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पढ़ें शुभांगना की कविता - 'प्रकृति'


गुड्डु वर्णवाल
प्रकृति ने इंसान को जीने के लिए अनमोल सुख-सुविधाएं प्रदान की हैं। खाने को अन्न, पीने को जल, सांस लेने शुद्ध हवा। सबकुछ हमें प्रकृति ने ही दिया है। लेकिन स्वार्थ में अंधा होकर इंसान इन प्राकृतिक संसाधनों का बेतहाशा इस्तेमाल कर रहा है। जिन वजहों से दिनोंदिन इन संसाधनों में कमी होती जा रही है।

इंसानों को जागृत करने और इसे बचाने का संदेश देने का प्रयास करते हुए गिद्धौर की नन्हीं सी बच्ची शुभांगना गौरव (कोमल) ने कविता लिखी है। इस कविता में प्रकृति के दुःख को जाहिर करते हुए इसे बचाने की गुजारिश की गई है। आप भी पढ़ें और पसंद आये तो शेयर जरूर करें।


आया देखो ये संदेशा
करो ना तुम प्रकृति से ऐसा
पेड़ हमें हवा शुद्ध देते
फिर भी हम उन्हें काट देते
फल और फूल हमें ये देते
प्राण न्यौछावर अपने कर देते

देखो तो धरती को
अन्न हमें उगाने देती
खुद पर हल चलाने देती
सहती है सारे दुःख
देने को हमको सुख
मेरी प्यारी धरती मां

आती अब जल की बारी
प्यास हमारी बुझा ये जाती
हम सबकी जरूरतों को सारी
पूरी करने सर्व प्रथम आती
जल की बर्बादी को रोको
जल के लिए तरसते जो उनको तुम देखो

कुछ तो प्रकृति से सीखो
सबकी मदद करो सदा
बदले में कुछ की भी ना चाह रखो
पेड़ों की कटाई रोको
औरों की बुराई रोको
सब संग अच्छा अपना व्यवहार रखो
लालच कभी नहीं तुम करो