पटना [अनूप नारायण] :
पटना दुनियाँ का ऐसा पहला शहर है, जहाँ नाले के पानी से बाढ़ आया हुआ है।
5 दिनों से लोग उसमें हैं और सरकार "हथिया" नक्षत्र को इस बाढ़ का कारण मानती है। 165 सेमी की बारिश से पटना तबाह हो चुका है। सैकड़ों लोग और जानवर मर चुके हैं और इसी पानी में सड़ रहे हैं।
वर्षा के सम्भावित महीनों श्रावण और भाद्र में ऐसी बारिश नहीं हुई कि जिससे खेती हो सके। जिसका परिणाम यह था कि सूखे की स्थिति बनी हुई थी। पर आश्विन के प्रारम्भ में हुई बारिश किसानों के लिये वरदान साबित हुई, वहीं बिहार की राजधानी पटना में राजकीय भ्रष्टाचार और प्रशासनिक अराजकता को उजागर कर दिया।
पहले भी थोड़ी सी बारिश में ही पटना में नाले के पानी की उगाही नहीं हो पाती थी और पटना नरक हो जाता था। इस बार भी उसी तरह ही हुआ। सरकार और प्रशासन जब तक समझ पाते, तबतक लोग नाले के पानी में डूब चुके थे, जहाँ अब ना बिजली है और ना ही पीने का पानी।
मौसम-विभाग द्वारा पहले से चेतावनी दी गई थी कि बारिश तेज होगी, इसपर ना सरकार चेत पाई और ना ही जनता को आगाह किया गया। सरकारी-मशीनरी व्यवस्था पूरी तरफ से भ्रष्ट है, यह प्रमाणित कर दिया नाले के पानी के बाढ़ ने, जिसे सरकार और नेता लोग प्रकृति की आपदा और गंगा में जलस्तर बढ़ने की बात कर रहे हैं। वैसे यह जान लेना चाहिये कि गंगा का जलस्तर सामान्य है और यह बयान बेतुका है।
राजधानी पटना के कुछ क्षेत्र अभी भी नरक बने हुये हैं, राजेन्द्र नगर, कंकडबाग, नालारोड, भूतनाथ रोड आदि । स्थानीय लोग, सामाजिक संस्थायें और गैर-सरकारी संगठनों के अथक परिश्रम से बहुत-कुछ ठीक हो पा रहा है। वहीं राजनीतिक-दल अपने पुराने रवैये से बाज आने का नाम नहीं ले रहे हैं।
पप्पू यादव को छोड़कर कोई भी पार्टी या नेता खुद को नहीं जोड़ पाये। बाद में राजनीतिक लाभ की संभावना के कारण सभी दल इस विभीषिका को बहुत बड़े राजनीतिक-फायदे के रुप में भुनाने में लग गई है।
अमीर लोगों को राहत मिल जा रही है, पर सबसे ज्यादा दयनीय हालत झुग्गी-झोपड़पट्टी में रहने वाले गरीब लोगों की हुई है, जिनका घर नाले के पानी के बाढ़ के कारण टूट गया है या अतिक्रमण के कारण तीन दिनों पहले तोड़ा गया है। इसी नाले के पानी में मल-मूत्र बह रहा है, जानवर की लाश सड़ रही है और लोग इसी में अपने घर में रहने को विवश हैं। हिंदु-मुसलमान और अगड़ी-पिछड़ी जाति के सब नेता आने वाले महामारी को लेकर चुप हैं और इनके अनुचर अपने हाकिमों की बुराई को लेकर बहुत सम्वेदनशील हैं।
इसी बीच चोर-उचक्कों की चाँदी लगी हुई है, जहाँ कहीं मौका मिले अपना हाथ साफ कर रहे हैं। स्त्रियाँ और लड़कियों के साथ छेड़खानी के नये मुद्दे आने लगे हैं, बच्चों को दूध देने के लिये जाने वाले लोगों को रोका जा रहा है और कहा जा रहा है कि सरकारी-स्तर पर किये जा रहे आवंटन में ही डाल दीजिये। पीने के पानी के बहुत-सारे कार्टून लेकर जाने में भी समस्या है। बहुत-सारे घरों के लोग पटना से बाहर रहते हैं और उनके बूढ़े-बुजुर्ग माता-पिता को दवाई की जरुरत है। सामाजिक-सरोकारिता से लगे लोग अपनी पूरी ताकत झोंके हुये हैं और प्रशासन की कमियों को नजदीक से देख रहे हैं।
जिन्दगी हलकान है, लोगों का जीवन नरक बना है और पूरा देश इस नाले के पानी के बाढ़ को लेकर बहुत-सारे प्रश्न पूछ रहा है, नाले की उगाही को लेकर मिले करोड़ो रुपये का क्या उपयोग हुआ? बिहार-पटना में नाले निर्माण मे हुये घोटाले की निष्पक्ष-जाँच हो और "नमामि-गंगे" योजना में मिले हजारों-करोड़ के खर्च का लेखा-जोखा सरकार प्रस्तुत करवाये।
इस आपदा पर अगर कुछ जबर्दस्त-रुप से हावी है तो वह है राजनीति! नाले के पानी को निकालने के लिये आवश्यक साधनों का सर्वथा-अभाव है और NDRF और SDRF की टीम को पटना का कोई भी मानचित्र(मैप) नहीं दिया गया है और ना ही स्थानीय लोगों को जोड़ा गया है।
दुर्गापूजा के उमंग-उत्साह पर ग्रहण लगाने वाले इस नाले के पानी को हटाने की इतनी मशक्कत करने के बावजूद भी सरकार का फेल होना, बहुत-बड़ी बात है।