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रविवार, 28 जून 2020

अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही राजा सगर के पुत्रों के उद्धार के लिए धरती पर आई गंगा



पटना | अनूप नारायण :
कहते हैं जब इंसान की प्राण हलक में अटके हो तो दो बूद गंगा जल डाल देने से आत्मा तृप्त हो जाती है और परमात्मा में समाहित हो जाती है. गंगाजल में कीड़े नहीं लगते महीने बरसों तक इसका पानी साफ रहता है.  गंगा एक नदी नहीं एक आस्था है, श्रद्धा है, विश्वास है. इसी कारण गंगा को कानूनन जीवित नदी माना गया है .
बिहार की राजधानी पटना की पहचान से जुड़ी है गंगा नदी का इतिहास पटना के घाटों पर जमींदोज है कई कहानियां.  राजा सगर के पुत्रों के उद्धार के लिए धरा पर आई भागीरथी आज अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है.

बिहार के पटना में गंगा नदी की स्थिति सबसे ज्यादा बदतर है. गंगा नदी के समानांतर नाले वाली नदी बह रही है. मोदी सरकार के बहु प्रचारित नमामि गंगे प्रोजेक्ट आने  के बाद गंगा की बदहाली दूर होने की आशा जगी है. लेकिन वास्तविकता के धरातल पर यह योजना पटना में तो फिलहाल कहीं नजर नहीं आती. नदी मर रही है, नदी सूख रही है. नदी अपने अस्तित्व के लिए लड़ रही है. शहर से कोसों दूर जा चुकी है गंगा की धारा और शहर पर मंडराने लगे हैं पर्यावरण असंतुलन के खतरे. तेजी से कंक्रीट के जंगलों के रूप में तब्दील होती राजधानी पटना के सभी नाले और नालियां गंगा मे ही गिराये जाते है. पर्यावरण असंतुलन के कारण नदी तेजी से शहर से दूर हुई और इसका फायदा भू माफियाओं ने उठाए गंगा की पेटी में सैकड़ों की तादाद में नियम कानून को ताक पर रखकर बहुमंजिला इमारतें खड़ी कर ली गई. कानून बनाकर रोक के बावजूद ईट भट्ठे संचालित हो रहा है. अवैध रूप से मिट्टी की कटाई हो रही है. कभी दुनिया भर में पटना के गंगा घाटों पर होने वाला छठ प्रसिद्ध था लेकिन आज पटना के 50 फ़ीसदी लोग अपने छतों पर  छठ का अर्घ देते हैं. कारण है शहर से गंगा की दूरी गंगा को शहर तक वापस लाने के लिए जो भी योजनाएं बनी है वह वास्तविकता के धरातल पर नहीं उतर पाई है.

गंगा को लेकर लंबी लड़ाई लड़ने वाले समाजसेवी विकास चंद्र गुड्डू बाबा कहते हैं कि जो नदी मानव जाति का उद्धार करती है उसका उद्धार करने के नाम पर कितने लोगों का उद्धार हो गया उनकी जनहित याचिकाओं के कारण गंगा में लावारिस लाशों को फेकने पर रोक लगी. तीन दशक पहले गंगा एक्शन प्लान वन और गंगा एक्शन प्लान टू बनाकर गंगा को प्रदूषण मुक्त कर शहर के करीब लाने के नाम पर करोड़ों का बंदरबाँट हुआ पर संचिकाए कार्यालयों से बाहर नहीं निकल सकी.

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