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सिमुलतला : आवासीय विद्यालय में प्रेमचंद जयंती समारोह आयोजित


सिमुलतला (गणेश कुमार सिंह) :-
कथासम्राट प्रेमचंद भारत ही नहीं , विश्व के सबसे बड़े कथाकार हैं। उन्होंने हिंदी कथा साहित्य को 'तिलिस्म' और 'ऐय्यारी' के खंडहर व अंधेरी गुफा से निकालकर जनसामान्य के दुख-दर्द से जोड़ा। 


उक्त बातें मंगलवार को सिमुलतला आवासीय विद्यालय में महाकवि राम इकबालसिंह 'राकेश' साहित्य परिषद के तत्वावधान में आयोजित प्रेमचंद जयंती समारोह के अवसर पर शिक्षक व व्यंग्यकार डा. सुधांशु  कुमार ने कही। आगे उन्होंने बताया कि  यथार्थ से जोड़ने वाले कथासम्राट प्रेमचंद आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं , जितने बीसवीं शताब्दी में। प्रेमचंद की कहानियों व उपन्यासों के पात्र आज भी हमारे आसपास एवं हममें किसी न किसी रूप में जीवंत हैं । स्वतंत्र भारत में भी होरी कर्ज में जन्म लेता है , कर्ज में जीता है और कर्ज में ही मर जाता है । प्रेमचंद ने नारी समस्या पर केन्द्रित जो उपन्यास और कहानियां लिखी हैं , वे अब भी उतनी ही प्रासंगिक हैं , जितनी तब ।   हमारे समाज में लिंग-भेद की समस्याएं आज भी कमतर नहीं हुई हैं । प्रेमचंद की निर्मला के जीवन को आज भी 'दहेज का दानव' निगल रहा है । वह आज भी राक्षसों की शिकार हो रही है । प्राचार्य डा. राजीव रंजन ने कहा कि आज स्थिति कहीं अधिक भयावह है ! अब यदि पता भी चल जाय कि कोख में पलने वाली निर्मला है , तो उस कोख को ही उसकी कब्र बना दी जाती है ।
डा. शिप्रा प्रभा व गोपालशरण शर्मा ने कहा कि
प्रेमचंद ने चुनावी तिकड़म और राजनीतिक विद्रूपताओं को भी बड़ी ही बारीकी के साथ उकेरा है ।  प्रेमचंद के समय जो चुनावी दांवपेंच और छलछंद का धंधा चल पड़ा था , वह आज और वीभत्स रूप धारण कर लोकतंत्र को ठेंगा दिखा रहा है ! गोदान में वह लिखते हैं -" अबकी बार चुनाव में बड़े-बड़े गुल खिलेंगे ...यह जनता की आंखों में धूल झोंकने का अच्छा स्वांग है । भूगोल शिक्षक डा. जयंत कुमार ने बताया कि उन्होंने राजनीति की चक्की में पिसते हुए और पेट के भूगोल में उलझे हुए आम आदमी के दर्द को अत्यंत ही करीब से देखा और अपनी कथाओं में उसे सहजता के साथ रखा जिसके कारण बड़ी ही आसानी से पाठकों की संवेदना का साधारणीकरण उसमें हो जाता है । शिक्षिका कुमारी नीतू ने बताया कि  आज जिस प्रकार चुनाव आते - आते जनता की मूलभूत समस्याएं नेपथ्य में चली जाती हैं और प्रायोजित , जातिवाद , क्षेत्रवाद , भाषा और  सांप्रदायिकता का जहर बो कर उसकी चुनावी फसलें काटी जाती हैं यह भारतीय लोकतंत्र के लिए किसी विषवृक्ष से कम नहीं।  सामाजिक विज्ञान की शिक्षिका वर्षा कुमारी ने कहा कि प्रेमचंद ने चुनावी तिकड़म को भी अपने साहित्य में उकेरा ।
कार्यक्रम के दूसरे सत्र में छात्र छात्राओं के बीच मुहावरा अभिनय प्रतियोगिता हुई जिसमें प्रथम स्थान नीतेश ,मासूम , सुरुचि , विवेक एवं नवनीत दूसरा स्थान प्रिया ,वेदप्रकाश , आयुष , अक्षिता , तान्या , आकांक्षा ,और तीसरा स्थान जय राज , गुड़िया ,महिमा , स्वाति , शिव ,प्रियांशु , राजनंदनी एवं निधि ने  प्राप्त किया इसके अलावा प्रियांशु , अमित , एवं खुशी आदि छात्र छात्राओं ने बेहतर प्रदर्शन किया । धन्यवाद ज्ञापन कुमारी पुष्पा के द्वारा किया गया।