पटना में अब नहीं सजेंगी परम्परागत दीयों की दुकानें, संस्कृतियों को ढोने की जगह नहीं है शेष - gidhaur.com : Gidhaur - गिद्धौर - Gidhaur News - Bihar - Jamui - जमुई - Jamui Samachar - जमुई समाचार

Breaking

Post Top Ad - Contact for Advt

Post Top Ad - Sushant Sai Sundaram Durga Puja Evam Lakshmi Puja

बुधवार, 23 अक्टूबर 2019

पटना में अब नहीं सजेंगी परम्परागत दीयों की दुकानें, संस्कृतियों को ढोने की जगह नहीं है शेष


पटना (23 अक्टूबर 2019) : धनतेरस एवं दीपावली के समय पटना के वीमेंस कॉलेज के पास बेली रोड के किनारे हर वर्ष तरह-तरह के मिट्टी के दीयों एवं अन्य खूबसूरत साज-सज्जा के सामानों की दुकानें सज जाया करती थीं. साल में सप्ताह भर खुलने वाली ये दुकानें 25 से भी ज्यादा वर्षों से सजती आई थीं और राजधानी की खूबसूरती को बढ़ाती आई थीं. दूर-दूर के मोहल्लों से लोग यहाँ आकर दीपावली के लिये मिट्टी के दीये एवं अन्य साज-सज्जा की सामानें खरीदा करते थे.

परम्परा एवं संस्कृति के दीये को ढ़ाई दशक तक जलाये रखने वाले इस बाजार पर इस साल प्रशासन का ग्रहण लग गया है. सारे सामान आ गये हैं, पर दुकानें नहीं सज पाई हैं. दुकानों की सजावट करने की जगह दुकानदार कभी धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं तो कभी पुलिस एवं अन्य वरीय अधिकारियों से आरजू-मिन्नतें कर रहे हैं.

बुधवार की सुबह से ही दुकानदारों ने पुलिस-प्रशासन के खिलाफ धरना शुरू कर दिया. दुकानदारों के अनुसार स्थानीय कोतवाली थाना के पुलिसकर्मियों ने ऊपर से ऑर्डर का हवाला देकर जगह खाली करने का निर्देश दे रखा था जबकि दर्जन भर से ज़्यादा दुकानदार लोग जैसे-तैसे पूंजी लगाकर अपना-अपना सामान ले आ चुके थे, और प्रशासन के द्वारा दुकान नहीं लगाने देने की स्थिति में सारे दुकानदार एवं उनके सहयोगी दिन-रात वहीं पर रहकर अपने सामानों की सुरक्षा भी कर रहे थे.

दुकानदारों के अनुसार पहले कोतवाली थाना के पुलिसकर्मियों ने दुकान लगाने देने की बात कहकर सबका आधार कार्ड और हस्ताक्षर माँगा. सारे दुकानदारों ने अपने-अपने आधार कार्ड की फोटोकॉपी हस्ताक्षर करके थानेदार को सुपुर्द कर दिया. उसके बावजूद जब दुकानों को नहीं लगाने दिया गया, तब कुछ दुकानदारों ने जिलाधिकारी के पास जाकर भी सम्बंधित आवेदन दिया. बावजूद इन सबके जब बात नहीं बनी, तब दुकानदार धरना करने को मजबूर हुए. दुकानदारों के हालत पर तरस खाकर पटना वीमेंस कॉलेज की भी अनेक छात्राएँ दुकानदारों के साथ आकर धरने में शामिल हो गईं, एवं दुकानदारों के पक्ष में नारे लगाने लगीं.

प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार मंगलवार की रात में अपने सामानों की सुरक्षा कर रहे दो दुकानदारों को पुलिस ने उठाकर जिप्सी में बैठा लिया, और फिर इनकम टैक्स गोलाम्बर के पास ले जाकर उनसे एक-एक हज़ार रूपये लेकर उन्हें छोड़ दिया.

