ऐसे समाज में जीवित रहकर भी वशिष्ठ बाबू क्या करते? - gidhaur.com : Gidhaur - गिद्धौर - Gidhaur News - Bihar - Jamui - जमुई - Jamui Samachar - जमुई समाचार

Breaking

Post Top Ad - Contact for Advt

Post Top Ad - SR DENTAL, GIDHAUR

बुधवार, 20 नवंबर 2019

ऐसे समाज में जीवित रहकर भी वशिष्ठ बाबू क्या करते?



पटना | अनूप नारायण : 
अच्छा हुआ वशिष्ठ बाबू चले गए। वे रह कर भी क्या करते? जिस देश और प्रदेश के लिए वे अमेरिका की शान ओ शौकत और नासा जैसी प्रतिष्ठित संस्थान की नौकरी छोड़कर आये थे, उस देश और प्रदेश ने उन्हें बहुत पहले छोड़ दिया था। जिस वशिष्ठ नारायण सिंह को अमेरिका के विद्वत समाज ने तलहथी पर बैठा कर रखा था, उसकी हमने कदर नहीं की। भले ही उन्होंने आइंस्टीन के सिद्धांत को चुनौती दी हो, उनका दिमाग कम्प्यूटर को भी मात देनेवाला क्यों न रहा हो, विश्व के सबसे बड़े गणितज्ञ क्यों न रहे हों,  हमे उससे क्या? 
नेताओं के जयकारे लगाना और बेईमान-शैतान के पीछे भागना जिस समाज की नियति हो, जहां हत्यारे और घोटालेबाजों के स्मारक बने हों, सरकारी संरक्षण में चलनेवाले बालिका गृहों में यौनाचार होता हो, सामूहिक नकल और सेटिंग से बच्चे टॉप करते हों, वहां डॉ. वशिष्ठ नारायण सिंह जैसे जीनियस की जरूरत ही क्या है?
उन्हें तो हमने जीते जी ही मार डाला था! न सरकार ने सुध लेने की जरूरत समझी न समाज को उनकी याद आई। हां, उनके मरने के बाद श्रद्धांजलि देनेवालों की बाढ़ आ गई है। दिल्ली से पटना तक शोक की बयार चलती दिख रही है।
वह तो भला हो टीम शुक्रिया वशिष्ठ की जिन्होंने अपने दम पर वशिष्ट बाबु के सम्मान में वो कर गुजरने की ठानी जो शायद सरकार को करनी थी इसके लिए भूषण सिंह बबलू डॉ विजय राज सिंह  शैलेश कुमार सिंह अनूप नारायण सिंह जैसे नौजवानों के शोर मचाने पर सरकार को दायित्व बोध हुआ। देर से ही सही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राजकीय सम्मान से वशिष्ठ बाबू के अंतिम संस्कार की घोषणा की और उनके पार्थिव शरीर पर पुष्प अर्पित किया।
 लेकिन नामी-गिरामी डॉक्टरों वाले पटना मेडिकल कालेज अस्पताल  (PMCH) ने उन्हें अपमानित करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। अपने चिर-परिचित अंदाज में इस महान गणितज्ञ के शव को बाहर सड़क पर ला छोड़ा। यह अस्पताल अपने इसी तरह के अमानवीय और क्रूर व्यवहार के लिए जाना जाता है। खबर दिखाए जाने के बाद एम्बुलेंस से लेकर सम्मान देने तक कि व्यवस्था हुई। लेकिन तबतक पूरे देश में हमारी थू-थू हो चुकी थी। सच पूछिए तो हम इसी थू-थू के पात्र हैं।
नायकों की हम उपेक्षा करते हैं और खलनायकों के पीछे भागते हैं। यही हमारा चरित्र बन गया है।
ऐसे समाज में जीवित रहकर भी वशिष्ठ बाबू क्या करते?

Post Top Ad -