरकार के स्वास्थ्य विभाग में एक 5 पदों की वैकेंसी निकली थी । कवि का मेधा सूची में नाम आ गया था। करते धरते 1977 का चुनाव आया ।जनता दल की सरकार बनी । कर्पूरी जी मुख्य मंत्री हुए ।
त्रिपुरारी बाबू विधान सभा के अध्यक्ष (संलग्न चित्र)। हमारी आशाएं बलवती हो गयी ।तब तक सरकारी कार्य निष्पादन का अनुभव भी मुझे हो गया था । मैंने ठान लिया कि मैं ही त्रिपुरारी  चचा के साथ आप्त सचिव के रूप में रहूँगा। आदरणीय चाची श्री मती इंदु सिंह जी ( संलग्न चित्र ) का मैं विश्वास पात्र भी था ।
पुत्रवत तो आज भी हूँ। तब वे कवि को पहचानती भी नहीं थी। कवि भी मुखर व्यक्ति नहीं थे। मौखिक मन्त्रणा के आधार पर मैं  आवासीय कार्यालय का कार्य भार उठाने लगा। जमुई की जनता को भान होने लगा कि अध्यक्ष का आप्त सचिव मैं ही हूँ। इसी बीच मेरे बड़े बाबूजी जिला परिषद से सेवा निवृत्त हो गए। एक्सटेंशन के लिए पटना आये थे। जगबंधु अधिकारी के अधीन यह विभाग था। मेरे संकल्प के बारे में कवि ने उन्हें बताया । तब उन्होंने सुझाया कि तुम्हें तो जॉब मिल ही गया है । जिस जगह पर जाने के लिए तुम चाह रहे हो वहाँ अगर अतिरिक्त वेतन भत्ता नही मिलता है तो कवि को उस जगह पर रखवा दो । इसे भी जॉब मिल जाएगा ।मेरे मौन रहने पर स्नेह पूर्वक गुरु की दक्षिना की भी याद कराई । एक बार फिर सब कुछ उल्टा पुल्टा हो गया। आदरणीय चाची जी (श्रीमती इंदु सिंह) की अनिच्छा , मेरे बाबूजी की प्रबल इच्छा को मेरी स्वैच्छा का अमलीजामा पहनाते हुए  चि कवि के नाम से नियुक्ति पत्र निर्गत हो गया ।। बाद में कुमार सुरेंद्र सिंह वरीय आप्त सचिव से जाकर कहना पड़ा कि सर मेरे बदले में मेरा भाई ही आवासीय कार्यालय में काम करेगा । कालांतर में अपनी कर्त्तव्य निष्ठा, मिहनत के आधार पर ममता मयी चाची जी का अन्तेवासी भी बन गया।
क्रमशः



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