धरना के दौरान ही एक दुकानदार गश्त खाकर अचेत हो गया. अन्य एक दुकानदार को भी डेंगू बुखार था. वह डेंगू बुखार से सम्बंधित दवाइयाँ भी खा रहा था. दुकानदारों के अनुसार, उनमें से कई लोगों ने महाजनों से सूद पर पैसा लेकर इस उम्मीद से सामान खरीदा था ताकि सप्ताह भर में कुछ लाभ कमाकर महाजनों को पैसे लौटा देगा. अब पटना प्रशासन उनके अनुमानित राह में शनि का साढ़े साती बनकर खड़ा हो गया है. कुछ दुकानदार भावावेश में आत्मदाह करने जैसी बातें भी कर रहे थे. दुकानदार एवं उनके सहयोगियों में काफी संख्या में महिलाएँ भी थीं.

बुधवार को देर शाम कुछ दुकानदार यह भी राय व्यक्त कर रहे थे कि मीडिया वालों ने आकर खेल बिगाड़ दिया, वरना थाने वालों से कुछ ले-देकर बात बन जाती. उनके अनुसार शुरूआत में जब तक मीडिया वाले नहीं आये थे, तब तक हटने को कहने के बावजूद पुलिसकर्मियों का रूख़ थोड़ा नर्म था, और कहीं कुछ गुंजाइश जैसी बात नजर आ रही थी, पर शाम को अचानक से पुलिस का रूख़ काफ़ी सख़्त हो गया और उन्होंने काफी संख्या में पुरूष एवं महिला पुलिसकर्मियों को बुलाकर अर्द्ध-निर्मित दुकानों को तुरंत हटाने को कहा, और काफी मिन्नतों के बाद देर शाम अंधेरा होने के बाद कोतवाली थाना ने यह प्रस्ताव दिया कि अगर वे दुकानदार मिलर हाई स्कूल शिफ्ट हो जाएँ तो पुलिसकर्मी दो दिन आँख बंद करके रह सकते हैं.

अब दुकानदारों के साथ समस्या यह हैं कि जब ग्राहकों को पता चलेगा कि उनके दुकान मिलर हाई स्कूल के ग्राउंड में हैं, तभी तो ग्राहक आयेंगे. वीमेंस कॉलेज के पास बेली रोड के किनारे वाला स्थान पटना के समस्त लोगों को मालूम है कि दीपावली के समय कुछ विशेष दिनों के लिये वहाँ पर दुकानें सजती हैं. मिलर हाई स्कूल को लेकर दुकानदारों का अनुमान है कि इस साल वहाँ 10 प्रतिशत सामान बिकना भी मुश्किल हो जायेगा.

इस तरह एक के बाद एक दिन बीतता चला जा रहा है. दीपावली के बाद इन दुकानदारों के सामानों को या तो रद्दी के भाव बेचना पड़ेगा या फिर बिकने के लिये एक साल का इंतजार करना पड़ेगा. एक साल में ये सामानें पुरानी भी हो जाएँगी.

इस पूरे मामले में कई सवाल सामने आते हैं. क्या दशकों से राजधानी में सप्ताह भर के लिये दुकान लगा रहे गरीब दुकानदारों का लाभ सुनिश्चित किये बिना ही राज्य सरकार सुशासन का तगमा ढोते फ़िरेगी ? क्या हाई कोर्ट को गरीबों की कोई परवाह नहीं या फिर देश के नियम में गरीबों के लिये स्थान खत्म हो गया है ? या फिर कि गरीब यह मान लें कि हमारे समाज में नेता, अफसर, पुलिसकर्मी, कोर्ट और मीडिया अब सिर्फ़ अमीर पूंजीपतियों के अधिकारों की ही सुरक्षा करेगा, और गरीब लोग ऐसी अपेक्षाएँ छोड़ दें ?   

सवाल ये भी हैं कि दुर्गापूजा या उर्श जैसे अवसरों पर जब अस्थाई दुकान लगते हैं, या जब गुरूद्वारे में कोई पर्व होता है तो वहाँ आस-पास कई अस्थाई दुकानें लग जाती हैं, तब क्या हाई कोर्ट का ऑर्डर उसमें बाधक नहीं होता है ? या फिर इस हाई कोर्ट के ऑर्डर का प्रशासन द्वारा मन-मुताबिक भी यदा-कदा उपयोग किया जाता रहता है ?


(पत्रकार धनंजय कुमार सिन्हा की रिपोर्ट)

Post Top Ad -