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रविवार, 22 मार्च 2020

कोरोना पर चुप क्यों हैं कन्हैया कुमार ? क्या सिर्फ अपने राजनीतिक मतलब से बोलते हैं कन्हैया कुमार ?



पटना (22 मार्च) : आज पूरा देश एवं विश्व कोरोना वायरस के प्रकोप को झेल रहा है। इससे निबटने में चीन-अमेरिका जैसे देशों के छक्के छूट रहे हैं। भारत में भी इसके प्रकोप की शुरूआत हो चुकी है। विशेषज्ञ आने वाले दो-तीन हफ्तों को भारत में बड़े संकट के रूप में देख रहे हैं। केन्द्र एवं राज्य सरकारें लोगों को सजग-सतर्क करने के अभियानों में जुटी हैं। देश में लॉक डाउन तक की संभावनाएं व्यक्त की जा रही हैं। इन सारी स्थितियों के बीच कोरोना पर सीपीआई के युवा नेता कन्हैया कुमार की चुप्पी न सिर्फ उनके चाहने वालों को निराश कर रही है, बल्कि उनकी अपरिपक्वता एवं सीमित समझ को भी दर्शा रही है।

बात-बात में राजनीति से जुड़े अलग-अलग मुद्दों पर लगातार सोशल मीडिया के माध्यम से तर्कपूर्ण ढंग से अपनी बातें रखने वाले कन्हैया कुमार ने कोरोना इश्यू पर अब तक मुंह नहीं खोला है। शायद उनके चाहने वालों एवं समर्थकों को उनके संदेश का इंतजार भी होगा। पर अब तक वह इंतजार बरकरार है।

पिछले माह कन्हैया कुमार ने एनआरसी, एनपीआर एवं सीएए को लेकर पूरे बिहार की यात्रा की। सभी जिलों में उनकी सभाओं में काफी संख्या में लोग आए। 27 फरवरी को पटना के गांधी मैदान में आयोजित उनकी रैली में हालांकि उम्मीद से कम लोग आए, फिर भी वह संख्या इस लिहाज से संतोषजनक कही जा सकती है कि उस रैली में उतने लोग जरूर आए जितने कि उसके सप्ताह भर बाद जदयू द्वारा गांधी मैदान में बुलाए गए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सम्मेलन में नहीं आए।

निश्चित ही कन्हैया कुमार किसी संवैधानिक पद पर नहीं हैं। ऐसे में वे जनता के प्रति जिम्मेदारियों से, जब भी चाहें, पल्ला झाड़ सकते हैं। किंतु आम जनता का एक समूह ऐसा भी है जो उन्हें सिर्फ बिहार का ही नहीं, बल्कि देश का नेता मानता है। पर शायद यह तीसरा बड़ा मौका है जब कन्हैया के हाथ से पुनः बाजी सरकती जा रही है।

पिछले साल जब मुजफ्फरपुर चमकी बुखार का दंश झेल रहा था, तब भी कन्हैया कोप-भवन में ही बैठे रहे। जब अन्य राज्यों से आ-आकर लोग मुजफ्फरपुर में सहायता कैम्प लगाने लगे तब अंत में किसी तरह कन्हैया उपस्थित मात्र हो गए।

पिछले ही साल जब पटना की स्थिति जल-मग्न सी हो गई, तब भी कन्हैया अनुपस्थित ही रहे।

एक अच्छी-खासी संख्या वाले जनसमूह द्वारा कन्हैया को बिहार के भावी मुख्यमंत्री के रूप में भी देखा जाता है। सोशल मीडिया पर तो अनेकों लोग इस बात को खुलेआम लिखते भी हैं। किन्तु मुजफ्फरपुर एवं पटना के उपर्युक्त दोनों मुश्किल समयों में कन्हैया की अनुपस्थिति ने निश्चित ही उनके समर्थकों के मनोबल को कम किया होगा।

अब यह तीसरा मुश्किल समय कोरोना वायरस का है जिससे बिहार एवं देश सहित पूरा विश्व जूझ रहा है। प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, डॉक्टर्स, अन्य विशेषज्ञ सहित अनेकों लोग इस मुश्किल भरे समय में देश की आम जनता को आवश्यक दिशा-निर्देश देने के साथ-साथ उनका मनोबल बढ़ाने के भी प्रयासों में लगे हुए हैं। देश के नम्बर वन यूनिवर्सिटी से डॉक्ट्रेट करने वाले कन्हैया कुमार द्वारा इस मुद्दे पर देश की आम जनता न सही, पर उनके चाहने वाले समर्थकों का समूह जरूर उनके सकारात्मक संदेशों की अपेक्षाएं रखता होगा। पर शायद कन्हैया कुमार अपने समर्थकों की उन अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतर पा रहे।

सवाल यह भी है कि संवेदनशील मुद्दों को लेकर कन्हैया कुमार की यह समझ क्या सब किए-कराए पर पानी नहीं फेर देती है ?

पिछले लोकसभा चुनाव में बेगूसराय का जो परिणाम आया, वह नॉमिनेशन के समय की स्थिति के ठीक विपरीत था। कन्हैया कुमार के नॉमिनेशन में जितने लोग आए, उसकी तुलना में भाजपा प्रत्याशी गिरिराज सिंह के नॉमिनेशन में काफी कम लोग आए। कन्हैया कुमार की सभाओं में भी गिरिराज सिंह की सभाओं से ज्यादा लोग हुआ करते थे। पर वोट का दिन आते-आते मामला ठीक उल्टा हो गया। ऐसे में सवाल यह भी है कि क्या कन्हैया कुमार उमड़ते हुए जन-समर्थन का सही समय पर नब्ज नहीं पकड़ पाते ?

जो कुछ भी हो, पर कोरोना जैसी घोषित महामारी के इस मुश्किल समय में कन्हैया कुमार भले ही न उपस्थित हुए होते, पर सोशल मीडिया पर उनका वीडियो संदेश या लिखा हुआ संदेश भी उनके समर्थकों को जरूर सुकून देता।

कोरोना महामारी के इस दौर में एनआरसी, एनपीआर एवं सीएए के खिलाफ आंदोलन के प्रमुख चेहरों में से एक कन्हैया कुमार की असंवेदशीलता इस बात से भी झलकती है कि उन्होंने अब तक इस आंदोलन में शामिल सैकड़ों शाहीनबाग के आंदोलनकारियों से आंदोलन को विराम देने तक के लिए नहीं कहा है ताकि कोरोना के संभावित असर को कम किया जा सके।

ऐसे में सवाल यह भी उठता है कि क्या कन्हैया कुमार दिल्ली सरकार द्वारा राजद्रोह का मुकदमा चलाने की अनुमति देने के बाद काफी दवाब में चल रहे हैं ? क्या कन्हैया कुमार भी आने वाले दिनों में अमित शाह को फूलों का गुलदस्ता देते हुए तस्वीरें खिंचाते नजर आयेंगे ?

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